परिचर्चा : सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषा में न्याय पाने का हक

आजादी के बाद भी, जनता है परतंत्र! 

है कैसी ये आजादी, कैसा यह जनतंत्र? 

Shyam-Rudra-Pathak-300x229संविधान में यह प्रावधान है कि उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियां केवल अंग्रेजी भाषा में होंगी। इस अन्याय को खतम करने के लिए श्री श्याम रुद्र पाठक अपने दो सहकारी कार्यकर्ताओं के साथ गत 4 दिसम्बर 2012 से कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी के निवास एवं कार्यालय के बाहर दिन-रात सत्याग्रह कर रहे हैं। यद्यपि अधिकतर समय पुलिस उन्हें तुगलक रोड थाने में बंद रखती है। सत्याग्रहियों की मांग है कि सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में किसी एक भारतीय भाषा में न्याय पाने का हक दो!

श्री श्याम रुद्र पाठक आईआईटी ग्रेजुएट हैं। आईआईटी में अध्ययन के दौरान वे आखिरी साल का प्रोजेक्ट हिंदी में लिखने पर अड़ गए। संस्थान ने डिग्री देने से मना कर दिया। मामला संसद में गूंजा। तब जाकर उन्हें डिग्री मिली। 1985 में उन्होंने भारतीय भाषाओं में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा कराने की माँग को लेकर आन्दोलन शुरू किया। तमाम धरने-प्रदर्शन के बाद 1990 में ये फैसला हो पाया। अब वे सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में किसी एक भारतीय भाषा में न्याय पाने के लिए सत्याग्रह कर रहे हैं।

श्री श्याम रुद्र पाठक क्यों धरना पर बैठे हैं, उनके विचार जानिए और फिर तय कीजिए किस ओर हैं आप? (सं.)

क्या भारत का सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय अंग्रेजी समझ सकने वाले केवल तीन प्रतिशत भारतीयों के लिए है? क्या 97 प्रतिशत भारतीयों के लिए अलग से कोई उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय है? हमारे संविधान के अनुच्छेद 348 (1)(क) के तहत उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियां केवल अंग्रेजी भाषा में होंगी। जबकि सभी जनगणनाओं के अनुसार अंग्रेजी समझ सकने वाले लोगों की कुल संख्या भारत में तीन प्रतिशत से भी कम है। तो क्या यह देश के 97 प्रतिशत भारतीयों के साथ अन्याय नहीं है?

हम चाहते हैं कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी थोपी न जाए और इसके लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन हो। संसद में अंग्रेजी के अलावा संविधान की अष्टम अनुसूची में उल्लिखित सभी बाईस भारतीय भाषाओं में सांसदों को बोलने का अधिकार है। श्रोताओं को हिंदी व अंग्रेजी में तत्क्षण अनुवाद उपलब्ध कराया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों मंे भी इसी संसदीय व्यवस्था का अनुगमन होना चाहिए, परन्तु कम से कम सर्वोच्च न्यायालय में हिंदी और प्रत्येक उच्च न्यायालय में उस राज्य की राजभाषा (क्षेत्रीय भाषा) का प्रयोग अंग्रेजी के अलावा अनुमत हो।

इसके लिए हम 4 दिसम्बर 2012 से कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी के निवास एवं कार्यालय के बाहर दिन-रात सत्याग्रह कर रहे हैं। यद्यपि अधिकतर समय पुलिस हमें तुगलक रोड थाने में बंद रखती है। इससे हमारे मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है।

क्या आप भी इस अन्याय को हटाने में अपना योगदान देंगे?

-श्याम रुद्र पाठक (मोबाइल: 9818216384)

संयोजक, न्याय एवं विकास अभियान 

21 COMMENTS

  1. जहा तक मेरा ख्याल है भारत ही नहीं परन्तु सभी देशो में अंग्रेजी भाषा का उपयोग हो रहा है यदि आज के दिन कें हम अपने आप को विकसित करना चाहते है तोह इसमें क्या बुराई है अत्यंत दुखद खेद है की आज हम चाँद तक पहुच गए है परन्तु हमारी मानसिकता उतनी ही ज़मीन के निचे है यहाँ बात सिर्फ न्यायलय तक ही नहो सिमित है परन्तु सभी चीजों में अंग्रेजी को एक अच्छा दर्ज़ा देना चाहिए यदि आपका बस यही तक सोचना है की सिर्फ न्यायलयो में हिंदी भाषा का उपयोग होना चाहिए तो एकदम गलत निर्णय है.एक विकसित राष्ट्र बन्ने के लिए एक विकसित मानसिकता की भी होनी ज़रूरी है.

  2. अब लगता की हिंदी की रक्षा का लिया रक्त का बलिदान दान का समय आ गया है.या चाँद काले अंग्रजों का षड़यंत्र है.

  3. Dear Sanjeev Sinha,
    You will be well aware that the law enacted by the Parliament through its learned members , even than the statement / suggestion as in this mail, have no more sence, whether , the question to follow the English all over the Indian people (india is a big country having different language and Hindi is not the recognized language all over India ) , so the view of 3% are the person have knowledge of English and 97% person / people have no understanding of English language, is the matter of thinking / considering over it.
    Supreme power (like Parliament ) to implement the law through its agencies, are the Government. Hence it is having no use of change of law so as to state the Indian people are facing the nonjudicial justice.
    submitted for your kind consideration and for terms legal opinion.
    yours
    LGRS

  4. nishchay hi yeh 97 pratishat bhartiyon ke sath anyay hai. darasal yah
    hamari angrejiparasti aur naukarshai ki kartoot hai.desh me bhasha
    vivad bhi iesi liye khade kiye jate hain.

  5. ये बिलकुल सही है कि आज हम लोग सब कुछ भूलकर पश्चिम संस्कृति के पीछे भाग रहे है. यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हम अपनी चीजों को नकार कर दूसरो कि संस्कृति अपनाने कि होअड में लगे है. आज अंग्रेजी बोलना एक स्टेटस का प्रीतिक बन गया है I हमारी सरकारे भी इस मामले में कुछ करने में नाकाम रही है, और इस सब का परिणाम हमारे सामने है…कि आज हिंदी में काम काज बिलकुल ही कम होता जा रहा है. कुछ वर्षो पहले तक बारहवी कक्षा तक हिंदी और अंग्रेजी दोनों में पास होना आवश्यक था लेकिन अब देखने में आया है कि बच्चे हिंदी न लेकर अंग्रेजी ही लेने लगे है…पता नहीं शिक्षा विभाग ने ऐसा क्यों होने दिया? जब हम लोग अंग्रेजी ही पढने कि सोचेंगे तो हिंदी कैसे आएगी ? आजादी के बाद से ही सरकार को इस और ध्यान देना चाहिए था ….और हिंदी को आवश्यक करना चाहिए था…ये तो उसी प्रकार से हो गया जैसे अंग्रेजो ने संस्कृत कि पढाई पर रोक लगा दी थी….उसका परिणाम हमारे सामने है ….कि हम लोगो में संस्कृत भाषा के जान कार बहुत कम रह गए है. जब हम कोई चीज़ पढेंगे नहीं तो उसको कैसे समझेंगे ……कही ज्यादा देर न हो जाए ….

  6. अँगरेज़ चले गए परन्तु आपने मानस पुत्र छोड़ गए हैं. दिल्ली जैसे कई राज्यों में सरकारी काम काम इंग्लिश में ही होता है, कोई भी छोटा मोटा सरकारी नोटिस आपको इंग्लिश में ही मिलेगा. ट्रेफिक पुलिस का चालान भी इंग्लिश में होगा.

    भाई श्याम रुद्र पाठक को इस सदकार्य के लिए शुभेच्छा. ईश्वर उनका मनोबल बनाए रखे.

    पहले छट्ठी कक्षा में संस्कृत के साथ गुरुमुखी का विकल्प होता था, जो आज फ्रेंच या अन्य कोई विदेशी भाषा के साथ है, क्या छात्रों को अन्य भाषा के विकल्प की जगह दक्षिण भारतीय या फिर पूर्व की भाषा भाषा का ज्ञान भी दिया जा सकता है. लेकिन उसके न. या फिर ग्रेड छात्रों के नतीजों को प्रभावी न करें.

    जय राम जी की.

  7. जिसे न निज भाषा तथा निज देश का अभिमान है
    वह नर नहीं निरा पशु है ,और मृतक सामान है ।
    मुट्ठी भर अंग्रेजी जानने वालो के लिए सरे कम काज अंग्रेजी में हो यह कहा का न्याय है ? खाना हीनी का गाना फिरंगी का ….वाह रे न्याय के नियम बनाने वालो । अभी भी हिंदुस्तान के हिन्दू की नींद ना टूटी तो ,माँ मोंम हो जाएगी और जिन्दा बाप डेड हो जायेगा । कुछ तो पहल होनी चाहिए ।
    प्रोफ .मनीषा रमेशकुमार उपाध्याय .
    मुंबई .

  8. 1. यह है कि माननीय संसदीय राजभाषा समिति ने 1958 में संस्तुति की थी कि उच्चतम न्यायालय में कार्यवाहियों की भाषा हिंदी होनी चाहिए| उक्त अनुशंसा को पर्याप्त समय व्यतीत हो गया है किन्तु इस दिशा में आगे कोई प्रगति नहीं हुई है|
    2. यह है कि राजभाषा विभाग ने अपने पत्रांक 1/14013/05/2011-O.L.(Policy/C.T.B.) दिनांक 11.09.12 व तत्पश्चात पत्रांक 12019/17/2010-राभा(शि.) दिनांक 03.04.13 से उच्चतम न्यायालय से अपेक्षा की है कि वे राजभाषा नीति की अनुपालना करें और हिंदी भाषा के प्रयोग को प्रोत्साहन दें| उच्चतम न्यायालय ने भी अपने पत्रांक 109A/Misc.SCA(J) दिनांक 25.09.2012 से इस प्रस्ताव पर विचार करने हेतु सहमति प्रदान की है|
    3. यह है कि जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में अन्ग्रेजी भाषी लोग मात्र 0.021% ही हैं| इस दृष्टिकोण से भी अत्यंत अल्पमत की, और विदेशी भाषा जनता पर थोपना उचित नहीं है| स्वतंत्रता के 64 वर्ष बाद भी देश के सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाहियां ऐसी भाषा में संपन्न की जा रही हैं जो 1% से भी कम लोगों द्वारा बोली जाती है| इस कारण देश के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों से अधिकांश जनता में अनभिज्ञता व गोपनीयता, और पारदर्शिता का अभाव रहता है|
    4. यह है कि जनता द्वारा समझे जाने योग्य भाषा में सूचना प्रदानगी के बिना अनुच्छेद 19 में गारंटीकृत “जानने का अधिकार” भी अर्थहीन है| स्वयं उच्चतम न्यायालय ने क्रान्ति एण्ड एसोसियेटस बनाम मसूद अहमद खान की अपील सं0 2042/8 के निर्णय में कहा है, “इस बात में संदेह नहीं है कि पारदर्शिता न्यायिक शक्तियों के दुरूपयोग पर नियंत्रण है। निर्णय लेने में पारदर्शिता न केवल न्यायाधीशों तथा निर्णय लेने वालों को गलतियों से दूर करती है बल्कि उन्हें विस्तृत संवीक्षा के अधीन करती है।“ माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी कई बार अपने महत्वपूर्ण निर्णयों के सार दूरदर्शन पर हिंदी भाषा में जारी करने के निर्देश दिए हैं|
    5. यह है कि देश में विभिन्न उच्च न्यायालयों के विरुद्ध औसतन मात्र 2.5% मामलों में ही उच्चतम न्यायालय में अपीलें प्रस्तुत होती हैं जिनके अंग्रेजी अनुवाद की आवश्यकता पड़ती है जबकि देश के सभी अधीनस्थ न्यायालयों में उच्चतम न्यायालय के निर्णय दृष्टांत के तौर पर काम में लिए जाते हैं जिनमें से बहुसंख्य न्यायालयों की भाषा हिंदी है| इस दृष्टिकोण से भी उच्चतम न्यायालय में कार्यवाहियों की भाषा हिंदी होना अधिक उपयुक्त है|
    6. यह है कि अब माननीय संसद द्वारा समस्त कानून हिंदी भाषा में बनाये जा रहे हैं और पुराने कानूनों का भी हिंदी अनुवाद किया जा रहा अतः उच्चतम न्यायालय द्वारा हिंदी भाषा में कार्य करने में कोई कठिनाई नहीं है| संविधान के रक्षक उच्चतम न्यायालय द्वारा राष्ट्र भाषा में कार्य करना गौरव का विषय है|
    7. यह है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण आयोग, विधि आयोग भारत सरकार के मंत्रालयों/ विभागों के नियंत्रण में कार्यरत कार्यालय हैं और वे राजभाषा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसरण में हिंदी भाषा में कार्य करने को बाध्य हैं तथा उनमें उच्चतम न्यायालय के सेवा निवृत न्यायाधीश कार्यरत हैं| यदि एक न्यायाधीश सेवानिवृति के पश्चात हिंदी भाषा में कार्य करने वाले संगठन में कार्य करना स्वीकार करता है तो उसे अपने पूर्व पद पर भी हिंदी भाषा में कार्य करने में स्वाभाविक रूप से कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए| प.बंगाल मानवाधिकार आयोग में संविधान में उल्लिखित समस्त आठों भाषाओं में याचिका स्वीकार की जाती हैं|
    8. यह है कि देश में हिंदी भाषी न्यायविदों की भी अब कोई कमी नहीं है| न्यायाधीश बनने के इच्छुक जिस प्रकार कानून सीखते हैं वे ठीक उसी प्रकार हिंदी भाषा भी सीख सकते हैं | चूँकि किसी न्यायाधीश को हिंदी नहीं आती अत: न्यायालय की भाषा हिंदी नहीं रखी जाए तर्कसंगत और न्यायपूर्ण नहीं है| अन्यथा इससे यह यह संकेत मिलता है कि न्यायालय न्यायाधीशों और वकीलों की सुविधा के लिए बनाये जाते हैं| देश के विभिन्न न्यायालयों में कार्य करने वाले वकील व न्यायाधीश ही कालांतर में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीश बनकर आते हैं| हिंदी भाषा लगभग समस्त देशी भाषाओं की जननी भी है| देश के कुल 18008 अधीनस्थ न्यायालयों में से 7165 न्यायालयों की भाषा हिंदी हैं जिनमें वकील और न्यायाधीश हिंदी भाषा में कार्य कर रहे हैं तथा शेष न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी अथवा स्थानीय भाषा है|
    9. यह है कि माननीय दिल्ली उच्च न्यायलय में 11 अनुवादक पदस्थापित हैं जो आवश्यकतानुसार अनुवाद कार्य कर माननीय न्यायाधीशों के न्यायिक कार्यों में सहायता करते हैं| उच्चतम न्यायालय में भी हिंदी भाषा के प्रयोग को सुकर बनाने के लिए माननीय न्यायाधीशों को अनुवादक की सेवाएँ उपलब्ध करवाई जा सकती हैं|
    10.यह है कि याचिका पर शीघ्र निर्णय के लिए इसकी एक प्रति राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय को बिन्दुवार अपनी टिप्पणियाँ प्रस्तुत करने के लिए अलग से अग्रिम तौर पर भेजी जा रही| यह भी निवेदन है कि जिन बिंदुओं/तथ्यों का विभाग द्वारा 30 दिन की समयावधि में सम्यक अथवा कोई खंडन नहीं किया जाये उन्हें सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 8 नियम 5 (1) के सुस्थापित सिद्धांत के अनुसरण में स्वीकृत समझा जाए और याचिका के उस तथ्यात्मक बिंदु को तदनुसार याची के पक्ष में निर्णित करने के अनुकम्पा की जाये|
    11.यह है कि संविधान के अनुच्छेद 348 में यह प्रावधान है कि जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी भाषा में होंगी| उच्च न्यायालयों में हिंदी भाषा के प्रयोग का 1970 से ही प्रावधान किया जा चुका है और वे धारा 7 राजभाषा अधिनियम के अंतर्गत अपनी कार्यवाहियां हिंदी भाषा में स्वतंत्रतापूर्वक कर रहे हैं| ठीक इसी के समानांतर राजभाषा अधिनियम में निम्नानुसार धारा 7क अन्तःस्थापित कर उच्चतम न्यायालय में भी हिंदी भाषा के वैकल्पिक उपयोग का प्रावधान किया जा सकता है| इस प्रावधान को लागू करने की तिथि भी बाद में सुविधानुसार निश्चित की जा सकती है|
    धारा 7 क. उच्चतम न्यायालय के निर्णयों आदि में हिन्दी का वैकल्पिक प्रयोग- “नियत दिन से ही या तत्पश्चात्‌ किसी भी दिन से राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से, अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी भाषा का प्रयोग, उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के प्रयोजनों के लिए प्राधिकृत कर सकेगा और जहां कोई निर्णय, डिक्री या आदेश हिन्दी भाषा में पारित किया या दिया जाता है वहां उसके साथ-साथ उच्चतम न्यायालय के प्राधिकार से निकाला गया अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद भी होगा।“ इस हेतु संविधान में किसी संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है| हिंदी के वैकल्पिक उपयोग के प्रावधान से माननीय न्यायालय की कार्यवाहियों में कोई व्यवधान या हस्तक्षेप नहीं होगा अपितु राष्ट्र भाषा के प्रसार एक शुभारंभ हो सकेगा|

  9. बहुत ही प्रसंसनीय प्रयास किया जा रहा है ! आई आई टी का छात्र होने के नाते में इस प्रयास की समाज और शिक्षा के विकास के क्षेत्र में भूमिका को समझ सकता हूँ ! मेरी हार्दिक शुभकामनायें आप के साथ है !!

  10. अत्यंत सराहनीय स्तुत्य आंदोलन।

    ===>इनपर दबाव बढाने के लिए।
    हम सभी एक शपथ लें, कि संसद में मात्र (केवल)अंग्रेज़ी बोलने वाले को मत नहीं देंगे।”
    और माँग करे, कि, प्रादेशिक भाषा बोलनेवाले को हिन्दी अनुवादक दिया जाए।

    ==>क्या दिन आए हैं? एक देश में उस देश की भाषाओं के पुरस्कार के लिए आंदोलन करना पडे।
    भारत में ऐसा भी होता है।
    ==>अंग्रेज़ी सारी प्रादेशिक भाषाओं की शत्रु है। यह सौतेली भाषा जब तक रहेगी; भारत देश स्वतंत्र नहीं होगा, न आगे बढ पाएगा।
    ==>अंतिम पंक्तिका ग्रामीण आगे बढे, तो ही हम सफल।

  11. अत्यंत सराहनीय प्रयास है आपका. पुर्णतः आपके पक्ष में. हिन्दी से हिन्दुस्तान मजबूत होगा. ”अभीतक तो यह देश विदेशी मानसिकता वालों के द्वारा, विदेशी भाषा में, विदेशियों के लिए शासित हो रहा है .”

  12. निःसंदेह प्रशंसनीय प्रयास और आगाज़ है. संविधान में बहुत ज्यादा संशोधन और परिवर्तन की आवश्यकता है. उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय हो या पूरा देश सिर्फ एक भाषा होनी चाहिए और वो है हिंदी. जो हिंदी भाषी प्रदेश नहीं है वहाँ हिंदी अनिवार्य विषय हो ताकि हिंदी भाषा की समझ भारत के हर नागरिक को हो. हिंदी सिर्फ राजभाषा ही नहीं बल्कि पूरे देश की भाषा हो. शुभकामनाएँ.

  13. I am agree with the cause of Shyam Rudra Pathak. It is not only a matter of “Language”, but the deep thought of “Equality” also present in this movement. This whole movement is running without any innecessary noises and simply remind me of one old proverb, “The most important event of the universe used to happen without any noise”.
    I will try to arrange some protest here in Bhubaneswar in support of Shyam Rudra Pathak.

  14. आप का पर्यास बहुत ही सरह्नेया ह.इंग्लिश तो धन के बल पर हे लोग सेख रहे हे .हमारे देश में सब के लिये एक जसे सिक्सा होनी छेय

  15. यह दुर्भग्य का विषय है की बीजेपी के मेर मित्र रविशानाक्र प्रसाद ने सराहा तो पर हस्ताल्खर स्मारपत्र पर नाहे एकिया जबकि मैंने दुसरे दल के एक संसद को कहा तो उसने खा बतैय्रे क्या करना है मुझे? ऐसे काम नाहे एचालेगा बीजेपी को अपने मूल्यों को टटोलना होगा..नाहे ईटीओ वह कन्हे एकी नहीं रहेगी और कांग्रेस का दूसरा रूप बन कर कंही खो जायेगी,, मेरे अनुज के सहपाठी श्याम रूद्र का जीवन संघर्ष में रहा है और मुझे गर्व है की हिन्दी माध्यम का नेतरहाट आवासीय विद्यालय ने एक भी ऐसा छात्र तो निकाला. अभे एमुझे याद आते हैं वह क्षण जब रांची जिला विद्यालय में किसी प्रमाण पत्र के अभावमे उसका प्रवेश असमंजस में होने पर मेरे स्वर्गीय पिताजी ने संस्कृतज्ञ प्राचार्य त्रिपाठी जी को समय देने के लिए कहा था और वह मान गए. श्यामरुद्र कभी मेरे पास आया था दरभंगा मेडिकल कॉलेज में असम आन्दोलन के एक नेता को ले कर ,और दुखी मन से कहा था ‘भैया, क्या आपभी खादी नही पह्नेंगे?”
    उसने आए आए टी में प्रवेशमें भारतीय भाषाएँ करवाई – मैं जनता हूँ की दरभंगा के ग्रामीण भाग का धीरेन्द्र हिन्दी माध्यम से आए आए टी , मुंबई में गया बी टेक ऍम टेक किया.
    श्यामरुद्र काफी सरल है- जब किसी बस स्टॉप पर किसी ने उसे खादी कुर्तामे देख समझाया बस नो, ८६६ में आठ छह छह लिखा रहेगा उसकी पत्नी को काफी खराब लगा था उसने मुझसे शिकायत की थी… आज श्यामरूद्र फिर एक मुहीम लेकर खडा है, कायदे से बीजेपी समेत सभी दलों को तुरत इसे मान लेना चाहिए पर पता नहीं क्यों वे लोग अपने एही नीति पर कायम नहीं हैं.. अस्तु मैंने एक दूसरे दल के सांसद से से इस बीच बात की है की वे ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर देंगे.. मैं राजनीती से दूर हो गया हूँ पर जो राजनीती में हैं वे क्या जनता के महत्वा की बात नहीं समझते?

  16. मेरे अनुज के सहपाठी श्याम रूद्र का जीवन संघर्ष में रहा है और मुझे गर्व है की हिन्दी माध्यम का नेतरहाट आवासीय विद्यालय ने एक भी ऐसा छात्र तो निकाला . अभे एमुझे याद आते हैं वह क्षण जब रांची जिला विद्यालय में किसी प्रमाण पत्र के अभावमे उसका प्रवेश असमंजस में होने पर मेरे स्वर्गीय पिताजी ने संस्कृतज्ञ प्राचार्य त्रिपाठी जी को समय देने के लिए कहा था और वह मान गए. श्यामरुद्र कभी मेरे पास आया था दरभंगा मेडिकल कॉलेज में असम आन्दोलन के एक नेता को ले कर ,और दुखी मन से कहा था ‘भैया, क्या आपभी खादी नही पह्नेंगे?”
    उसने आए आए टी में प्रवेशमें भारतीय भाषाएँ करवाई – मैं जनता हूँ की दरभंगा के ग्रामीण भाग का धीरेन्द्र हिन्दी माध्यम से आए आए टी , मुंबई में गया बी टेक ऍम टेक किया
    श्यामरुद्र काफी सरल है- जब किसी बस स्टॉप पर किसी ने उसे खादी जुर्तामे देख समझाया बस नो, ८६६ में आठ छह छह लिखा रहेगा उसकी पत्नी को काफी खरब लगा था उसने मुझसे शिकायत की थी … आज श्यामरूद्र फिर एक मुहीम लेकर खडा है, कायदे से बीजेपी समेत सभी दलों को तुरत इसे मान लेना चाहिए पर पता नहीं क्यों वे लोग अपने एही नीति पर कायम नहीं हैं.. अस्तु मैंने एक दूसरे दल के सांसद से एस नीच बात की है के ईव हस्ताक्षर कर देंगे .. मैं राजनीती से दूर हो गया हूँ पर जो राजनीती में हैं वे ज्या जनता के नाहत्वा के एबत नहीं समझते?

  17. This is disgrace on the architects of Bharatiya constitution who failed our all the languages and they are so rich .

  18. अत्यन्त सराहनिय है .हिन्दी भाषा की उन्नति का सोपान है. अंग्रेजी समझ सकने वाले केवल तीन प्रतिशत भारतीयों के लिए देश नहि है. आपने पहले भि सफलता हाशिल कि है. बहुत बहुत धन्यबाद.

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