दिल जीतने की कला है ओबामा का नाच

बराक ओबामा भारत आए हैं तो उन्होंने आम लोगों में उम्मीदें जगा दी हैं। बराक ओबामा की जो चीज सबसे ज्यादा अपील कर रही है वह है उनका और उनकी पत्नी का उन्मुक्त भाव से नाचना। ये दोनों अपनी मस्ती,अनौपचारिकता और सामान्यत्व में असाधारण होने का छद्म एहसास पैदा कर रहे हैं। मैं मुम्बई के बच्चों के साथ ओबामा के कार्यक्रम की इमेजों को देख रहा था और सोच रहा था हमारे नेता ओबामा की तरह नाच क्यों नहीं पाते ? ऐसा क्या है कि गाने बजते ही ओबामा और उनकी पत्नी के पैर थिरकने लगते हैं। सोनिया-राहुल आडवाणी-मनमोहन सिंह-मायावती आदि के पैर नहीं थिरकते।

ओबामा के पैरों की थिरकन में मुझे असामान्य भाव दिखता है। वे नाचते सामान्य हैं लेकिन उसके पीछे जो भाव है वह असामान्य है। वे नाचने के लिए नहीं नाचते। वे दिल जीतने के लिए नाचते हैं। वे मनोरंजन के लिए नहीं नाचते वे राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने के लिए नाचते हैं। उसमें मुझे अफ्रीकी मनुष्य की थिरकन की लय के साथ एक खास किस्म की ऊर्जा और राजनीतिक सम्मोहन भी नजर आता है।

वे नाचते हैं और संदेश भी देते हैं। सवाल उठता है ओबामा का नाच अभी तक चर्चा के केन्द्र में क्यों नहीं आया ? ओबामा की नृत्यकला से अनेक किस्म के अर्थों का संचार होता है। भारत में हमने किसी नेता को आमसभा में नाचते नहीं देखा है। उलटे वे अपने भाषणों से जनता को नचाने का काम करते हैं। ओबामा का नाचना अमेरिकी राजनीति का सामान्य फिनोमिना है। इसमें विशिष्ट है ओबामा की उन्मुक्तता और यौवन।

सवाल उठता है ओबामा और उनकी पत्नी नाचते क्यों हैं ? उनकी पत्नी जब मुंबई में स्कूली बच्चों के साथ नाच रहे थे तो बच्चे भावविभोर थे। हमारे देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति या मुख्यमंत्री तो आमलोगों से कोसों दूर रहते हैं,कमांडो के बीच में रहते हैं,अपनी अस्वाभाविक जीवनदशा में रहते हैं।

इसके विपरीत राष्ट्रपति ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा एकदम स्वाभाविक मानवीय दशा में रहते हैं। स्वाभाविक दशा का ही परिणाम है कि मिशेल ओबामा नाच रही थीं तो बराक ओबामा अपने को रोक नहीं पाए और मंच पर आकर स्वयं भी उनके साथ नाचने लगे। उनका नाचना इस बात का प्रतीक है कि वे अपनी स्वाभाविक मानवीय अनुभूतियों को बचाए हुए हैं। अमेरिका के राष्ट्रपतियों में ओबामा सबसे ज्यादा नाचते हैं।

इस प्रसंग में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि बराक ओबामा और उनकी पत्नी का नाचना क्या स्वाभाविक प्रतिक्रिया है या इसकी पहले से जनसंपंर्क अधिकारियों ने योजना बनायी थी ? वे दोनों नाचने में स्वाभाविक हैं लेकिन नाचते हैं योजना के अनुसार। ओबामा के नाचने पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं। लेकिन ओबामा जब महाराष्ट्रियन ‘कोली’ नृत्य पर नाच रहे थे तो वे महाराष्ट्र के मछुआरों की अस्मिता के साथ घुलने मिलने की कोशिश कर रहे थे। उनका कुछ मिनटों का नृत्य इस बात का संकेत भी था कि वे भारत की स्थानीयता में आनंद लेना चाहते हैं। उसका मन जीतना चाहते हैं। वे मुंबई में जितने भी कार्यक्रमों में गए वे सतह पर सब गैर कूटनीतिक कार्यक्रम थे , लेकिन इनमें प्रच्छन्न रूप से कूटनीतिक विचारधारा काम कर रही है। वे गैर-कूटनीतिक कार्यक्रमों के जरिए भारत में कूटनीति करने की योजना बनाकर आए हैं और वे जानते हैं कि इस तरह के कार्यक्रमों का राजनीतिक विचारधारात्मक प्रभाव बहुत ज्यादा होता है।

राष्ट्रपति बराक ओबामा का दिल्ली में पहला कार्यक्रम गैर कूटनीतिक था,लोकल था,इसके तहत वे हुमायूँ का मकबरा देखने गए। वीडियो क्राँफ्रेंसिंग के जरिए अजमेर के गांव के किसानों के साथ उन्होंने बातचीत की, मुम्बई में सेंट जेवियर के बच्चों के साथ प्रश्नोत्तर सत्र में भाग लिया और वहां गंभीर सवालों के हल्के -फुल्के जबाब दिए।

ओबामा जब मुंबई में नाच रहे थे तो वह दीपावली का मौका था और उस पर उन्होंने नाचकर भारत के लोगों के साथ अपनी आत्मीयता को बांटने की कोशिश की है। दीपावली के मौके पर ओबामा का दौरा जानबूझकर रखा गया है जिससे आम लोगों के आनंद में ओबामा को स्वाभाविक तौर पर हिस्सेदार बनाया जा सके।

अमेरिका के फंडामेंटलिस्ट ईसाईयों में उनके दीपावली मनाने को लेकर तेज प्रतिक्रिया हुई है। उल्लेखनीय है कि ओबामा राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद से अमेरिका में ईसाई फंडामेंटलिस्टों से बराबर दूरी बनाए हुए हैं और ज्यादातर ऐसे काम कर रहे हैं जो फंडामेंटलिस्टों को पसंद नहीं हैं। इसका खामियाजा उन्हें हाल के चुनावों में भुगतना पड़ा है। अमेरिकी समाज में ईसाई तत्ववादी रिपब्लिकन पार्टी का बुनियादी आधार हैं,वे एक ही साथ सैन्य उद्योग के पैरोकार भी हैं। फलतःसैन्य उद्योग और ईसाई फंडामेंटलिज्म का अमेरिका में गहरा याराना है।

ओबामा ने अपने चुनाव जीतने के बाद सचेत रूप से वे सारे काम किए हैं जो ईसाई फंडामेंटलिस्टों को स्वीकार्य नहीं हैं। वे चुनाव हारकर भी अपने बहुसांस्कृतिकतावादी परिप्रेक्ष्य से हटने को तैयार नहीं है । उन्होंने दीपावली के पर्व पर भारत यात्रा रखी जिससे वे अपनी बहुसांस्कृतिक और बहुलतावादी राजनीतिक इमेज को बल पहुँचा सकें। उल्लेखनीय है सांस्कृतिक बहुलतावाद ओबामा का राजनीतिक आधार है। वे भारत में दीपावली मनाकर,हुमायूँ के मकबरे पर जाकर इस आधार को पुख्ता बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

बराक ओबामा और मिशेल ओबामा का नाचना एक स्वतःस्पूर्त्त फैसला नहीं था बल्कि यह सुचिंतित राजनीतिक फैसला था। वे नाच यहां रहे थे और सुदूर अमेरिका में अपनी बहुलतावादी राजनीतिक विचारधारा को खाद-पानी दे रहे थे। इसी परिप्रेक्ष्य में हमें उनका हुमायूँ का मकबरा देखना का फैसला समझ में आ सकता है। उनके द्वारा की गई पाकिस्तान और इस्लाम की प्रशंसा समझ सही ढ़ंग से समझ में आ सकती है।

हमारे देश में कारपोरेट मीडिया का एक हिस्सा निरंतर दबाब पैदा कर रहा है कि ओबामा पाक की हिमायत क्यों कर रहे हैं ? उसकी तीखी आलोचना क्यों नहीं करते ? ओबामा के नाचने पर ‘इंडिपेंडेंट‘ अखबार ने लिखा है

”It was greeted with wild applause by his delighted hosts, who are celebrating Diwali, the Hindu festival of light. One of the exotically attired children told reporters his moves were “graceful, nice, and beautiful.” But to others, particularly in the right-wing US circles where the President’s every move is now subject to ridicule and outrage, the spectacle was like a red rag to a bull. Critics carped about the alleged disloyalty of a US leader

celebrating Diwali, and compared his cheerful demeanour to that of the Roman Emperor Nero.”

अमेरिका के इतिहास में ओबामा पहले राष्ट्रपति नहीं हैं जो नाच रहे हैं उनके पहले कई राष्ट्रपति अपने नाच का जलवा दिखा चुके हैं,मसलन रोनाल्ड रीगन को नाचने में कभी संकोच नहीं हुआ। सन् 1984 में वे मार्ग्रेट थैचर के साथ नाचे थे, रिचर्ड निक्सन अपनी बेटी की शादी के मौके पर जून 1971 में नाचे थे।ओबामा के पहले वाले राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश कई बार सार्वजनिक तौर पर नाच चुके हैं और उनका विश्वप्रसिद्ध नाच 2008 में हुआ जब वे लाईबेरिया के बदनाम राष्ट्रपति जॉनसन सेरलेफ के साथ अपनी सूट की जैकेट उतारकर नाचे थे।

कहने का तात्पर्य यह है कि ओबामा का नाचना सिर्फ नाचना नहीं है बल्कि कूटनीति का हिस्सा है। नाच सिर्फ नाच नहीं है, उसकी विचारधारा भी होती है। उसके पीछे राजनीतिक मंशा भी होती है। मंशा है दिलों पर शासन करने की। अपने देश और भारत की बहुसांस्कृतिक जनता के दिलों पर अमेरिकी वर्चस्व स्थापित करना उनके नाच का मुख्य उद्देश्य है। वे नाच नहीं रहे हैं ,वे दिलों पर शासन करने की कोशिश रहे हैं। नाचकर वे दिलों पर चढ़ाई कर रहे हैं।

जिस आनंद और उल्लास के साथ वे नाच रहे हैं और जिस शानदार ढ़ंग से उनका कवरेज आ रहा है उसमें वे विजयी नजर आ रहे हैं। यह विजेता नायक का नाच है। काश हमारे यहां भी कोई ऐसा विजेता होता !

2 COMMENTS

  1. प्रासंगिक .उत्कृष्ट ,कलात्मक और कूटनीति के इशारों से भरा पूरा सटीक आलेख …बधाई .धन्यवाद …

  2. वे नाच यहां रहे थे और सुदूर अमेरिका में अपनी बहुलतावादी राजनीतिक विचारधारा को खाद-पानी दे रहे थे। = यह बात तो बिलकुल सही कह रहे है श्री चतुर्वेदी जी.

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