निबार्क संप्रदाय के स्वामी श्री गोपाल शरण देवाचार्य वर्ष 2009 के हिंदू नवजागरण पुरस्कार के लिए चुने गए है। हिंदू धर्म, संस्कृति एवं जीवनमूल्यों के प्रचार के लिए समर्पित सुप्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय पत्रिका हिंदुइज्म टुडे ने उन्हें इस पुरस्कार के लिए चुना है।
स्वामी श्री गोपाल शरण का मुख्य केंद्र वृन्दावन स्थित बृजवासन गोलोक धाम है। वे 104 वर्षीय पूज्य स्वामी ललितादेवाचार्य के परमधाम सिधारने के बाद उनकी कृपा से उत्तराधिकार में निम्बार्क संप्रदाय की गुरूगद्दी पर सन् 2007 में विराजमान हुए।
गोलोक धाम के अत्यंत पवित्र आध्यात्मिक वातावरण में रमण करते हुए स्वामीश्री ने संपूर्ण विश्व में अब तक 72 छोटे-बड़े मंदिर स्थापित किए हैं। इनमें से 30 मंदिर तो केवल ब्रिटेन में ही स्थापित किए गए हैं। वैसे स्वामीजी का लक्ष्य 108 मंदिरों की स्थापना करने का है।
स्वामीजी ने इस कार्य के लिए न सिर्फ निम्बार्क संप्रदाय के अन्तर्गत मंदिरों की स्थापना कराई है वरन् जिस भी संस्था या संप्रदाय के द्वारा मंदिर निर्माण का प्रयास होता है वे उसे सहयोग करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। मंदिरों के सुव्यवस्थित संचालन को वे हिंदू नवजागरण की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते हैं।
और न केवल निम्बार्क संप्रदाय वरन् शैव, स्मार्त व अन्य वैष्णव संप्रदायों को भी धर्मजागरण की दृष्टि से उनकी दृष्टि में महत्वपूर्ण स्थान है। स्वामीजी कहते हैं- हिंदुत्व के विविध पंथ-उपपंथ हैं और इनमें से हर संप्रदाय साधक को हिंदू धर्म का अमृतत्वपान करा सकने में सक्षम है।
संप्रति स्वामीजी हिंदू परिवार और हिंदू जीवनमूल्यों की प्रासंगिकता की ओर साधारण जन का ध्यान आकर्षित करने में गंभीरतापूर्वक जुटे हैं। कई मुद्दों पर तो वे अपनी राय बहुत बेबाकी से रखते हैं। आधुनिक सूचना तकनीकी, इंटरनेट आदि के प्रयोग को समय के लिए आवश्यक मानते हुए स्वामीजी कहते हैं कि यदि इसका प्रयोग धर्मकार्य व समाज की सात्विक शक्ति को जगाने के लिए किया जाए तो हमें शीघ्र सार्थक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
मांसाहारी हिंदू को वे धर्म से च्युत हिंदू की संज्ञा देते हैं। उनके अनुसार, जिस प्रकार का भोजन हम करते हैं उसका असर भी उसी प्रकार हमारे मन और शरीर पर पड़ता है। तामसिक और क्षूद्र पदार्थ व्यक्ति के कर्म और विचारों को भी हिंसक और संकीर्ण बनाते हैं।
हिंदू घर और हिंदू जीवन किस प्रकार का होना चाहिए, इस पर दुनियाभर के लोगों को सजग और सावधान करने पर उनका सर्वाधिक जोर रहता है। स्वामीजी के अनुसार, हमें अपने स्वधर्म का कोई न कोई चिन्ह बाह्य रूप में अवश्य धारण करना चाहिए। उसी प्रकार आंतरिक पवित्रता बनाने के लिए नियमित ईष्ट-देवपूजन तथा प्रातःकाल ध्यान-साधना भी अवश्य करनी चाहिए। स्वामीजी के अनुसार, घर में बिना भगवान को भोग लगाए अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।
स्वामीजी के अनुसार, यदि लोग वास्तव में शांति और प्रगति चाहते हैं, यदि उन्हें वास्तविक आनन्द की प्राप्ति करनी है, वह आनन्द जो कभी समाप्त नहीं होता तो सभी को अपने प्राचीन वैदिक जीवनमूल्यों की ओर लौटना होगा, वह जीवनमूल्य जो हमारे सनातन धर्म का आधार हैं। सनातन धर्म की छांव में मनुष्य जाति को जो सुख मिल सकता है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा।
हिन्दू जगाया, अच्छा है, पर बाकी मानव क्या हों?
हिन्दू ना बनना चाहें, तो उनके हालत क्या हो?
उनकी हालत क्या हो, जिन्हें ना हो भारत से प्रेम?
फ़िर निम्बार्काचार्य करें वसुधा से कैसे प्रेम?
यह साधक कथनी-करनी का भेद बताया.
भेद बढाकर! क्या अच्छा है हिन्दू जगाया??
स्वामी जी बहुत महान कार्य कर रहें हैं…परमपिता उन्हें शक्ति दें..और देशवासियों को चेतना दें..
स्वामीजी को हार्दिक बधाई. वह वाकई में बहुत भागीरथ कार्य कर रहे हैं. समाज को ऐसे १००० संतो की जरूरत है.