‘बाप भए चयनकर्ता तो जुगाड़ काहे न होए’

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राजकुमार साहू

यह तो सभी जानते हैं कि आज कि्रकेट, भारत ही नहीं, दुनिया भर में एक ग्लैमरस खेल है और खेलप्रेमियों में इस खेल का जुनून सिर च़कर बोलता है। देशदुनिया में ऐसे भी खेल प्रेमी मिलते हैं, जिनके लिए कि्रकेट ही सब कुछ है तथा उनके पसंदीदा कि्रकेटर भगवान होते हैं। कि्रकेट के प्रति खेलप्रेमियों में दीवानगी इस कदर देखी जाती है कि वे अपना खानापीना को भी दरकिनार कर देते हैं। विवकप समेत अन्य कई टूर्नामेंट में एकएक बॉल पर उनकी नजरें टिकी रहती हैं और यही कि्रकेट का रोमांच उन्हें बांधे भी रखता है। एकएक बॉल तथा एकएक रन पर बल्लेबाजों व गेंदबाजों के बीच घंटों तक चलने वाली रस्साकसी, कि्रकेट में रोमांच पैदा करती रहती है। यही कारण है कि आज कि्रकेट, सबसे अधिक धनजुटाउ खेल बन गया है और हर कोई इससे जुड़ने की कोशिश करता है। वैसे भी भारत का कि्रकेट में एक नाम है, क्योंकि यहां कई बड़े नाम हैं, जिन्होंने अपने खेल के दम पर दो को गौरान्वित किया है, मगर इसी खेल में उभरते खेल प्रतिभाओं को रौंदने की कोशिश की जाए तो यह ॔भविश्य के भारतीय कि्रकेट’ के लिए ठीक नहीं हैं तथा यह भार्म की बात है।

देखा जाए तो भारतीय कि्रकेट कंट्रोल बोर्ड अर्थात बीसीसीआई के चयन के तौरतरीके व चयनकर्ताओं की भूमिका पर कई अवसरों पर उंगली उठती रही हैं, मगर इस बार तो हद ही हो गई है। बीसीसीआई के मुख्य चयनकर्ता श्रीकांत ने जो किया है, उससे तो कि्रकेट के उभरते खिलाड़ियों के भविश्य पर कुठाराघात ही हुआ है। दरअसल, मीडिया में जिस तरह की खबरें आ रही हैं, उसके मुताबिक मुख्य चयनकर्ता श्रीकांत ने आस्ट्रेलिया में अगले महीने होने वाले तीन दिवसीय श्रृंखला के लिए अपने ही बेटे ‘अनिरूद्ध श्रीकांत’ का चयन किया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बीसीसीआई द्वारा सीनियर चयन कमेटी के जो पैनल बनाया गया था, उसके प्रमुख श्रीकांत ही थे। ऐसे में तरहतरह के सवाल उठना भी स्वाभाविक लगता है। ऐसा भी नहीं कि अनिरूद्ध श्रीकांत का कि्रकेट में कोई विोश परफार्मेंस है, खराब प्रदार्न के बाद भी अनिरूद्ध के चयन ने बीसीसीआई की चयन समिति की ॔चयन प्रकि्रया’ पर भी प्रनचिन्ह लग गया है ? चयनकर्ताओं ने केवल उभरते हुए खिलाड़ी की दुहाई देकर अनिरूद्ध का चयन किया है। जानकारों की मानें तो तमिलनाडु की रणजी टीम में ओपनर के तौर पर खेलने वाले अनिरूद्ध का प्रदार्न आईपीएल में भी बेहतर नहीं था। चेन्नई सुपर किंग्स इलेवन की ओर से खेलते हुए अनिरूद्ध ने 9 पारियों में महज 251 रन ही बना पाए थे, जिसमें सर्वोच्च स्कोर 64 था। अनिरूद्ध का प्रथम श्रेणी कि्रकेट भी कुछ अच्छा नहीं रहा है, क्योंकि उनके रन बटोरने की औसत महज 29.45 ही है। इसके इतर देखें तो आस्ट्रेलिया जाने के लिए 15 सदस्यीय टीम में जो खिलाड़ी भामिल किए गए हैं, उनमें अधिकाां का प्रदार्न बेहतर है, सिवाय, अनिरूद्ध श्रीकांत के। जिन खिलाड़ियों को चयनकर्ताओं ने नकारा माना है, उन खिलाड़ियों ने आईपीएल के मैचों में अपनी खेल प्रतिभा का लोहा मनवाया है और यहां उनके चयन का कारण सिर्फ व सिर्फ उनका प्रदार्न रहा है, बल्कि अनिरूद्ध श्रीकांत के चयन में केवल यह बात महत्वपूर्ण नजर आती है कि वे मुख्य चयनकर्ता श्रीकांत के बेटे हैं ? अब ऐसे में भारतीय कि्रकेट किस गर्त में जा रहा है ? और खेलप्रेमियों की आाओं को कैसे चक्नाचूर किया जा रहा है ? यह तो सहज ही समझ में आता है। इन स्थितियों में यही कहा जा सकता है कि ,बाप भए चयनकर्ता तो जुगाड़ काहे न होए।’

मजेदार बात यह है कि आस्ट्रेलिया में होने वाले तीन दिवसीय मैच के लिए ऐसे बहुत काबिल व उभरते खिलाड़ियों की प्रतिभाओं को नजर अंदाज किया गया है, जिनके पीछे केवल उनकी काबिलियत है, न कि किसी की छत्रछाया। ऐसे खिलाड़ियों के कोई गॉड फादर नहीं है, यही कारण हैं कि लाख काबिलियत होने के बाद भी उनके नाम को सूची में शमिल करना तो दूर, विचार तक नहीं किया गया। जानकार बताते हैं कि अनिरूद्ध श्रीकांत के मुकाबले झारखंड के इांक जग्गी, कर्नाटक के अमित वर्मा, बड़ौदा के केदार देवधर तथा पंजाब के मनदीप सिंह का नाम उभर के सामने आए हैं, जिन्होंने अभी हाल ही में बेहतर कि्रकेट का मुजायरा पो किए हैं। इन खिलाड़ियों ने रणजी के वनडे फार्मेट में भी अनिरूद्ध की अपेक्षा बिया प्रदार्न किए हैं, मगर जब जुगाड़ के अंतिम शखर में कोई गिद्ध दृश्टि जमी हो तो फिर ऐसी खेल प्रतिभाएं दम ही तोड़ेगी और फिर चरमराता है, दो का हर जुनूनी खेल। ऐसी घिनौनी हरकत से खेलप्रेमियों की भावनाओं को भी ठेस पहुंचती है, लेकिन इन बातों से चयनकर्ताओं को क्यों परवाह हो सकती है? जब चयन करने के लिए उनके मन में हिटलराही कायम हो गया है, तो फिर जुगाड़ू चाबुक चलाने से वे कैसे चूक सकते हैं ? क्या यह, मुख्यचयनकर्ता श्रीकांत की मनमानी नहीं है ? क्या यह, उन खिलाड़ियों की प्रतिभाओं को दम तोड़ने की कोाि नहीं है, जो केवल अपनी काबिलियत पर भरोसा करते हैं ? यह बात किसी से छिपी नहीं है कि भारतीय कि्रकेट में खिलाड़ियों के चयन में भेदभाव का ऐसा खेल पहले से चलते आ रहा है। कभी क्षेत्रवाद तो कभी भाईभतीजावाद, कि्रकेट खिलाड़ियों के चयन में हावी नजर आता है। ऐसे में प्रतिभावान खिलाड़ी कैसे दम नहीं तोड़ेंगे तथा ऐसे ही निर्णय उनकी राह के रोड़े साबित होते हैं? रसूख के दम पर जब कोई इस तरह कार्य करता है और रेवड़ी बांटे, घरघर की तर्ज पर काम करता है तो निचत ही उस संस्था या फिर संगठन का बंटाधार होना तय है, जहां ऐसी करतूत को अंजाम दिया जाता है ?

जब जरा इतिहास खंगालें तो पाते हैं कि चयन के नाम पर गोलमाल आज की बात नहीं है। खिलाड़ियों के पिछले दरवाजे से भारतीय टीम में भामिल होने का पहले भी मामला सामने आ चुका है। लिटिल मास्टर के नाम से प्रसिद्ध व भारतीय कि्रकेट को बुलंदी तक पहुंचाने वाले सुनील गावस्कर के बेटे रोहन गावस्कर की भी भारतीय टीम में एंट्री, केवल इसी दमखम के आधार पर हुई थी कि वे, सुनील गावस्कर के बेटे हैं ? भले ही दबाव में उस समय चयनकर्ताओं ने रोहन गावस्कर को खेलने का मौका तो दे दिया था, किन्तु उस स्वर्णकाल के अवसर को वे भुना न सके और कि्रकेट की बाजीगरी में फेल साबित हुए। बिना बेहतर प्रदार्न के सुनील गावस्कर के बेटे के नाते रोहन गावस्कर को खेलने का मौका कब तक मिलते रहता ? अंततः भारतीय टीम से उनका पत्ता साफ हो गया। कहने का मतलब यही है कि पंदोली देकर किसी को कहीं बिठाया जा सकता है, रसूख व पहुंच के आधार पर प्रतिभा दिखाने का अवसर तो दिया जा सकता है, मगर इतना तो तय है कि बुलंदी, वही छू सकता है, जिनमें दमखम होता है। चाहे किसी भी क्षेत्र में हो, खुद में बिना काबिलियत के कोई भी इस स्पर्धा के युग में ठहर नहीं सकता। इस बात को बीसीसीआई के मुख्य चयनकर्ता श्रीकांत जी को भी समझना चाहिए और उन्हें बिना विवाद में आए, अपने बेटे को पिछले दरवाजे से एंट्री देने की बात को दिमाग से निकाल देना चाहिए। उनकी कोशिश यह होनी चाहिए कि जिस तरह अन्य खिलाड़ी, दो के करोड़ों खेलप्रेमियों के समक्ष कि्रकेट में अपना जौहर दिखाकर टीम में जगह बनाते हैं, कुछ ऐसी राह वे भी अपनाएं तो बेहतर होगा। खेलप्रेमियों के सब्र का बांध फूटने का इंतजार उन्हें नहीं करना चाहिए

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