उफ! एक बुजुर्ग राजनेता की एेसी दुर्दशा!

-तारकेश कुमार ओझा-
ND Tiwari marriage

अब काफी बुजुर्ग हो चुके वयोवृद्ध राजनेता नारायण दत्त तिवारी को मैं तब से जानता हूं, जब 80 के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी की हत्या के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी प्रचंड बहुमत के साथ देश के प्रधानमंत्री बने थे। बेशक उनकी सरकार में नंबर दो की हैसियत मध्य प्रदेश के अर्जुन सिंह की थी। लेकिन राजीव गांधी के मंत्रीमंडल में शामिल रहे नारायण दत्त तिवारी उस जमाने के निर्विवाद नेता के रूप में जाने जाते थे। संयोग से राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के शुरुआती कुछ महीनों के बाद ही उनके मंत्रीमंडल के सदस्य बागी तेवर अपनाते हुए एक-एक कर उनका साथ छोड़ते गए। जिनमें अरुण नेहरू, अरुण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, मोहम्मद आरिफ खान आदि शामिल थे। बोफोर्स कांड व स्विस बैंक प्रकरण के चलते राजीव गांधी काफी मुश्किलों से घिरे थे। तभी देश में आवाज उठी कि राजीव गांधी को अपने पद से इस्तीफा देकर नारायण दत्त तिवारी को प्रधानमंत्री बना देना चाहिए। तिवारी के दबदबे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तब प्रचार माध्यमों में खबर चली कि नारायण दत्त तिवारी भी राजीव से किनारा करने वाले हैं। बताया जाता है कि तब राजीव गांधी ने स्वयं तिवारी को बुला कर उनकी इच्छा जानी और कहा कि यदि आप भी मेरा साथ छोड़ रहे हैं, तो मैं अभी इस्तीफा देता हूं। खैर बात अाई-गई हो गई।

राजीव गांधी के जीवनकाल तक तो कांग्रेस में तिवारी का कद काफी ऊंचा रहा, लेकिन उनकी अचानक मृत्य के बाद तिवारी का हाशिये पर जाना शुरू हो गया। मुझे याद है पीवी नरसिंह राव के प्रधानमंत्रीत्व काल में एक बार नारायण दत्त तिवारी ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव सरकार को बर्खास्त करने की मांग पर अनशन शुरू किया। इससे नरसिंह राव काफी दबाव में आ गए। लेकिन खुद मुलायम सिंह यादव ने कहा कि तिवारीजी को वे अपना गुरु मानते हैं और उनके खिलाफ किए जा रहे आंदोलन के बावजूद उन्हें पंडितजी से कोई शिकायत नहीं है। उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद उत्तराखंड बनने और तिवारी का उक्त राज्य का मुख्यमंत्री बनने तक भी सब कुछ ठीक-ठाक ही चलता रहा। कांग्रेस में सीताराम केसरी और सोनिया गांधी का कद बढ़ने के बाद से ही यूं तो तिवारी हाथिये पर जाते रहे, लेकिन कुछ साल पहले आंध्र प्रदेश का राज्यपाल रहने के दौरान तिवारी सेक्स स्कैंडल में जो फंसे, तो फंसते ही चले गए। उनके पितृत्व विवाद, पहले इन्कार और फिर स्वीकार तथा सबसे अंत में लगभग 90 की उम्र में व्याह का ताजा प्रकरण सचमुच हैरान करने वाला है। विश्वास नहीं होता कि ये वहीं एनडी हैं, जो किसी जमाने में निर्विवाद और सर्वमान्य नेता माने जाते थे। जारी घटनाक्रम व विवादों में तिवारी कितने दोषी हैं, यह तो वही जाने, लेकिन उनकी मौजूदा हालत देखकर अफसोस जरूर होता है। एक वयोवृद्ध राजनेता की एेसी दुर्दशा। साथ ही यह सीख भी मिलती है कि किसी भी इंसान के जीवन में समय एक सा कभी नहीं रहता।

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