” ऊँ ” को धर्म से जोड़ना सम्पूर्ण मानवता के साथ अन्याय

om-omkara

21 जून को योग दिवस अन्तराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित हो रहा है। 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों के फलस्वरूप 21/6/2015 को योग की महिमा को सम्पूर्ण विश्व में स्वीकार्यता मिली और इस दिन को सभी  देशों द्वारा योग दिवस के रुप में मनाया जाता है।यह पल निश्चित ही भारत के लिए गर्व का पल था।
भारत में आयुष मंत्रालय ने इस बार 21 जून को आयोजित होने वाले योग दिवस के सम्बन्ध में दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं जिसमें कहा गया है कि” ऊँ ” शब्द का उच्चारण अनिवार्य है। कुछ धार्मिक  एवं सामाजिक संगठनों से विरोध के स्वर उठने लगे हैं।
भारत देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष देश है। भारतीय संस्कृति एवं उसके आध्यात्म का लोहा सम्पूर्ण विश्व मान चुका है।ऐसी कई बातों का उल्लेख हमारे वेदों एवं पुराणों   में किया गया है जिनके उत्तर आज भी आधुनिक विज्ञान के पास नहीं हैं फिर भी उन विषयों को पाश्चात्य देशों ने  अस्वीकार नहीं किया है वे आज भी उन विषयों पर खोज कर रहे हैं।क्या आपने कभी सोचा है कि भारतीय ॠषियों द्वारा हजारों वर्षों पूर्व कही बातों पर विश्व आज तक खोज में क्यों लगा है? क्योंकि उन बातों का अनुसरण करने से वे लाभान्वित हुए हैं सकारात्मक परिणाम भी मिले हैं किन्तु उस प्रक्रिया से वे आज तक अनजान हैं जिसके कारण इन परिणामों की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि वे उन बातों के मूल तक पहुँचने के लिए आज तक अनुसंधान कर रहे हैं । वे उन्हें मान चुके हैं लेकिन तर्क जानना चाह रहे हैं।वर्ना आज एप्पल के  कुक  और इससे पहले फेसबुक के मार्क जुकरबर्क जैसी हस्तियां क्यों भारत में मन्दिरों के दर्शन करती हैं?
अब कुछ बातें ” ऊँ” शब्द के बारे में —-
अगर इसके वैज्ञानिक पक्ष की बात करें, तो सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही ऊँ शब्द की भी उत्पत्ति हुई थी , तब जब इस धरती पर कोई धर्म नहीं था । यह बात विज्ञान भी सिद्ध कर चुका है कि यह आदि काल से अन्तरिक्ष में उत्पन्न होने वाली ध्वनि है।क्या आप इस अद्भुत सत्य को जानते हैं कि ऊँ शब्द का उच्चारण एक ऐसा व्यक्ति भी कर सकता है जो बोल नहीं सकता अर्थात एक गूँगा व्यक्ति !यह तो सर्वविदित है कि किसी भी  ध्वनि की उत्पत्ति दो वस्तुओं के आपस में टकराने से होती है किन्तु ऊँ शब्द सभी ध्वनियों का मूल है जब हम ऊँ शब्द का उच्चारण करते हैं तो कंठ के मूल से अ ,उ और म शब्दों को बोलते हैं इसमें कहीं पर भी जिव्हा का प्रयोग नहीं  करना पड़ता कंठ के मूल से उत्पन्न होकर मुख से निकलने वाली ध्वनि  जिसके अन्त में एक अनोखा कम्पन उत्पन्न होता है जिसका  प्रभाव हमें शारीरिक मानसिक एवं आध्यात्मिक तीनों रूपों में महसूस होता है।अनेक प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि ऊँ का उच्चारण न सिर्फ हमारे श्वसन तंत्र एवं नाड़ी तंत्र को मजबूती प्रदान करता है अपितु हमारे मन एवं मस्तिष्क को भी सुकून देता है। अत्यधिक क्रोध अथवा अवसाद की स्थिति में इसका जाप इन दोनों ही प्रकार के भावों को नष्ट करके हममें एक नई सकारात्मक शक्ति से  भर देता है। ऊँ शब्द अपार ऊर्जा का स्रोत है   इससे उत्पन्न होने वाला कम्पन हमें सृष्टि में होने वाले अनुकम्पन से तालमेल बैठाने में मदद करता है एवं अनेक मानसिक शक्तियों को जाग्रत करता है ।
अब अगर इसके धार्मिक पक्ष की बात करें तो
इस शब्द को किसी एक धर्म से जोड़ना सम्पूर्ण मानवता के साथ अन्याय होगा क्योंकि इसका लाभ हर उस व्यक्ति को प्राप्त होता है जो इसका उपयोग करता है अतः  इसको  धर्म की  सीमाओं में बाँधना अत्यंत निराशाजनक है।
ओम् शब्द सभी संस्कृतियों का आधार है और ईश्वरीय शक्ति का प्रतीक भी  क्योंकि इस शब्द का प्रयोग सभी धर्मों में होता है केवल रुप अलग है जैसे — ईसाई और यहूदी धर्म में”आमेन ” के रूप में ,मुस्लिम धर्म में   ” आमीन” के रूप में बुद्ध धर्म में “ओं मणिपद्मे हूँ” के रूप में और सिख धर्म में “एक ओंकार” के रूप में होता है।अंग्रेजी शब्द ओमनी (omni) का अर्थ भी सर्वत्र विराजमान होना होता है। तो हम कह सकते हैं कि ओम्  शब्द     सभी धर्मों में ईश्वरीय शक्ति का द्योतक है और इसका  सम्बन्ध किसी एक मत अथवा सम्प्रदाय से न होकर सम्पूर्ण  मानवता से है । जैसे हवा पानी सूर्य सभी के लिए है किसी विशेष के लिए नहीं वैसे ही ओम् शब्द की स्वीकार्यता किसी एक धर्म में सीमित नहीं है इसकी महत्ता को सभी धर्मों ने न सिर्फ स्वीकार किया है अपितु अलग अलग रूपों में ईश्वरीय शक्ति के संकेत के रूप में प्रयोग भी किया है। संस्कृत के इन शब्दों का अर्थ इतना व्यापक होता है कि इनके अर्थ को सीमित करना केवल अल्पबुद्धि एवं संकीर्ण मानसिकता दर्शाता है मसलन संस्कृत में  “गो” शब्द का अर्थ होता है गतिमान होना , अब इस एक शब्द से अनेकों अर्थ निकलते हैं जैसे –पृथ्वी ,नक्षत्र, आदि हर वो वस्तु जो गतिशील है लेकिन यह इस दैवीय भाषा का अपमान नहीं तो क्या है कि आज गो शब्द का अर्थ गाय तक सीमित हो कर रह गया है।
“म” शब्द को ही लें, इस  शब्द से ईश्वर के पालन करने का गुण परिलक्षित होता है,धरती पर यह कार्य माता करती है इसीलिए उसे “माँ ” कहा जाता है और यही शब्द हर धर्म में हर भाषा में माँ के लिए उपयुक्त शब्द का मूल है देखिए –हिन्दी में “माँ” ,उर्दू में “अम्मी” ,अंग्रेजी में “मदर ,मम्मी, माँम “, फारसी में “मादर” ,चीनी भाषा में  “माकुन ” आदि। अर्थात् मातृत्व गुण को परिभाषित करने वाले शब्द का मूल सभी संस्कृतियों में एक ही है ।प्रकृति भी कुछ यूँ है कि सम्पूर्ण विश्व में कहीं भी बालक जब बोलना शुरू करता है तो सबसे पहले “म ” शब्द से ही अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है।
इसी प्रकार जीवन पद्धति एवं पूजन पद्धति का मूल हर संस्कृति में एक ही है अर्थात् मंजिल सब की एक है राहें अलग। हिन्दू,सिख ,मुस्लिम,ईसाई सभी उस सर्वशक्तिमान के आगे शीश झुकाते हैं लेकिन उसके तरीके पर वाद विवाद करके एक दूसरे को नीचा दिखाना कहाँ तक उचित है? जिस प्रकार की मुद्रा में बैठे कर नमाज पढ़ी जाती है वह योगशास्त्र में वज्रासन के रूप में वर्णित है। तो  यह कहा जा सकता है कि मानवता को धर्म विशेष में सीमित नहीं किया जा सकता। जो मानवता के लिए कलयाणकारी है उसका अनुसरण करना ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है और केवल धर्म के नाम पर किसी भी बात का तर्कहीन विरोध सबसे निकृष्ट धर्म है।

डाँ नीलम महेंद्र

 

 

2 COMMENTS

  1. ‘Om’ is the sound which connects matter to the spirit. It represents the formless God. Once upon a time, people all over the world knew the importance of this sound in different forms. But, today some of our fellow citizens do not want to pronounce om for this or that cause. It is their free will. Why should I impose it on them? We people of India think this way.

  2. क्‍या हमारे तथाकथित ढोंगी सैकुलरिये बतायेंगे कि यदि किसी का नाम ओम् प्रकाश हो, ओमवती या अन्‍य ओम् से जुड़ा नाम हो तो वह उसका नाम नहीं लेंगे क्‍योंकि यह उनके धर्म के खिलाफ होगा। तो वह क्‍या करेंगे। क्‍या उसे अपना नाम बदलना पड़ेगा ताकि उन्‍हें कोई तकलीफ न हो। या कि वह पुरानी महिलाओं की तरह अपने पति का नाम न लेकर अोम् प्रकाश को ऐजी कह कर पुकारेंगे। ढोंग की कोई हद तो होनी ही चाहिये।

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