शीतकालीन सत्र में लोकपाल बिल

0
188

 आखिरकार, शीतकालीन सत्र में लोकपाल बिल को लेकर गरमायी राजनीति ठंडी पर ही गई। करीब 42 साल से लंबित लोकपाल बिल को आखिरी मंजूरी तय समय-सीमा में भी नहीं मिल पाई। राज्यसभा में इस बिल को पास कराने की क़वायद कांग्रेस सरकार ने अपने सारे हथियार आजमा लिए, मगर लोकपाल बिल पास नहीं हो सका।

हालांकि, लोकसभा में सरकार ने इस बिल को पास कराने में सफलता तो हासिल कर ली है, मगर राज्यसभा में वह आकडो़ं के गेम में फंस गई। लोकपाल पर राज्यसभा में चल रही बहस सुबह से ही शोर-शराबे की बली चढ़ती हुई अंततः बिना किसी ठोस निर्ष्कष पर पहुंचते हुए समाप्त हो गयी।

हॉ, इतना जरुर है कि जिस तरह से लोकपाल बिल में संसोधन के 173 प्रस्ताव आये वह सरकार के लिए आसान नहीं था कि उसमे संसोधन करके बिल को पास करा दिया जाए। एक साथ संसोधन के इतने प्रस्ताव पर जल्दबाजी करना सरकार को और मुश्किल में डाल सकता है। लिहाज़ा सरकार अब इस बिल को बज़ट सत्र में पास करने की घोषणा कर चुकी है। कांग्रेस सरकार का यह प्रयास रहेगा कि मौजूदा लोकपाल बिल में प्रस्तावित संसोधनों पर गंभीरता से विचाऱ-विमर्श करने के बाद ही इसे फिर से पेश किया जाए।

गौरतलब है कि राजनीति आरोप-प्रत्यारोप, ताना-बाना और एक दूसरे को घेरने का प्रयास निरंतर जारी रहता है। ऐसे में विपक्षी दलों को को सरकार को घेरने के लिए एक बहुत बडा़ मौका मिल गया है। लोकपाल बिल को पास कराने की जिम्मेदारी न केवल कांग्रेस सरकार की है बल्कि अन्य राजनीतिक दलों को भी ठंडे दिमाग से सोचने की जरूरत है। करीब एक साल से इस बिल को लेकर सत्ता और विपक्ष के साथ-साथ सिविल सोसाइटी माथा पच्ची किए हुये हैं, और जब बिल अपनी यात्रा के अहम् पडा़व आया तो एक साथ इतने संसोधनो का बोझ सोची-समझी रणनीति का ही परिणाम है। इस बिल को लेकर हुए दर्जनों बैठकों के बावजूद संसोधनों का इतना लंबा फेहरिस्त बीमार राजनीति का परिचायक है।

जाहिर है जब इस तरह के ज्वलंत मुद्दे सदन में उठते रहते हैं तो आम आदमी के हक और उनके विकास के लिए आवश्यक बहुत सारे मुद्दे दबे रह जाते हैं। सदन की कार्यवाही बाधित होने से कई घंटे बर्बाद होते हैं साथ ही करोड़ो रूपये का नुकसान देश को उठाना पड़ता है। इस बार के शीतकालीन सत्र की बात करें तो लोकसभा के कार्यकाल के दौरान 76 घंटे और 19 करोड़ रूपये की बर्बादी हुई है।

पहले की गलतियों और जल्दबाजी में लिए गए फैसलों से सबक लेते हुये कांग्रेस सरकार की यह कोशिश होगी कि आगामी बजट सत्र में लोकपाल बिल को पेश करने से पहले आवश्यक सारी खा़मियों को पूरा कर लिया जाए।

 

 

 

Previous articleकुछ कविताये….खुशबू सिंह
Next articleसब भ्रम है, सब बना रहेगा
विकास कुमार
मेरा नाम विकास कुमार है. गाँव-घर में लोग विक्की भी कहते है. मूलत: बिहार से हूँ. बारहवीं तक की पढ़ाई बिहार से करने के बाद दिल्ली में छलाँग लगाया. आरंभ में कुछ दिन पढ़ाया और फिर खूब मन लगाकर पढ़ाई किया. पत्रकार बन गया. आगे की भी पढ़ाई जारी है, बिना किसी ब्रेक के. भावुक हूँ और मेहनती भी. जो मन करता है लिख देता हूँ और जिसमे मन नहीं लगता उसे भी पढ़ना पड़ता है. रिपोर्ट लिखता हूँ. मगर अभी टीवी पर नहीं दिखता हूँ. बहुत उत्सुक हूँ टेलीविज़न पर दिखने को. विश्वास है जल्दी दिखूंगा. अपने बारे में व्यक्ति खुद से बहुत कुछ लिख सकता है, मगर शायद इतना काफ़ी है, मुझे जानने .के लिए! धन्यवाद!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here