स्वतंत्रता जयन्ती पर विशेष:पुनर्निमाण के पहले ज़रूरी है विध्वंश

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रामकृष्ण

स्वतंत्रता दिवस नये विचारों, नयी धारणाओं के प्रतिपादन और प्रकाशन का पर्व माना जाता है. इससे इस अवसर पर सामान्यतः हमें अपने देश की प्रगति, उसके विकास, उसके निर्माण की चर्चा ही अभीष्ट होनी चाहिए थी, विभिन्न विधाओं में वह कितना आगे बढ़ है और तकनीकी और वैज्ञानिक शोध की दिशा में उसने कितनी उन्नति की है, इस सबका लेखाजोखा प्रस्तुत करते हुए उसके उस उज्ज्वल भविष्य की कामना का प्रदर्शन करना चाहिए था जिसका अतापता, फ़िलहाल, दूरदूर तक हमें कहीं दिखायी नहीं देता. लेकिन हम बैठ गये हैं विध्वंस और विनाश का आवाहन करने, सरकारी कारकुनों द्वारा वर्णित और सरकारी फ़ाइलों में सिमटे अपने देश की कथित प्रगति के काग़ज़ी विवरणों को नकार कर उसके महत्व को सर्वथा अस्वीकार करने, और निकृष्टतम श्रेणी के अभिनेताओं से भी बद्तर अभिनय के लिये अपने उन राजनेताओं  के वर्चस्व का हनन करने जिनकी सूरतें सिनेमा के पोस्टरों की तरह मील भर पहले से ही आंखों में चुभने लगती हैं और जब उनके पास पहुंचो तो लगता है जैसे रद्दी के भाव बिकने वाले सड़ेगले काग़जों की वक़त भी उनसे कहीं ज़्यादा है.

और इन राजनेताओं ने हमारे देश, हमारे समाज और हमारे शासन को पतन की जिस जर्जर सीमारेखा तक पहुंचा दिया है उसे देखते हुए हमें आज न निर्माण की चाह रह गयी है, और न विकास और प्रगति की. कहते हैं, आदमी जब जर्जर हो जाये तो मृत्यु उसके लिये वरदान होती है, और मकान जब जर्जर हो जाये तो उसे पूरी तरह ध्वस्त किये बग़ैर उस स्थल पर किसी नये भवन का निर्माण सर्वथा असंभव होता है.

हमारा देश भी अपनी व्यवस्था, अपने प्रशासन, अपनी राजनीति और अपने कार्यव्यापार में इतना जर्जर हो चुका है कि जब तक आमूल रूप से उसकी इन विधाओं का विध्वंस कर उसे एक सर्वथा नये रूप और नये आवरण से आवृत्त नहीं किया जाता, तब तक किसी भी तरह का परिमार्जन या परिवत्तर्न असंभव है. और इसके लिये ज़रूरी है कि अब हम अपने किसी पक्ष का सुधार करने के बजाए उसे पूरी तरह तोड़ने का प्रयत्न शुरू कर दें.

तोड़ने का यह कार्य कई तरह से किया जा सकता है. मसलन आप किसी भी तरह के सुधार का मोह छोड़ कर देश की सत्तानीति और सत्ताधारियों को पतन के आख़री गत्तर तक पहुंचाने की कोशिश करें. रिश्वत को भी आप प्रोत्साहन दें और जातपात, भाईभतीजावाद को भी. पुलिस अगर कोई बर्बरता करती है तो उसकी आलोचना न करके उसकी पीठ ठोकें, और मंत्रीमहाजन नाजायज़ं ढ़ग से अपनी तिजोरियो भरना चाहते हैं तो धनसम्पित्त एकत्र करने के भिन्नभिन्न तरीकों की ईजाद कर उनकी सहायता करें.

टूटी सड़कों पर चलते हुए किसी गड्ढ़े में गिर कर अगर आपकी टांग टूटती है तो उनकी मरम्मत की आवाज़ उठाना सर्वथा निरर्थक होता है, क्योंकि आवाज़ उठाने पर भी न कोई उसे सुनेगा और न उस टूटी सड़क की मरम्मत ही हो पायेगी. इसके विपरीत उन गड्ढ़ों का विस्तार कर अगर आप उस सड़क को इतना रद्दी कर दें कि किसी आदमी या जानवर का उस पर चलना ही असंभव हो जाये, तो निश्चित ही एक दिन ऐसा आयेगा जब आप देखेंगे कि उस पर नयी बजरियां पड़ गयी हैं अँर नये कोलतार के साथ नये मज़दूर उस पर अपना स्टीमरोलर चलाने में पूरी तरह लगे हुए हैं.

देश का भी आज यही हाल है. इसी से स्वतंत्रता दिवस जैसे इस पावन अवसर पर हम आपसे कहते हैं कि उसे पूरी तरह बिगड़ने दें, संभव हो उस दिशा में उसे इतनी ज्य़ादा मदद दें कि वह जल्दी से जल्दी अपने पतन की सीमारेखा को पार कर ले. और जिस दिन ऐसा होगा, उसी दिन से उसका नवनिर्माण शुरू हो जायेगा. सुधार की कामना को छोड़ कर विध्वंस को प्रोत्साहन देना शुरू करें तो आप देखेंगे कि देश भी सुधर गया है अँर देश का तंत्र भी.

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