पीठ पर आघात

2
206

संदर्भः- पठानकोट के वायुसेना केंद्र पर आतंकी हमला

प्रमोद भार्गव

दोस्त की पीठ पर छुरा कैसे भौंका जाता है,इसकी ताजा मिसाल,पठानकोट के वायुसेना केंद्र पर हुआ आतंकी हमला है। इसके ठीक छह माह पहले पंजाब के ही गुरूदासपुर जिले के दीनानगर पुलिस थाने पर हमला हुआ था। इस हमले में पुलिस कप्तान बलजीत सिंह और तीन सिपाहियों के अलावा नौ आम भारतीय हताहत हुए थे। इस हमले की आग अभी ठंडी भी नही हुई थी कि दूसरा बड़ा हमला हो गया। आतंकियों से मुठभेड़ में सात सुरक्षाकर्मी शहीद हुए हैं। हालांकि सुरक्षा सैनिकों ने पाक सेना के भेष में आए,सभी आतंकियों के दांत खट्टे करते हुए मार गिराया। लेकिन जब-जब भारत ने रहमदिली दिखाते हुए पाकिस्तान के प्रति उदारता जताई है, तब-तब उसने कभी नहीं भूलाए जाने वाले गहरे जख्म दिए हैं। इस हमले के ठीक एक सप्ताह पहले प्रधानमंत्री मोदी 25 दिसंबर 2015 को प्रोट्रोकाॅल के नियम-कानूनों को ताक पर रखकर बिना किसी पूर्व नियोजित कार्यक्रम के काबुल से लौटते हुए लाहौर पहुंच गए थे। नवाज शरीफ़ को जन्म दिन की बधाई दी और उनकी नातिन मेहरूनिन्सा को निकाह की रस्म-अदायगी पर शुभाशीष दिए। इसी रहमदिली का सिला पाक ने पठानकोट पर हमला बोलकर दिया है। माननीय मोदी जी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी अब छद्म युद्ध की अति हो गई। मुंहतोड़ जबाव देने की हुंकारें,अब नक्कारखाने की तूतियां लगने लगी हैं। सैनिकों की छातियां धोखे से छलनी करने के लिए नहीं बनी हैं ? लिहाजा मुंहतोड़ जवाब देने के अल्फाज अब दोहराएं नहीं,बल्कि प्रतिउत्तर देकर हकीकत में बदलिए ?

इस आतंकी हमले के संकेत दो घटनाओं से पूर्व में ही मिल गए थे। पहली घटना पाक की जासूसी करते हुए पठानकोट वायुसेना के अधिकारी रंजीत का पकड़ा जाना है। दूसरे इस हमले की खतरे की घंटी तब भी बज गई थी,जब सेना की वर्दी में आए 4-5 आतंकियों ने पठानकोट जिले के गांव कोहलियां व कठिना के बीच से एसपी सलविंदर सिंह और उनके दो साथियों का अपहरण कर लिया था। ये दोनों घटनाएं इस बात का इशारा थीं,कि आतंकी अनहोनी की पृष्ठभूमि तैयार है। बावजूद चूक होना सुरक्षा व्यवस्था में बड़ी लापरवाही दर्षाती है। इस हमले का मास्टर मांइड मौलाना मसूद अजहर को माना जा रहा है। यह वहीं आतंकी है,जिसे 24 दिसंबर 1999 में हाईजैक हुए भारतीय वायुसेना के विमान को छुड़ाने के लिए अफगानिस्तान के कंघार ले जाकर रिहा किया गया था। विमान में 178 यात्री सवार थे। खुफिया सूत्रों का मानना है कि बहावलपूर में रहकर अजहर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों को प्रशिक्षण देता है। रिहाई के बाद सन् 2000 में अजहर ने उक्त आतंकी संगठन का गठन पाकिस्तान की धरती पर किया था। इस घटना ने एक बार फिर इस सच्चाई की तस्दीक कर दी है कि पाक पोषित आतंकवाद ही भारत में दहशतगर्दी का जारिया बना हुआ है। केवल आतंकवाद के मुद्दे पर हुंकार भर रहे मोदी क्या अब भी शरीफ़ से समग्र वार्ता करेंगे ?

पाकिस्तानी सेना की वर्दी में एक बार फिर भारत पर आतंकी हमला हुआ है। इससे पहले यही स्थिति कारगिल और पूंछ इलाकों में निर्मित हो चुकी है। जम्मू-कश्मीर में बीते 25 साल से जारी छाया युद्ध का विस्तार पंजाब में भी हो जाना,न केवल चिंताजनक है,बल्कि अनेक आशंकाओं को भी जन्म देने वाला है। नरेंद्र मोदी और केंद्र की राजग सरकार अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते,पाकिस्तान से आगे बढ़कर दोस्ती के जितने प्रयास कर रही है,भारतीय सीमा में हालात उतने ही ज्यादा बिगड़ते जा रहे हैं। रूस के उफा में 10 जुलाई 2015 को मोदी और नवाज शरीफ़ की मुलाकत हुई थी। इसके बाद जम्मू-कश्मीर नियंत्रण रेखा पर तो हालात बिगड़े ही,बिगड़े आतंकी हालातों का पंजाब में विस्तार हो गया है। इस वजह से खालिस्तानी आतंक का संदेह नए सिरे से सिर उठाने को बेचैन दिखाई दे रहा है। दरअसल,भारत की पाकिस्तान नीति अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के कार्यकालों में जिस तरह से अस्पष्ट और पाक परस्त दिखाई दी थी,कमोवेश  वही पुनरावृत्ति मोदी करते दिख रहे हैं। जबकि उनसे सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद के परिप्रेक्ष्य में कड़ाई से निपटने की उम्मीद थी। जून 2001 में जब आगरा में वाजपेयी और उनका मंत्रीमंडल परवेज मुशर्रफ की अगवानी में जाजम बिछा रहे थे,तब पाक के आतंकी संसद पर हमला बोलने की तैयारी कर रहे थे। और जब वाजपेयी नई दिल्ली से लाहौर की यात्रा कर रहे थे,तब पाक सेना कारगिल की पहाड़ियों पर चढ़कर बेजा कब्जा जमा रही थी। इस अवैध कब्जे से मुक्ति के लिए भारत को 550 जवान खोना पड़े थे और 1100 सैनिक घायल हुए थे। गौरतलब है कि 26/11 के मुंबई हमले का मास्टर माइंड हाफिज सईद पाकिस्तान की सड़कों पर भारत के विरुद्ध जहर उगल रहा है और पाकिस्तान सईद की आवाज के नमूने देने का वचन देने के बाद भी मुकर गया है। फरेबों की इन पुनरावृत्तियों से लगता है कि भारत पाक नीति में कोई स्पष्टता नहीं है।

दरअसल 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध की पराजय के घाव पाकिस्तान के लिए आज भी नासूर बना हुआ है। दरअसल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदरा गांधी की दृढ इच्छाशक्ति और सफल कूटनीति का नतीजा था कि उन्होंने पाक के दो टुकड़े कर नए राश्ट्र बांग्लादेश को जन्म दे दिया था। भूगोल बदलने का यह दंशपाक को आज भी चुभ रहा है। इसीलिए जिया उल हक के समय से ही पाक सेना और वहां की गुप्तचर संस्था आईएसआई की यह मंशा बनी हुई है कि भारत में निरंतर अषांति और हिंसा के हालात बने रहें। इस नीति के विस्तार की उसकी क्रूरतम मंशा के चलते पंजाब 1980 से 1990 के बीच जारी उग्रवाद से रक्तरंजित रहा। उग्रवाद के इस विषैले फन को कुचलने का काम 1991 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने किया। उन्होंने ही पहली बार कश्मीर और पंजाब में बढ़ते आतंक की नब्ज को टटोला और अंतरराष्ट्रीय ताकतों की परवाह किए बिना कहा कि ‘यह आतंकवाद पाक द्वारा प्रायोजित छाया-युद्ध है।‘ राव ने केवल हकीकत के खुलासे को ही अपने कत्र्तव्य की इतिश्री नहीं माना,बल्कि बिना किसी दबाव के पंजाब के तात्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और सेना को इस उग्रवाद से निपटने की खुली छूट दे दी। इसी साहस का परिणाम था कि पंजाब से उग्रवाद नेस्तानाबूद हुआ। इसके बाद पंजाब में अब जाकर बेखौफ आतंक सिर उठाते दिख रहा है।

यह तय है कि मुंहतोड़ जबाव दिए बिना पाक बाज आने वाला नहीं है। नवाज शरीफ़ से बात करने का भी कोई सार्थक नतीजा सामने नहीं आना है। क्योंकि पाक सेना,आईएसआई और चरमपंथियों का वजूद ही भारत-विरोधी बुनियाद पर टिका है। दूसरे,पाक द्वारा परमाणु क्षमता हासिल कर लेना भी,उसके दंभ को बढ़ा रही है। इसके अलावा चीन और पाक के बीच जिस औद्योगिक गलियारे के निर्माण में चीन द्वारा 46 अरब डाॅलर का निवेश हो रहा है,उससे पाक सरकार,सेना,आईएसआई और आतंकवादियों के हौसले बुलंद हैं। इसी पूंजी से पाक चीन से हथियार खरीद रहा है,जो आतंकियों के पास सेना के जरिए पहुंचाए जा रहे हैं। इसकी पुष्टि दीनानगर थाना परिसर में मारे गए आतंकियों के पास से मिले हथियारों से हो चुकी है। इनके पास से चीन निर्मित हैंड ग्रेनेड और एके-47 राइफलें बरामद हुई थी। जाहिर है,इस लड़ाई से पाक से निर्यात आतंक का चेहरा तो बेनकाब हुआ ही था,साथ ही मेड-इन चाइना अंकित हथियारों ने यह भी खुलासा कर दिया था कि भारत विरोधी इस लड़ाई में चीन भी अप्रत्यक्ष भागीदारी कर रहा है। कमोवेश यही स्थिति पठानकोट में सामने आई है।

इस ताजा हमले से यह साफ है कि सेना और आईएसआई को शामिल किए बिना पाकिस्तान से बातचीत का कोई मैत्रीपूर्ण हल निकलने वाला नहीं है। इसके उलट पाक कश्मीर की सरहद पर लड़ रहे आतंकियों को यह संदेश देने में कामयाब रहा है कि उसने छाया युद्ध का विस्तार फिर से पंजाब की धरती पर कर लिया है। लिहाजा वे अपनी जगह डटे रहें। इस छद्म लड़ाई से पाक ने भारत सरकार और सेना का ध्यान कश्मीर से भटकाने का भी काम किया है,जिससे सैनिकों की कश्मीर सीमा पर एकमुश्त तैनाती बंट जाए और उसकी जबरन घुसपैठ की आतंकी गतिविधियां चलती रहें। जाहिर है,सीमा पर राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ गई हैं। लिहाजा भारत को पाक नीति अधिक स्पष्ट और पारदर्शी बनाने की जरूरत है। अन्यथा भारत को छद्म युद्ध के पठानकोट और दीनानगर जैसे परिणाम आगे भी  भुगतने होंगे ?

 

2 COMMENTS

  1. मैंने यह आलेख पूरा पढ़ा नहीं,पर टिप्पणी कर रहा हूँ ,इसके लिए क्षमा करेंगे.
    आपने लिखा है,”दोस्त की पीठ पर छुरा कैसे भौंका जाता है,इसकी ताजा मिसाल,पठानकोट के वायुसेना केंद्र पर हुआ आतंकी हमला है।” किस दोस्ती की बात आप कर रहे हैं?पाकिस्तान भारत का मित्र कब से हो गया?अभी कुछ ही दिनों पहले तो मोदी जी ने नवाज शरीफ से हाथ तक नहीं मिलाया था.एक बार आप जाकर उसकी माँ की चरण छू लिए और बस सारे शिकवे शिकायत दूर. पंडित जवाहर लाल नेहरू की चाल पर चलते हुए मोदी जी यह क्यों भूल गए कि नेहरू जी ने तो चीन के साथ दोस्ती में इससे बहुत अधिक ईमानदारी दिखाई थी,फिर भी चीन ने उनको नहीं छोड़ा,तो पाकिस्तान कैसे छोड़ देता?ऐसे पाकिस्तान ने जितना चाहा या सोचा था उतनी बर्बादी तो शायद नहीं कर सका,पर एक सबक अवश्य सीखा गया कि भारत का सैन्य बल उसके गुरिल्ला फ़ौज का भी अच्छी तरह सामना करने में समर्थ नहीं है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here