एक पाती केजरी बाबू के नाम

लख्ते ज़िगर केजरी बाबू,

                  जय आम आदमी की!

चाचा बनारसी की आदत है सबको ‘जय रामजी की’ कहने की। लेकिन बचवा, तोके अगर हम ‘जय रामजी की’ कह देंगे तो तोहरे सेकुलरिज्म पर खतरा पैदा हो जायेगा। इसलिये तोरे भलाई के खातिर हम रामजी का परित्याग कर दिये हैं। तोहार कुर्सी बनल रहे, ओह बदे झूठ-सांच, वचन-पालन, वचन-भंग, भ्रष्टाचार, शिष्टाचार – जो भी करना पड़े, हम करेंगे। बबुआ, ई जनता और मीडिया से हमेशा होशियार रहना। दो दिन में यह बांस पर चढ़ा देती है और तीसरे दिन बिना नोटिस के बंसवा खींच भी लेती है। बड़ी बेमुर्रवत कौम हैं, ये दोनों। अब तुम्हीं देखो न, पांच दिन तक ये दोनों तुम्हारे नाम का कीर्तन राउन्ड द क्लाक करते रहे। छठवें दिन जब तुमने अपने १० बीएचके में गृह-प्रवेश का मुहुरत निकलवाया, तो ये दो कौड़ी के मीडिया रिपोर्टर ईर्ष्या की आग में जलने लगे। तुम्हारे घर का, फ़र्श का, मोडुलर किचेन का, बाथ-रूम का, बालकोनी का, लान का लाइव पोस्टमार्टम करने लगे। अगर हिम्मत हो, तो १०, जनपथ का फोटो दिखायें। हवा खिसक जायेगी। और तुम भी बचवा, इनकी बातों में आ गये। गृह-प्रवेश करने के बदले गृह-निकास कर गये। ऐसे ही इनकी चालों में फंसते गये, तो बहुत जल्दी ये तुमको मुख्यमंत्री कार्यालय से भी निकलवा देंगे। आरे, जब मुख्यमंत्री बने हो, तो मुख्यमंत्री के दफ़्तर से ही काम करोगे न। सचिवालय, वज़ीराबाद के स्लम में तो बनाओगे नहीं। फिर मुख्यमंत्री निवास में रहने से काहे परहेज़ कर रहो हो। या तो उसे बेघर और फूटपाथ पर सोनेवालों का रैन-बसेरा बना दो, या खुद रहो। खाली छोड़ने से का फायदा। मोटे-मोटे चूहे उसमें रहकर आबादी बढ़ायेंगे, दिल्ली का खाद्यान्न चट करेंगे, आम जनता फ़्री में राशन की मांग करेगी, हर्षवर्धन तुम्हारी राह पर चलते हुए तीन दिन में देने का वादा भी कर देगा। फिर खड़ा हो जायेगा तुम्हारी मुसीबतों का पहाड़। बेटा आम आदमी-आम आदमी जपते रहो, पर करो अपने मन की। आई.ए.एस. की नौकरी छोड़कर राजनीति में कोई योग सिखाने तो आये नहीं हो। नफ़ा-नुकसान तो तौल ही लिया होगा। फिर तुम अन्ना हजारे तो हो नहीं कि रालेगन सिद्धि के यादव-मन्दिर में रहकर गुज़ारा कर लोगे। तुम खाते-पीते घर के हो। व्यापार तुम्हारा खानदानी पेशा है। पत्नी इन्कम टैक्स कमिश्नर है। बच्चे स्कूल भी एसी बस से जाते हैं। उन्हें अच्छा खाने-पीने की आदत है। वे अच्छे घर में नहीं रहेंगे, तो क्या झुग्गी में रहेंगे। पत्रकारों को अपना कौशाम्बी, गाज़ियाबाद वाला ४ बीएचके कभी मत दिखाना। वे चार एसी देखकर चकरा जायेंगे। शीला दीक्षित की कुर्सी पर तो कब्ज़ा कर ही लिया, घर पर भी कब्ज़ा करो। कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।

आजकल कांग्रेस से तुम्हारे गठबन्धन पर तरह-तरह की टीका-टिप्पणी हो रही है। तनिको मत घबराना। गठबन्धन को राष्ट्रीय धर्म का दर्ज़ा प्राप्त है। जो भाजपाई तुम्हारे कांग्रेस की गोद में बैठने की आलोचना पानी पी-पीकर कर रहे हैं, उन्हें याद दिला दो कि उनके आदर्श नेता अटलजी ने भी छः साल तक गठबन्धन सरकार चलाई थी। तुमने तो सिर्फ एक से गठबन्धन किया है। एक से गठबन्धन कर ज़िन्दगी भर साथ निभानेवाले को मर्यादा पुरुषोत्तम और साथ निभानेवाली को पतिव्रता कहते हैं। माना कि कांग्रेस हिन्दुस्तान की सबसे भ्रष्ट पार्टी है, पर है तो वफ़ादार। तुमने उसकी जितनी आलोचना की है, उसका अगर १% भी अपनी बीवी का कर देते, तो कभी का तलाक हो चुका होता। तुम्हारे और कांग्रेस की पाक मुहब्बत पर जलने वालों की नज़र न लगे। बुरी नज़र वाले, तेरा मुंह काला।

स्वाधीन भारत का इतिहास गवाह है कि हिन्दुस्तान के सभी नेता कांग्रेस को गाली देकर ही आगे बढ़े हैं। तुमने कोई अनोखा काम तो किया नहीं है। स्व. वी.पी.सिंह बोफ़ोर्स का दस्तावेज़ लेकर हिन्दुस्तान भर घूमे। कहते थे कि प्रधान मंत्री बनते ही राजीव गांधी को गिरफ़्तार कर लेंगे और दलाली का पैसा खज़ाने में जमा करायेंगे। क्या किया सबको मालूम है। तुमने भी शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार की ३७० पेज की फाईल चुनाव के पहले जनता को दिखाई थी। जब देश का एक प्रधान मंत्री अपने चुनावी वादे को पूरा नहीं कर पाया, तो दिल्ली जैसे अपूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री से ऐसी आशा करना क्या वाज़िब है। बेटा, कुत्ता भी जिसकी रोटी खाता है, उसके आगे दुम हिलाता है। तुम्हारे आगे तो शीला ने सोने की थाली में जिमना परोसा है। जिमो रजा, जी भर के जिमो। नमक हरामी मत करना। संकोच मत करना। लालू, मुलायम, मायावती, सिबू सोरेन, शरद पवार, नीतिश आदि-आदि, कितने नाम गिनायें, सभी तो जिम ही रहे हैं। तुम अपवाद नहीं हो। अच्छा किया, हर्षवर्धन को सबूत लाने का जिम्मा सौंप दिया।

बचवा, तुम्हारी बुद्धि का लोहा पूरा हिन्दुस्तान मान गया। फ़ोर्ड फ़ाउन्डेशन भी मानता है, भटकल भी मानता है और विनायक सेन भी मानता है। मैगसेसे पुरस्कार कोई फोकट में तो मिलता नहीं है? दिल्ली वालों को बिजली-पानी में उलझाये रखो। इन लोगों को ओसामा बिन लादेन ने अगर फ़्री बिजली पानी देने का वादा किया होता, तो उसके लिये दिल्ली में परमाणु निरोधक बंकर बना देते, प्रधान मंत्री बनाते अलग से। वह आज भी जीवित रहता। पाकिस्तान कश्मीर को ले ले, चीन मेघालय को कब्ज़िया ले, नक्सलवादी देश को तबाह कर दें, आतंकवादी हत्या का ताण्डव करते रहें, प्याज़ सौ रुपये किलो बिकता रहे, लाखों करोड़ रुपये स्विस बैंक में पड़ा रहे, कोई बात नहीं। इन विषयों पर बोलने की गलती कभी मत करना। बस बिजली-पानी पर बोलना। चलते-चलते एक सलाह और – राजमाता, राज जमाता और शहज़ादे की अच्छी खिदमत करना। यह कभी मत भूलना कि वे क्वीन हैं और तुम प्यादे हो। चाचा की बात को गंठिया लो।

मैं यहां ठीके-ठाक हूं। बुआ और बहिना के यहां खिचड़ी भेजना है। पाकेट में एको छदाम नहीं है। दिहाड़ी की कमाई से नमक, मुरई और रोटी का इन्तज़ाम हो जाता है। अपना सालाना बज़ट तुम्हारे एक बच्चे की एक महीने की फीस से ज्यादा नहीं है। कुछ मनी आर्डर से भेज दोगे तो खिचड़ी भी भेज देंगे और एक कथरी आ एगो कम्बल भी खरीद लेंगे। बाल-बच्चों को हमार प्यार-दुलार कहना और दुल्हिन को आशीर्वाद। इति शुभ।

तुम्हारा अपना

चाचा बनारसी

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विपिन किशोर सिन्हा
जन्मस्थान - ग्राम-बाल बंगरा, पो.-महाराज गंज, जिला-सिवान,बिहार. वर्तमान पता - लेन नं. ८सी, प्लाट नं. ७८, महामनापुरी, वाराणसी. शिक्षा - बी.टेक इन मेकेनिकल इंजीनियरिंग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. व्यवसाय - अधिशासी अभियन्ता, उ.प्र.पावर कारपोरेशन लि., वाराणसी. साहित्यिक कृतियां - कहो कौन्तेय, शेष कथित रामकथा, स्मृति, क्या खोया क्या पाया (सभी उपन्यास), फ़ैसला (कहानी संग्रह), राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं (शोध पत्र), संदर्भ, अमराई एवं अभिव्यक्ति (कविता संग्रह)

8 COMMENTS

  1. चाचा बनारसी के चिठ्ठी ऐसे तो केजरी बाबू के नाम लिखाइल बा. एह से हमारा त दाल भात में ऊंट के ठेहुना न बने के चाहत रहे.बाकि इ चिठ्ठी अइसन माध्यम से भेजल गइल बा कि केजरी बाबू एकरा के पढस चाहे ना ,बाकि दुनिया जहान जरूरी पढ़ लिही. एह से हम पढ़ लिहली,त चाचा बनारसी के बुरा ना माने के चाहि.ऐसे हमार उमरिया भी अइसन हो गइल बा कि दोसरा के मामला में टाँग अडावल आदत बन गइल बा.
    पहिले त चाचा बनारसी के लागत होई कि चार कमरा वाला मकान बहुत आलिशान होई,त हम जब ओह मकान में केजरी बाबू से विचार विमर्श करे गइल रहीं,त बिजली कटल रहे. इन्वेर्टर से बैठका में दू मेसे एक पंखा चलत रहे.नौकरानी दरवाजा खोलली त हम ओहि के नीचे वाला कुर्सी पर बैठ गईली. केजरी बाबू अइले त हम कुर्सी से खड़ा होखे लागली,बाकि उहाँके के हमारा ओहि कुर्सी पर बैठा देलिनआ अपने कुर्सी के बगल वाला दीवान पर बैठ गइलीं .हम उल्टा बैठे के कहली तो हमर ऊंचाई के ओर इशारा करके बोललन कि दीवान के ऊंचाई कुर्सी के ऊंचाई से जादा बा, एह से ऐसहि ठीक रही.बैठका बहुत ही सादा. आम मध्य वर्गीय आदमी के बैठक के तरह ही.
    हमरा विचार से अइसन आदमी से दिल्ली के जनता जे आस लगवले बा, त ओकरा के भरसक पूरा करे के उम्मीद त बा. रह गइल उनकरा शीला के विरुद्ध कारर्वाई के त उत साफ़ कहलन कि ३७० पेज के दस्तावेज अखबार में छपल समाचार के आधार पर बनावल गइल बा.अब ओह सब खातिर सबूत जुटावल जा ता. अगर एकरा में हर्षवर्धन जी भी आपन जोगदान दे दीहें ,त कौनो हर्ज हो जाई का?.
    आउर सब कुशल मंगल बा.
    चाचा के बड़ भाई.

    • अब जोड़ा भेंटाइल बा (केवल भोजपूरी बोलने में)…. जियत रहा जा… चाचा भतीजा.

      सादर

  2. बहुत शानदार व्यंग सिन्हा साहब……. अखिल भारतीय रायता बिखेरन पार्टी.

  3. आदरणीय,
    बन्धुवर
    नववर्ष आपके लिये मंगलमय हो तथा लेखनी की धार ऐसी ही बनी रहे। पाती केजरीवाल पढा। भाषा की रवानी एवं अन्दाजे बया दोनो ही दिलचस्प है। मेरी बधाई स्वीकार करे।
    आपका
    डा. अरविन्द कुमार सिंह
    उदय प्रताप कालेज
    वाराणसी
    मेा. 09450601903

  4. चाचा बनारसी के चिठ्ठी ऐसे तो केजरी बाबू के नाम लिखाइल बा. एह से हमारा त दाल भात में ऊंट के ठेहुना न बने के चाहत रहे.बाकि इ चिठ्ठी अइसन माध्यम से भेजल गइल बा कि केजरी बाबू एकरा के पढस चाहे ना ,बाकि दुनिया जहान जरूरी पढ़ लिही. एह से हम पढ़ लिहली,त चाचा बनारसी के बुरा ना माने के चाहि.ऐसे हमार उमरिया भी अइसन हो गइल बा कि दोसरा के मामला में टाँग अडावल आदत बन गइल बा.
    पहिले त चाचा बनारसी के लागत होई कि चार कमरा वाला मकान बहुत आलिशान होई,त हम जब ओह मकान में केजरी बाबू से विचार विमर्श करे गइल रहीं,त बिजली कटल रहे. इन्वेर्टर से बैठका में दू मेसे एक पंखा चलत रहे.नौकरानी दरवाजा खोलली त हम ओहि के नीचे वाला कुर्सी पर बैठ गईली. केजरी बाबू अइले त हम कुर्सी से खड़ा होखे लागली,बाकि उहाँके के हमारा ओहि कुर्सी पर बैठा देलिनआ अपने कुर्सी के बगल वाला दीवान पर बैठ गइलीं .हम उल्टा बैठे के कहली तो हमर ऊंचाई के ओर इशारा करके बोललन कि दीवान के ऊंचाई कुर्सी के ऊंचाई से जादा बा, एह से ऐसहि ठीक रही.बैठका बहुत ही सादा. आम मध्य वर्गीय आदमी के बैठक के तरह ही.
    हमरा विचार से अइसन आदमी से दिल्ली के जनता जे आस लगवले बा, त ओकरा के भरसक पूरा करे के उम्मीद त बा. रह गइल उनकरा शीला के विरुद्ध कारर्वाई के त उत साफ़ कहलन कि ३७० पेज के दस्तावेज अखबार में छपल समाचार के आधार पर बनावल गइल बा.अब ओह सब खातिर सबूत जुटावल जा ता. अगर एकरा में हर्षवर्धन जी भी आपन जोगदान दे दीहें ,त कौनो हर्ज हो जाई का?.
    आउर सब कुशल मंगल बा.
    चाचा के बड़ भाई.

  5. हृदय को छू लेने वाली व्यंग्य शैली में आपने कड़वी सच्चाई की परतें खोल दी हैं …तोहार कउनो जवाब नाहीं, चाचा बनारसी! …लिखते रहियेगा!

  6. न इनके पास कोई चिंतन है, न, चिंतक है।
    न कोई गढी हुयी, राष्ट्रीय नीति है।
    न गहरा विचार है।
    विचार केवल एक है, कि जनता जो चाहती है, उसका नारा रचो, और घोषणा करते रहो।
    ऐसी वैचारिक भ्रष्टाचारी पार्टी, जो, “लग गया तो तीर, नहीं तो तुक्का” वाली – ’रण नीति’ पर चल रही है।
    ऐसे प्रयोगशील शासक से ईश्वर भारत को बचाए।
    ६ नेताओं की पार्टी में भी एकवाक्यता नहीं है।
    ये कब तक “आ. आ. और पा”===”आजा, आजा, पाजा” और फँस जा;करती रहेगी?
    भारत का सूर्य ना ऊगे, यह अमरिका का उद्देश्य है। आ आ पा को उसे सफल करना है, मोदी को रोककर।
    इतना ’पारदर्शक सत्य’ भी तो समझ लो।
    —पर लेखक की “भासा को परनाम”।
    बहुत चोटदार आलेख।

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