एक थे मुन्नालाल‌

दुनियाँ में साहित्य और भाषा का बड़ा महत्व है|मुहावरे दार भाषा हो तो क्या कहने,सुनने वाले की तबियत बाग बाग हो जाती है|अब देखिये न एक मुहावरा है जैसे को तैसा|यह मुहावरा दैनिक जीवन में बड़े काम का है|कई लोग इस मुहावरे का प्रायोगिग रूप से उपयोग करते हैं|अंग्रेजी में भी टिट फार टेट की बड़ी पूंछ होती है|बहादुरी के और बदले की भावना से किये गये कार्यों में इस भव्य एवं दिव्य मुहावरे का खूब बखान होता है|

मुन्नालाल को भी इस मुहावरे ने बड़े फायदे करवाये| मुन्नालालजी पाँचवीं कक्षा में पढ़ते थे| उन दिनों नियम था कि जो विद्यार्थी पाँचवीं की तिमाही परीक्षा में कक्षा में प्रथम आते थे उन्हें आगे आठवीं कक्षा तक छात्रवृति मिलती थी| उन दिनों यह राशि बारह रुपये प्रतिमाह थी|मुन्नालाल योग्य उम्मीदवार थे,पढ़ने में तेज कुशाग्र बुद्धि उन्हें निश्चित ही प्रथम आना था|सभी शिक्षकों का यही मत था कि मुन्नालाल अति विशिष्ठ तीक्ष्ण दिमाग वाले विद्यार्थी हैं और उनकी बराबरी करने वाला उनके आसपास कोई और विद्यार्थी नहीं था|परीक्षा हुई और परिणाम घोषित होने की तिथि नज़दीक आने लगी तो कुछ विश्वस्थनीय सूत्रों से हवा उड़ने लगी कि खेमचंद्र परीक्षा में प्रथम आये हैं|कक्षा शिक्षक को बिल्कुल भरोसा नहीं हुआ|उन्होंने भीतर तक घुसकर जानकारी ली तो मालूम पड़ा एक शिक्षक महोदय की खेमचंद्र पर विशेष मेहरवानी हो गई थी|तीन विषयों के पेपर उन्होंनें जांचे थे और पीछे के दरवाजे से खेमचंद्र को सर्वाधिक अंक देकर उसे प्रथम लाने की नीव रख दी थी|जासूसी का यह असर हुआ की सबको पता लग गया कि शिक्षक महोदय ने दो सौ रुपये लेकर अपने प्रिय शिष्य को सर्वाधिक अंक दे दिये थे| कुल प्राप्तांकों में मुन्नालाल से उसके दो अंक ज्यादा थे|अब क्या था जैसे को तैसे वाला सूत्र यहां उपयोग में लाया गया|गणित विषय में मुन्नालाल और खेमचंद्र के बीच चार अंक का अंतर था मुन्नालाल को चार अंक अधिक मिले थे|खेमचंद्र को चालीस और मुन्नालाल को चवालीस अंक थे|जैसे को तैसे वाले मुहावरें ने पूर्णांक पचास से बढ़ाकर सौ कर दिये और अब चार के बदले आठ का अंतर आने से मुन्नालाल प्रथम आ गये|हालाकि मुन्नालाल के पक्ष में बेईमानी तो की गई किंतु बेईमानी के विरुद्ध बेईमानी को गलत नहीं माना गया है,और जैसे को तैसा वाला फार्मूला अपनाया गया |मुन्नालाल को चार साल तक छात्रवृति मिली|झूठ पर सत्य कि विजय,जैसे को तैसा वाला मुहावरा क्या आज की आवश्यकता नहीं है?

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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