दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा राजभाषा अधिनियम की खुली अवहेलना

महामहिम राष्ट्रपति महोदय,

राष्ट्रपति भवन,

नई दिल्लीSupreme-Court

मान्यवर,

दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा राजभाषा अधिनियम की खुली अवहेलना 

मान्यवर को ज्ञात ही है कि राजभाषा अधिनियम ,1963 की धारा 3(3) के अनुसार समस्त संकल्प, कार्यालय टिप्पण, साधारण आदेश, नियम, अधिसूचना, प्रशासनिक/अन्य प्रतिवेदन या प्रेस विज्ञप्ति, संसद के समक्ष रखे जाने वाले प्रशासनिक/अन्य प्रतिवेदन और राजकीय कागज-पत्र  अंग्रेजी व हिंदी दोनों भाषाओँ में होने चाहिए| अधिनियम की वास्तविक व भावनात्मक अनुपालना में,  समस्त कार्य – वितीय, प्रशासनिक, अर्ध-न्यायिक आदि – हिंदी भाषा में संपन्न किये जाने चाहिए|

संविधान के अनुच्छेद 351 में प्रावधान है कि संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाये, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक  संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम  बन सके| संविधान के अनुच्छेद 344(6) के अनुसार, अनुच्छेद 343 में किसी बात के होते हुए भी , राष्ट्रपति खंड 5 में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात उस सम्पूर्ण प्रतिवेदन के या उसके किसी  भाग के अनुसार निदेश दे सकेगा|

 

संसदीय राजभाषा समिति की संस्तुति संख्या 44 को स्वीकार करने वाले आपके आदेश को प्रसारित करते हुए राजभाषा विभाग के (राजपत्र में प्रकाशित)  पत्रांक I/20012/07/2005-रा.भा.(नीति-1) दिनांक 02.07.2008 में कहा गया है, “जब भी कोई मंत्रालय/विभाग या उसका कोई कार्यालय या उपक्रम अपनी वेबसाइट तैयार करे तो वह अनिवार्य रूप से द्विभाषी तैयार किया जाए| जिस कार्यालय का वेबसाइट केवल अंग्रेजी में है उसे द्विभाषी बनाए जाने की कार्यवाही की जाए|”

संसदीय राजभाषा समिति की रिपोर्ट खंड 5 में की गयी निम्न संस्तुतियों को राष्ट्रपति महोदय द्वारा  पर्याप्त समय पहले, राज पत्र में प्रकाशित  पत्रांक I/20012/4/92- रा.भा.(नीति-1)  दिनांक 24.11.1998 से, ही स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है| संस्तुति संख्या (16)-उच्च न्यायालयों के निर्णय, डिक्रियों व आदेशों में राज्य की राज भाषा अथवा हिंदी का प्रयोग किया जाना चाहिए| किन्तु दिल्ली उच्च न्यायालय ने  अभी तक उक्त कानूनी आदेशों की अनुपालना की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है|

इस प्रसंग में मैंने पूर्व में दिनांक 09.12.12 को निवेदन किया था जिस पर राजभाषा विभाग ने अपने पत्रांक 12019/17/2010- राभा (शि) दिनांक 03.04.13  द्वारा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, दिल्ली उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय आदि से अपेक्षा की थी कि आपके आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित की जाए| राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने (संलाग्नानुसार) सकारात्मक दिशा में कार्य प्रारम्भ कर दिया है तथा उच्चतम न्यायालय ने ( संलाग्नानुसार) इस विषय पर विचारण प्रारम्भ कर दिया है किन्तु दुर्भाग्यवश दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा आपके गौरवशाली कार्यालय के उक्त आदेशों की बारबार उन्मुक्त अवहेलना एक गंभीर विषय है|  दिल्ली उच्च न्यायालय के महापंजीयक ने राजभाषा विभाग के पत्रांक 12019/17/2010- राभा (शि) दिनांक 03.04.13 पर कोई कार्यवाही किये बिना ही उसे दिनांक 23.04.13 को (संलग्नानुसार) नत्थीबद्ध कर दिया है|

बड़ी विडम्बना है कि जिन लोक सेवकों को जनता के धन पर कानून की अनुपालना के लिए नियुक्त किया जाता है वे स्वयं कानून और आपके आदेशों का बेहिचक निस्संकोच उल्लंघन व उपहास कर रहे हैं  व स्वयम को ही कानून समझने की गंभीर भूल कर रहे हैं| वे पद और शक्ति के मद में चूर तथा अहम भाव से गंभीर रूप से ग्रसित हैं| इस प्रकार के चरित्र वाले अयोग्य व्यक्ति को गरिमामयी न्यायिक पद पर नियुक्त करने में आपके कार्यालय ने निश्चित ही भूल की है|

 

अत: अब आपसे विनम्र अनुरोध है कि राजभाषा कानून सम्बंधित प्रावधानों को दिल्ली उच्च न्यायालय में प्रभावी ढंग से लागू करवाया जाये और अवज्ञाकारी व हठधर्मी कार्मिक के विरुद्ध उचित अनुशासनिक कार्यवाही भी की जाये ताकि कानून का राज बना रह सके और जनता को यह सन्देश नहीं जाए कि कानून तो मात्र कमजोरों को पीसने के लिए बनाए जाते हैं|

संलग्न वेबपेज से आपको ज्ञात होगा कि जब केलिफोर्निया (अमेरिका) के न्यायालय अपनी वेबसाइट को हिंदी भाषा में अनुदित कर उपलब्ध करवा सकते हैं तो फिर भारतीय न्यायालयों को  हिंदी भाषा के प्रयोग से क्या और क्यों परहेज है|

इस प्रसंग में आप द्वारा की गयी कार्यवाही से अवगत करावें तो मुझे प्रसन्नता होगी|

सादर ,

दिनांक: 29/05/2013                                              भवदीय
मनीराम  शर्मा

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