खुला पुस्तकालय जंगल में

बालवाटिका पढ़ पढ़कर, कालू बंदर हो गये विद्वान|

इसी बात का हाथीजी ने ,शेर चचा का खींचा ध्यान|

देखो तो यह कालू बंदर, पढ़ लिखकर हो गया महान|

हम तो मात्र हिलाते रह गये ,अपने पूँछ गला और कान|

बाल वटिका बुलवाने का ,खुलकर किया गया एलान|

शाल ओढ़ाकर बंदरजी का, किया गोष्ठी में सम्मान|

पढ़ने लिखने से ही आता, है दुनियादारी का ग्यान|

खुला पुस्तकालय जंगल में, पढ़ते हैं सब चतुर सुजान|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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