बेटा सो जा वरना बाबा पकड़ ले जाएगा

पंडित सुरेश नीरव

बाबा कालेधन के सख्त खिलाफ हैं। वो विदेश से कालाधन वापस मंगाकर ही छोड़ेंगे। बाबा का गुस्सा बड़ा अहिंसक है। बाबा बड़े गुस्से में हैं। लीजिए गुस्से में बाबा सरकार को धमकाने सीधे दिल्ली ही पहुंच गए। अबला सरकार भी बाबा के गुस्से के आगे थर-थर कांपने लगी। उसने अपने दूत बाबा के पास छोड़ दिए। दूतों ने गुस्साए बाबा से कहा-बाबा गुस्से में काम खराब हो जाता है। थोड़े कूल-कूल माहौल में मिलजुलकर कोई डील करलें। बाबा हुंकारे-डील अपनी जगह है और गुस्सा अपनी जगह। मामला कालेधन की वापसी का है। सरकार डील कर लेगी तो हम इस बात पर गुस्सा होंगे कि हमसे डील क्यों की। और अगर डील नहीं की तो हम इस बात से गुस्सा होंगे कि क्या हमारा डील-डौल इतना भी नहीं कि सरकार हमसे डील न करे। हम हठ योगी हैं। सरकार के दूतों ने पैर पकड़ लिए। और मन ही मन बुदबुदाए कि बाबा अगर तुम गुरू हो तो हम भी गुरूघंटाल हैं। कोरस में सरकारी मुखौटे बोले- बाबा आपकी सारी मांगें मंजूर हैं। अब आप गुस्सा थूक दीजिए। और इस पर्चे पर दस्तखत कर दीजिए। बाबा बोले हम गुस्से में हैं। दस्तखत हमारे सचिव से करा लीजिए। हम बहुत गुस्से में हैं। हमारा गुस्सा कल दोपहर तक रहेगा। हम गुस्सा भी यम-नियम और संयम से करते हैं। और फिर ये तो मामला भी कालेधन का है। बाबा गुस्से में में थे। उन्होंने सरकारी मुखौटों पर लिखी इबारत नहीं पढ़ी कि– सावधान आदमी काम पर हैं। और काम भी सरकारी। रात्रि हुई। उल्लेखनीय है कि भारत की राजधानी में रात नियमपूर्वक रात में ही होती है। गुस्से के गुनगुने आनंद में डूबे, अनशन के सपने देखते हुए बाबा सो गए। उनके शिष्य भी सो गए। और इधर सकारी करिंदे काम पर थे। बस फिर क्या था-सावधानी हटी कि दुर्घटना घटी। बाबा के अहिंसक गुस्से को सरकारी गुस्से ने मौका देखकर धर दबोचा। फिर जो हुआ वो सबके सामने है। बुरा हुआ बहुत बुरा हुआ। इत्त्ता बुरा हुआ कि बुरे को भी बुरा लगा। मगर बुरे से भी बुरा तो ये हुआ कि अब मां बच्चे से कहती है कि बेटा सो जा वरना बाबा पकड़ ले जाएगा तो बच्चा हंसते हुए कहता है कि मम्मी सोते हुए बाबा को तो पहले ही पुलिस पकड़ ले गई। वो क्या हमें पकड़ने आएगा। लीजिए साहब बाबा से अब बच्चे भी नहीं डरते तो फिर कालेधन वाले क्या डरेंगे। क्यों डरेंगे।

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