यह है, अपना बिहार!

-फखरे आलम-
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यह महज इत्तेफाक ही होता है कि कभी-कभी बिहार का क्षेत्रीय न्यूज चैनल देखने का अवसर प्राप्त होता है और इसी क्षेत्रीय चैनलों के माध्यम से अपों का हाल-चल जानने का अवसर प्राप्त होता रहता है। मगर फिर भी हम प्रदेश की वास्तविक हकीकत से महरूम रह जाते हैं। कभी-कभी मन अशांत होता है। कभी-कभी दिल की धड़कनें तेज हो जाती है। कभी अपने मातृभूमि की वस्तुस्थिति बेचैन कर देती है। मगर इन सब के मध्य प्रदेश सरकार की ओर से चलाऐ जाने वाले विज्ञापनों और प्रचारों में मैं कभी कभी खो जाता हूं। जब जब विज्ञापन के क्रम में यह गीत बजता है कि यह है! अपना बिहार, जिसमें प्रदेश की खोई हुई प्रतिष्ठा और गरिमा का बखान किया जाता है। प्रदेश को समृद्ध और उच्च संस्कृति एवं शिक्षा का केन्द्र दिखाया जाता है। तो मेरा मन खुशी ओर सुख के समुन्दर में गोते खाने लगता है और कल्पना से आगे मैं प्रदेश को ऐसे ही स्थिति में देखने लगता हूं।
बिहार, जनसंख्या की दृष्टि से देश का तीसरा बड़ा प्रदेश है। जिसकी जनसंख्या करीब-करीब साढ़े दस करोड़ के आसपास है। जिसके मात्रा 63 प्रतिशत लोग पढ़े लिखे हैं। अगर आप विदेह, वैशाली, अंग, वज्जिसंघ और मगध् साम्राज्य को पढ़े तो आपका मन भी उस मोर के भाँति मुरझा जायेगा जिसे अपने पैर को देखकर आती है। मैं भी जब वर्तमान को देखता हूं और बीते दिनों के शासक बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदयिन, शिशुनाग, कालाशोक, नन्दवंश, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक और बिन्दुसार को पढ़ते हैं। उन्होंने न केवल बिहार, भारत, बल्कि विश्व को अपने शासन प्रणाली, दयालुता और भारतीय सभ्यताओं और संस्कृति में रंग डाला था। सम्राट अशोक और उनके उत्तराधिरियों ने विश्व को संस्कार और धर्म दिए। वह धर्म जो भारत से लगभग लुप्त हो गए, मगर आज भी विश्व पर राज करता है। अशोक और भगवान बुद्ध का धर्म आज भी विश्व के कोने-कोने में प्राचीन भारतीय सभ्यताओं और संस्कृतियों को संजोए हुए है। आज हम संस्कृत में शपथ ग्रहण करके अपना दायित्व समाप्त कर देते हैं। शुंग, कणव, कुषाण, गुप्त वंशों का इतिहास भारत का सवर्ण युग रहा है, जिसका संचालन इसी जमीन से होता था। गोपाल, धर्मपाल, देवपाल और महिपाल ने भी भारतीय राजनीति इतिहास को अपने शासन से प्रभावित किया था। वैसे बिहार की धरती पर प्राचीन हिन्दु धर्म की सभ्यता और संस्कृतियों की अमिट छाप है। मगर यह प्रदेश दो प्रमुख धर्म और जैन और बौद्ध धर्म का उद्गम स्थल के नाम से जाना जाता है। मगर इसी स्थान पर आज यह दोनों धर्म उपेक्षा और बेगानगी के आलम में है। प्रदेश इन दोनों धर्मों की कृपा से समृद्ध और सम्पन्न हो सकता था। मगर बिहार का कमान जिस-जिस के हाथों में गया वह जैन और बौद्ध धर्म की गरिमा और महिमा को नहीं समझ सके। इन दोनों धर्मों के अनुयायियों के सहयोग और उनके निवेश से बिहार का काया पलट सकता है।

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