पाकिस्तानी हिंदुओं की सुध लेती सरकार

HinduPakistanअरविंद जयतिलक
याद होगा पिछले वर्ष धार्मिक वीजा पर भारत आए पाकिस्तानी हिंदू परिवारों ने भारत सरकार को पत्र लिखकर भारतीय नागरिकता की मांग की थी और साथ ही यह भी पीड़ा जताया था कि अगर वे पुनः पाकिस्तान लौटते हैं तो उन्हें जबरन मुसलमान बना दिया जाएगा। उनके दुख-दर्द को समझते हुए केंद्र सरकार ने उनकी वीजा की अवधि बढ़ा दी और अब दो कदम आगे बढ़ते हुए उन्हें कई तरह की सुविधाओं से भी लैस करने का निर्णय ली है। अब लंबी वीजा पर भारत आए पाकिस्तानी शरणार्थियों को आधार, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना आसान होगा और साथ ही वे भारत में घर भी खरीद सकेंगे। इसके अलावा उन्हें किसी भी बैंक में अपना खाता खुलवाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की मंजूरी नहीं लेनी होगी। वे जिस राज्य में रह रहे हैं, वहां कभी भी आने-जाने की छूट होगी और साथ ही वे अपने वीजा दस्तावेजों को भी एक से दूसरे राज्य में स्थानान्तरित कर सकेंगे। उनकी माली हालत को ध्यान में रखते हुए ही सरकार ने नागरिक के तौर पर होने वाले रजिस्टेªशन फीस जो कि अभी तक 15 हजार रुपए था, से घटाकर 100 रुपए करने की तैयारी में है। गौरतलब है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान से हर वर्ष हजारों हिंदू भारत आते हैं। पीएमएल-एन नेता और पाकिस्तानी हिन्दू काउंसिल के संस्थापक डाॅक्टर रमेश कुमार वनकवानी की मानें तो पिछले आधा दशक में सिर्फ पाकिस्तान से 25000 से अधिक हिंदू परिवार भारत आए हैं। उन्होंने यह आंकड़ा पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के हवाले से दी है। गौरतलब है कि पाकिस्तान का कट्टरपंथी जमात सिंध, खैर-पख्तूनवा और ब्लूचिस्तान में हिंदुओं को डरा-धमकाकर पाकिस्तान छोड़ने को मजबूर कर रहा है। हालात ऐसे बन चुके हैं कि हिंदू परिवारों विशेष रुप से लड़कियों का बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। उनका जबरन धर्मांतरण कराया रहा है। याद होगा दो साल पहले सिंध प्रांत के जैकोबाबाद में एक नाबालिग हिंदू लड़की मनीषा का अपहरण कर उसे जबरन इस्लाम कबूलवाया गया। सुनील नाम के एक हिंदू किशोर को एआरवाई डिजिटल चैनल के स्पेशल रमजान लाईव शो में इस्लाम धर्म स्वीकार करते दिखाया गया। इसी तरह 19 वर्षीय हिंदू लड़की रिंकल कुमारी और भारती का अपहरण और फिर जबरन इस्लाम धर्म कबूलवाने की देश-दुनिया में चतुर्दिक निंदा हुई। पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ ज्यादती, हत्या और लड़कियों का जबरन धर्मांतरण नयी बात नहीं है। भारत विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान में हिंदुओं को खत्म करने की साजिश चल रही है। विभाजन के समय पाकिस्तान में 15 फीसद हिंदू थे जो आज उनकी आबादी घटकर एक फीसद से भी कम रह गयी है। अल्पसंख्यक हिंदुओं को खत्म करने के लिए कट्टरपंथी ताकतें दो रास्ते अपना रही हैं। एक उनकी हत्या और दूसरा जबरन धर्मांतरण। पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत और ब्लूचिस्तान में स्थिति और भी भयावह है। यहां अल्पसंख्यक हिंदू-सिख समुदाय से जबरन जजिया वसूला जा रहा है। जजिया न चुकाने वाले हिंदू-सिखों की हत्या की जा रही है। उनकी संपत्तियां लूटी जा रही है। मंदिरों और गुरुद्वारों को जलाया रहा है। सच तो यह है कि पाकिस्तान में हिंदू होना अपराध हो गया है। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) की रिपोर्ट में भी कहा जा चुका है कि देश में हिंदू और सिख समुदाय के लोगों की स्थिति भयावह है। वे गरीबी-भूखमरी के दंश से जूझ रहे हैं। आर्थिक रुप से विपन्न व बदहाल हैं। वे आतंक, आशंका और डर के साए में जी रहे हैं। एचआरसीपी की रिपोर्ट से भी उद्घाटित हो चुका है कि हिंदू लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। धर्म परिवर्तन का ढंग भी बेहद खौफनाक, अमानवीय व बर्बरतापूर्ण है। हिंदू लड़कियों का पहले अपहरण कर उनके साथ बलात्कार किया जाता है और फिर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया जाता है। उपर से त्रासदी यह कि जब मामला पुलिस के पास पहुंचता है तो पुलिस भी बलात्कारियों पर कार्रवाई के बजाए हिंदू अभिभावकों को ही प्रताड़ित करती है। उन्हें मानसिक संताप देने के लिए बलात्कार पीड़ित नाबालिग लड़की को उनके संरक्षण में देने के बजाए अपने संरक्षण में रखती है। पुलिस संरक्षण में एक अल्पसंख्यक लड़की के साथ क्या होता होगा सहज अनुमान लगाया जा सकता है। बाद में पुलिस कहानी गढ़ देती है कि लड़की ने इस्लाम कबूल कर लिया और वह अपने पुराने धर्म में लौटना नहीं चाहती। गौर करने वाली बात यह है कि सरकार व पुलिस ने बलात्कारियों और मजहबी कट्टरपथियों को संरक्षण और धर्मांतरण कराने की पूरी छूट दे रखी है। लिहाजा उनके मन में कानून का भय नहीं है। पाकिस्तान का अल्पसंख्यक समुदाय एक अरसे से अपनी सुरक्षा और मान-सम्मान की रक्षा की गुहार लगा रहा है। यदा-कदा कुछ सामाजिक संगठन अल्पसंख्यकों के पक्ष में आवाज उठाने की कोशिश करते हैं, लेकिन सरकार व कट्टरपंथी संगठन उन्हें डरा धमकाकर चुप करा देते हैं। पाकिस्तानी सीनेट की स्थायी समिति बहुत पहले ही हिंदुओं पर अत्याचार की घटनाएं रोकने के लिए सरकार को ताकीद कर चुकी है। लेकिन किसी भी सरकार ने इस दिशा में ठोस पहल नहीं की। नवाज सरकार भी हाथ पर हाथ धरी बैठी है। जाहिर है कि अल्पसंख्यकों को लेकर उसकी मंशा और नीयत ठीक नहीं है। दरअसल सरकार को डर है कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने पर कट्टरपंथी ताकतें नाराज हो जाएंगी। यही वजह है कि पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति दोयम दर्जे की हो गयी है। अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने के नाम पर महज एक ईसाई सांसद तय किया जाता है। इसके अलावा कानूनी तौर पर भी धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव होता है। एक ही अपराध के लिए अलग-अलग दंड का प्रावधान है। अल्पसंख्यकों की उंगलियां काटना, अंग-भंग करना और हाथ-पैर तोड़ना आम बात है। जीवित अल्पसंख्यकों के साथ ही नहीं बल्कि उनके मृतकों के साथ भी अमानवीय व्यवहार होता है। कट्टरपंथी ताकतें हिंदुओं को अपमानित करने के लिए उनके शवों की जलती चिता पर पानी डालते हैं। अधजले शवों को घसीटकर गंदे नाले में फेंकते हैं। शवों पर थूकते हैं। यही नहीं हिंदू बस्तियों से कई सौ किलोमीटर दूर श्मशान स्थल की व्यवस्था की गयी है। यह दर्शाता है कि पाकिस्तान में हिंदुओं की स्थिति जानवरों से भी बदतर है। पाकिस्तान का बहुसंख्यक समाज भी हिंदुओं को नफरत की निगाह से देखता है। पाकिस्तानी स्कूलों की किताबें अल्पसंख्यकों विशेष रुप से हिंदुओं के खिलाफ नफरत और असहिष्णुता से अटी पड़ी हैं। स्कूलों के मजहबी शिक्षक धार्मिक अल्पसंख्यकों को इस्लाम के शत्रु की तरह पेश करते हैं। उन्हें काफिर बताते हैं। बच्चों के मन में हिंदुओं के प्रति जहर घोलते हैं। गौर करें तो पाकिस्तान में सामाजिक अध्ययन की पाठ्य पुस्तकें भारत और ब्रिटेन के संबंध में नकारात्मक टिप्पणियों से अटी पड़ी हैं। लेकिन लेखों और साक्षात्कारों के जवाबों में विशेष रुप से हिंदुओं पर ही निशाना साधा जाता है। दरअसल देखा जाए तो पाठ्य पुस्तकों का इस्लामीकरण की शुरुआत अमेरिका समर्थित तानाशाह जिया-उल-हक के सैन्य शासन काल में हुई। बाद की सरकारों ने इसमें सुधार की बात तो कही लेकिन हिम्मत नहीं दिखायी। 2006 में सरकार ने पाठ्यक्रमों में सुधार की योजना बनायी लेकिन कट्टरपंथियों के दबाव की वजह से टाल दी। पाकिस्तानी स्कूलों में हिंदुओं के प्रति नफरत पैदा करने का ही नतीजा है कि आज पाकिस्तान का आम जनमानस भारत को घृणा की दृष्टि से देखता है। गत वर्ष अमेरिकी संगठन प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण से जाहिर हुआ कि पाकिस्तान में हर चार में से तीन नागरिक भारत के बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। 57 फीसदी पाकिस्तानी नागरिक भारत को अलकायदा और तालिबान से भी ज्यादा खतरनाक मानते हैं। लेकिन इसके लिए वहां की सरकार ही जिम्मेदार है। हद तो यह है कि यह असहिष्णुता और पूर्वाग्रह उन शियाओं और अहमदियों के प्रति भी है जो खुद को मुसलमान तो मानते हैं लेकिन पाकिस्तान की सरकार और संविधान उन्हें मुसलमान नहीं मानता। भारत सरकार को चाहिए कि वह पाकिस्तान पर अल्पसंख्यक हिंदुओं को सुरक्षा देने के लिए दबाव बनाए। अगर आवश्यक हो तो इस मसले को संयुक्त राष्ट्र संघ में भी उठाने से हिचकना नहीं चाहिए।

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