हमारा प्रतिरोध, देशद्रोह, तुम्हारी हिंसा, विकास

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-पीयूष पंत

लगता है ‘राजकीय हिंसा हिंसा न भवति’ की घुट्टी पिलाने पर आमादा केंद्र की यूपीए और छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकारें विकास से जुड़े असली सवालों का समाधान हिंसा के बूते निकालने में ही विश्वास रखती हैं। ऐसा न होता तो सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश की मध्यस्थता में सरकार से बातचीत का प्रस्ताव ले शीर्ष माओवादी नेताओं से सलाह-मशविरा करने जा रहे माओवादी नेता आज़ाद की एक फ़र्जी मुडभेड़ में‚ हत्या न की गयी होती। साथ ही वो जघन्य कृत्य न किया गया होता जिसमें पत्रकार हेमंत पांडे की आंध्र पुलिस द्वारा महज इसलिए हत्या कर दी गयी कि वो आज़ाद के साथ था। हत्या के बाद फर्जी तरीक़े से यह घोषित कर दिया गया कि हेमंत भी माओवादी था।

दरअसल देशी-विदेशी कंपनियों के व्यापारिक हित साधने में ’दलाल’ सरीखी भूमिका में दिखायी दे रही केंद्र व कुछ राज्य सरकारें मान कर चल रही है कि राज्य की ताकत का बेजा इस्तेमाल कर तथा सलवा-जुडूम व आपरेशन ग्रीन हंट जैसे फ़रेब रच कर वो अपने मक़सद में क़ामयाब हो जायेंगीं। लेकिन जनपक्षीय पत्रकारिता का निर्वाह कर रहे चंदपत्रकारों के साहस, जनता से जुड़े नागरिक समाज की अदम्य ऊर्जा और स्वयं आ दिवासी समाज की जागरूकता व अपने जल-जंगल-जमीन बचाने की जिजीविषा ऐसा होने नहीं दे रही है। लिहाज़ा असफलता से पैदा हुई हताशा से घिरी केंद्र व छत्तीसगढ़ सरकारें माओवाद को देश की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा ख़ातरा बता जनवादी ताकतों को देशद्रोही साबित करने पर तुली हैं। इसीलिए छत्तीसगढ़ के पुलिस अधिकारी के माध्यम से प्रेस विज्ञप्ति जारी कर एक निडर आदिवासी लिंगा राम को माओवादी बता पत्रकार जा वेद इक़बाल और सामाजिक कार्यकर्ताओं- मेधा पाटकर, नंदनी सुंदर और अरूंधती रॉय को कटघरे में खड़ा करने की बचकानी हरकत की जाती है। शायद मनमोहन सिंह, पी. चिदंबरम, रमन सिंह और नवीन पटनायक जैसे हुकमरानों को आदिवासी और ग्रामीण जनता की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही; जिसकी अभिव्यक्ति कवि शिवमंगल सिंह सुमन की इस कविता में दिखायी देती है-

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

आज सिन्धु ने विष उगला है

लहरों का यौवन मचला है

आज हृदय में और सिन्धु में

साथ उठा है ज्वार

तूफ़ानोंकी ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

लहरों के स्वर में कुछ बोलो

इस अंधड़ में साहस तोलो

कभी-कभी मिलता जीवन में

तूफ़ानों का प्यार

तूफ़ानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

यह असीम, निज सीमा जाने

सागर भी तो यह पहचाने

मिट्टी के पुतले मानव ने

कभी ना मानी हार

तूफ़ानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

सागर की अपनी क्षमता है

पर माँझी भी कब थकता है

जब तक साँसों में स्पन्दन है

उसका हाथ नहीं रुकता है

इसके ही बल पर कर डाले

सातों सागर पार

तूफ़ानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ॥

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