हमारा समाज पुरूष प्रधान नही वरन महिला प्रधान

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अतंरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में विगत दिनो जब पूरे विष्वभर में महिलाओं के सम्मान में बहुत सारे कार्यक्रम आयोजित किये गये तो एक बार फिर महिलाओं के सम्मान व उनके अधिकारो पर चर्चा जीवंत हो गयी है फिर से उन्हे समान अधिकार देने व आगे बढाने के विचार मंचो पर आने लगे है परंतु यह विचार हकीकत में तब तक नही बदल सकते जब तक पूरूषवादी मानसिकता से ग्रसित समाज इस बात को हृदय से स्वीकार नही कर लेता कि पूरूष व नारी दो पहिया गाडी के वे दो पहिये है जिसमें से किसी एक के भी असंतुलित होने पर पूरी गाडी का संतुलन बिगड सकता है। नारी एक माॅ ,पत्नी,बेटी बहु आदि कई रूपों में पूरूषों से इस प्रकार जुडी है कि उनके योगदान के बिना पूरूष समाज व राष्ट्र के उत्थान की कल्पना भी नहीं कि जा सकती है।

भारतीय परिदृष्य में यदि बात की जाए तो यह कहा जाता है कि हमारा समाज पूरूष प्रधान है , परंतु यह कहना अर्धसत्य जैसा ही होगा क्योकि वह समाज पूरूष प्रधान केसे हो सकता है जहाॅ पुरूषों की उत्पत्ति का आधार ही महिलाए है। बल्कि यदि यह कहा जाए तो गलत नही होगा कि हमारा समाज पुरूष प्रधान नही वरन महिला प्रधान है वर्तमान परिवेष में जब महिलाओं का समान अधिकार देने व उन्हे आगे बढाने की बाते जोर पकड रही है तो यह ध्यान रखना होगा कि इस प्रकार की बाते सिर्फ मंचो से लोगों की तालिया बटोरने भर के लिए नहीं कही जाए वरन दोहरे व्यक्तित्व को छोडकर राजनैतिक पूरोधाओं को भी नारी शक्ति के अस्तित्व को न सिर्फ मंचो से बल्कि वास्तविक जीवन मे भी सत्यता से स्वीकार व अंगीकार करना होगा। यह भी बताना प्रासंगिक है कि महिलाओं का सम्मान केवल एक या दो दिन महिला दिवस मनाने का विषय नही है बिल्क यह तो एक ऐसी भावना है जिसे हमें हर पल अपने मन में बसा कर चलना चाहिए।
नारी से ही नर की उत्पत्ति हुई है इसलिए बिना नारी के उत्थान के नर के उत्थान की कल्पना भी नही की जा सकती है आज नारी हर क्षेत्र में चाहे वह सेना हो रक्षा हो सवास्थ्य हो खेलकुद हो अंतरिक्ष हो षिक्षा हो या केाई अन्य क्षेत्र सभी क्षेत्रों में अपनी उपस्थिती का लोहा मनवा रही है व वे पुरूषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर खडी है व हर क्षेत्र के विकास में अपनी भागीदारी सुनिष्चित कर रही है तब पुरूष समाज को भी आगे आकर अनको ओर अधिक अवसर देकर स्त्री पुरूष समानता की विचारधारा को मन से स्वीकार करना होगा।

1 COMMENT

  1. हरीश जी, नारी की कोख से ही नर भी उत्पन्न हुआ है सही बात. पर क्या वह उतपत्ति नर के बिना संभव है? फिर यह कैसा वक्तव्य दे रहे हैं आप?. आज नारी का बखान करना फेशन बन गया है. नर को तो समाज निरा मूरख और तुच्छ कहने पर आमादा है. अच्छा हो कुछ समय नर नारी अलग अलग रहें तो उन्हें आपसी महत्ता का ज्ञान होगा.

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