योग्यता के दम पर प्रधानमंत्री बनें राहुल

नीरज कुमार दुबे

राहुल गांधी के लिए प्रधानमंत्री पद की मांग प्रभावी तरीके से कर रहे कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का कहना है कि राहुल अब 40 वर्ष के हो गये हैं और उनमें प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण व अनुभव आ गये हैं लिहाजा देश का शीर्ष राजनीतिक पद अब गांधी परिवार के राहुल को सौंप दिया जाना चाहिए। हालांकि दिग्विजय साथ ही यह भी कहते हैं कि फिलहाल प्रधानमंत्री पद खाली नहीं है। यकीनन दिग्विजय की इस मांग और पार्टी तथा सरकार के अधिकांश लोगों के इस मांग को समर्थन के चलते डॉ. मनमोहन सिंह के लिए अनिश्चितता जैसी स्थिति बन रही है जोकि किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है क्योंकि देश इस समय भ्रष्टाचार और महंगाई जैसे बड़े घरेलू मुद्दों के अलावा विभिन्न वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहा है।

दिग्विजय जोकि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की मांग लगातार कर रहे हैं उन्हें यह भी जान लेना चाहिए कि क्या राहुल खुद तत्काल इसके लिए तैयार हैं? देश में प्रधानमंत्री पद के अन्य उम्मीदवारों से राहुल की तुलना करें तो राहुल भले ही कांग्रेस जैसी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी का नेता होने और गांधी परिवार से ताल्लुक रखने के कारण सब पर भारी पड़ते हैं लेकिन यदि अनुभव और वरिष्ठता की बात की जाए तो वह पिछड़ जाते हैं। वैसे तो इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस पार्टी देर सवेर राहुल को प्रधानमंत्री पद सौंप ही देगी लेकिन प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को चाहिए कि वह ऐसे सभी मुद्दों पर अपना मत प्रकट करे जोकि व्यापक सरोकार से जुड़े हों। लेकिन राहुल के साथ ऐसी बात नहीं है, यदि पिछले कुछ समय के उनके दौरों और भाषणों पर नजर डाली जाए तो लगता है कि वह अपनी सुविधा की राजनीति भर कर रहे हैं।

राहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भट्टा पारसौल में जाकर पुलिसिया कार्रवाई के पीड़ित किसान परिवारों से मिले और प्रदेश सरकार के खिलाफ धरना देते हुए गिरफ्तारी दी। इस तरह उन्होंने यह मुद्दा गरमा दिया लेकिन उसके अगले ही दिन वह परिदृश्य से गायब हो गये। यही नहीं उन पर प्रधानमंत्री को भट्टा पारसौल मामले में बलात्कार और लोगों को जलाने की झूठी बात कहने का आरोप भी लगाया गया। अन्ना हजारे का लोकपाल विधेयक के लिए आंदोलन हो या फिर बाबा रामदेव का कालेधन के खिलाफ आंदोलन, इन सभी मुद्दों पर राहुल खामोश रहे। वह हाल ही में प्रधानमंत्री को बुंदेलखण्ड लेकर गये क्योंकि वहां शीघ्र ही चुनाव होने हैं जबकि देश में और भी अन्य क्षेत्र ऐसे हैं जो विकास की तथा अपने हालात पर प्रधानमंत्री और सरकार की निगाह पड़ने की बाट जोह रहे हैं।

इसके अलावा कश्मीर समस्या पर पिछले दिनों राहुल ने यह कह कर कुछ कहने से इंकार कर दिया था कि उन्हें मुद्दे की पूरी जानकारी नहीं है तो पाकिस्तान के संदर्भ में वह यह कह कर बच निकले थे कि पाकिस्तान को ज्यादा तवज्जो नहीं दें। चीन, रूस, अमेरिका से रिश्तों पर राहुल की राय शायद ही किसी को पता हो। इसके अलावा अनेकों ऐसे मुद्दे हैं जिन पर राहुल की राय महत्वपूर्ण हो सकती थी लेकिन राहुल सिर्फ उन्हीं मुद्दों पर बोलते हैं जिन पर उनका मन करता है या फिर जिनसे पार्टी अथवा सरकार को लाभ पहुंचता हो।

हालांकि एक समय राहुल यह बात खुद कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री बनना ही एकमात्र काम नहीं है। लेकिन हाल फिलहाल के सभी जनमत सर्वेक्षणों के निष्कर्षों पर गौर करें तो कांग्रेस पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए उन्हें ही सबसे ज्यादा लोग पसंद कर रहे हैं। यदि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने चमत्कारिक परिणाम दिखाये तो फिर प्रधानमंत्री पद राहुल के लिए ज्यादा दूर नहीं रहेगा। वैसे भी उम्मीद यही की जा रही है कि यदि 2014 में पुनः कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन जीता तो प्रधानमंत्री राहुल ही होंगे, यदि ऐसा है तो देश की समस्याओं से धीरे धीरे रूबरू हो रहे राहुल को प्रशासनिक अनुभव हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल होने के अनुरोध को स्वीकार कर लेना चाहिए। गौरतलब है कि इंदिरा गांधी ने भी पहले मंत्री बन कर अनुभव हासिल किया और फिर प्रधानमंत्री बनीं। राहुल के पिता राजीव गांधी के समक्ष दूसरी परिस्थितियां थीं जिसमें उन्हें एकाएक अपनी मां की मौत के बाद प्रधानमंत्री पद संभालना पड़ा था।

दूसरी ओर, दिग्विजय की राहुल को प्रधानमंत्री बनाने की मांग के निहितार्थ ज्यादा खोजने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह बात साफ जाहिर है कि इससे एक तो वह सीधे दस जनपथ के और करीब नजर आते हैं तथा साथ ही दिग्विजय की इस मांग का कोई विरोध नहीं होने से आलाकमान के सामने भी स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि राहुल की खिलाफत में कोई नहीं है। इसके अलावा दिग्विजय उत्तर प्रदेश की जनता को भी विधानसभा चुनावों से पहले यह संदेश देना चाहते हैं कि यदि 2013 में वह कांग्रेस को सत्ता में लाती है तो भावी प्रधानमंत्री का गृह राज्य होने के नाते प्रदेश का विशेष ध्यान रखा जाएगा।

अपने बयानों के लिए हमेशा चर्चा में रहने वाले दिग्विजय कांग्रेस और 10 जनपथ की ढाल के रूप में भी चौबीसों घंटे तैनात रहते हैं, उन्हें पता है कि विभिन्न मुद्दों पर घिरी पार्टी को संकट से निकालने के लिए विपक्ष के खिलाफ क्या बयान देना है और यदि पार्टी आलाकमान पर कोई संकट आए या कोई चुनौती खड़ी हो तो माहौल को कैसे बदलना है। अपनी इसी खूबी के चलते वह पार्टी में कुछ भी बोलने के लिए स्वतंत्र हैं वरना पार्टी का इतिहास कुछ और ही कहता है जिसके अनुसार, अमर सिंह के खिलाफ जरा सा बोलने पर सत्यव्रत चतुर्वेदी की प्रवक्ता पद से छुट्टी कर दी गई थी तो पार्टी की केरल इकाई के मत के खिलाफ एक लॉटरी मामले की पैरवी करने पर अभिषेक मनु सिंघवी जैसे दिग्गज और वरिष्ठ नेता को कुछ दिनों के लिए पार्टी की ओर से बोलने से मना कर दिया गया था।

 

बहरहाल, यह संभव है कि राहुल एक न एक दिन इस देश के प्रधानमंत्री बन जाएं लेकिन यह साबित करने के लिए कि उन्हें यह पद विरासत में नहीं बल्कि अपनी क्षमता के आधार पर मिला है, उन्हें किसी भी चीज को सिर्फ चुनावी दृष्टि से देखने से आगे जाना चाहिए और लोगों का विश्वास अर्जित करना चाहिए। साथ ही कांग्रेस नेताओं को यह बात समझनी चाहिए कि वह इस समय राहुल को प्रधानमंत्री बनाने की मांग कर विपक्ष के उन आरोपों को ही हवा दे रहे हैं जिसमें मनमोहन सिंह को अक्षम प्रधानमंत्री कहा जा रहा है साथ ही पार्टी को यह भी समझना चाहिए कि प्रधानमंत्री पद को किसी एक परिवार की जागीर नहीं बनने दिया जाना चाहिए। यदि सभी कांग्रेसी राहुल को प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहते हैं तो इसमें गलत कुछ भी नहीं है लेकिन जनता को भी वह ही सर्वश्रेष्ठ नेता के रूप में नजर आने चाहिए।

2 COMMENTS

  1. दिग्गी मियां की भांति शकुनी मामा भी रोज़ का रोज़ दुर्योधन का राज्याभिषेक किया करता था और मनमोहन की भांति ध्रितराष्ट्र भी मूक अन्धार्शक बना रहता था…. आज स्थिति वही है ….देश भ्रष्टाचार के अंधकूप में गिरा ..जनक्रांति के कुरुक्षेत्र में अपने और परायों को निहार रहा है…उतिष्ठकौन्तेय

  2. लेखक महोदय क्षमा करें शायद ही कोई आपसे सहमत होगा,रौल विंची की सबसे बड़ी योग्यता गांधी परिवार का चश्मों चिराग होना है इसके आगे सारी योग्यताएं गौण हैं.दिग्भ्रमित अच्छी तरह जानते हैं की यह तो पी.एम्.बनेगा ही बनेगा इस लिए यह मांग रख कर बाज़ी जीत ली है. यह सोचना की कांग्रेस में अनुभवी और बुद्धीमान लोगों का अकाल है कदाचित उचित नहीं होगा, पर साथ ही साथ यह भी सच है की चाटुकारों की जितनी संख्या कान्ग्रेस में है उसके आगे सारे दल बोने हैं.

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