पाक-चीन गठजोड़ और आंतरिक सुरक्षा

नीरेन कुमार उपाध्याय

स्वाधीन भारत के अब तक के इतिहास में कश्मीर सर्वाधिक विवादित राज्य के रूप में प्रस्तुत किया गया। सत्तासीन राजनीतिक दलों ने लाभ-हानि को दृष्टिगत रखते हुए कश्मीर समस्या को देखा। विलय, विलगाव और विवाद के भंवर में कश्मीर को उलझाया जा रहा है। पूर्ण विलय पर प्रश्न खड़े किये जा रहे हैं। राज्य में देशद्रोही शक्तियां संगठित अपराध का पर्याय बन गई हैं। राजनीतिक दलों ने धर्मनिरपेक्षता की मैली चादर ओढ़ ली है। देश का मुकुट कहा जाने वाला राज्य कांटों का ताज बन गया है। सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर राज्य विकास से वंचित क्यों है? केंद सरकार की समस्त योजनाओं का पैसा कब और कहां व्यय हुआ, कोई पूछने वाला नहीं है। कश्मीर में बेरोजगारी, अशिक्षा व अपराध का बोलबाला है। प्रश्न यह उठता है कि भारत के कई राज्य ऐसे हैं जो विकास की दौड़ में काफी पीछे हैं, उनकी अनदेखी कर कश्मीर को ही विशेष राज्य का दर्जा क्यों बहाल है? राज्य में झंडा फहराना अपराध हो गया है। बे सिर-पैर की दलीलें दी जा रहीं थीं। कुछ मीडिया समूहों का व्यवहार तो राजनीतिक दलों जैसा देखा गया। जम्मू-कश्मीर राज्य भारत की आंतरिक व बाह्य सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। पहले पाकिस्तान और अब उसके साथ चीन की कुदृष्टि जम्मू-कश्मीर पर लगी हुई है। इसे गंभीरता से लेना होगा। समस्याओं से ग्रसित जम्मू-कश्मीर राज्य के भविष्य का निर्णय करना होगा। यह तभी संभव होगा जब केंद्र और राज्य सरकार की अंतः शक्ति राष्ट्र और राज्य के साथ समरस होगी। प्रश्न सरकार की नीयत और निष्पक्षता का भी है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को एक शक्तिशाली देश के रूप में देखा जा रहा है। भारत की मेघा और मजबूत आर्थिक तंत्र का लोहा विश्व मानने लगा है। विकसित देशों के लिए भारत बहुत बड़ा बाजार है। राजनीतिक, आर्थिक और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के प्रमुख देशों द्वारा भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। भारत की वैश्विक ताकत बढ़ने से चीन परेशान और चिंतित है। साम्राज्यवादी चीन और अस्थिरतावादी पाकिस्तान की बढ़ती निकटता भारत के लिए शुभ संकेत नहीं है। चीन के बढ़ते खतरों और उसकी भारत विरोधी नीतियों का प्रतिकार भारत सरकार के द्वारा पूरी ताकत से न करना चिंता का विषय है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा कई बार भारतीय सीमाओं का अतिक्रमण करने के समाचार के बावजूद सरकार की तरफ से दिये गए बयान कि, यह वास्तविक नियंत्रण रेखा की जानकारी के अभाव में साझा विचार की कमी है, सोई हुई सरकार का प्रत्यक्ष उदाहरण है। यह देश के लिए घातक हो सकता है। चीन और पाकिस्तान की बढ़ती निकटता और उस पर अमेरिका का वरदहस्त भारत के साथ इन देशों के दोहरे चारित्रिक व्यवहार को दर्शाता है। आतंकवाद पाकिस्तान सरकार का गृह उद्योग है जिसे अब चीन और अमेरिका अपनी नीतियों के अनुसार इस्तेमाल कर रहे हैं। पाक अधिकृत कश्मीर के स्कार्डू क्षेत्र में सड़क और अन्य निर्माण कार्यों की आड़ में चीनी सेना के 10 हजार सैनिकों की सीमा पर उपस्थिति चीन की भारत विरोधी दीर्घकालीक नीति का ही हिस्सा है। जिसे भारत को समझना होगा, साथ ही विश्व मंच पर चीन की कारस्तानियों को मजबूती से उठाना होगा।

पाकिस्तान को बैलेस्टिक मिसाइलें और प्रौद्योगिकी देने का सीधा सा अर्थ है क्षेत्र में नाभिकीय युध्द की स्थिति पैदा करना। पिछले कुछ दिनों से चीन ने एक नई चाल भारत के खिलाफ चली है। 1962 के युध्द में भारत की 37,555 वर्ग किमी भूमि पर कब्जा करने वाले चीन ने भारत पर आरोप लगाया है कि उसने अरूणाचल और सिक्किम सहित 90 हजार वर्ग किमी भूमि को दबा रखा है। चीन अपने सरकारी मानचित्रों में इन राज्यों को अपना भू-भाग तो बताता है साथ ही जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं दिखाता है। भारत-तिब्बत सीमा पर 1600 किमी लम्बी नियंत्रण रेखा को भी नहीं दर्शाता। भारत के साथ उसकी आक्रामक नीति यहीं पर समाप्त नहीं हो जाती, उसने जम्मू-कश्मीर और अरूणाचल प्रदेश के भारतीय नागरिकों को अलग कागज पर वीजा देना शुरू कर दिया है। इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन राज्यों को विवादित क्षेत्र घोषित करवाने की कुचेष्टा कर कब्जे की कोशिश कर सकता है। चीन की दुष्प्रचार की नीति का यह स्याह पहलू है जिसे उजागर करने की महती आवश्यकता है। चीनी सेना ने पिछले दिनों डेमचोक के गम्बीर क्षेत्र में घुसकर वहां चल रहे निर्माण कार्यों को रूकवा दिया। 2009 में लद्दाख में बनायी जा रही सड़क को भी चीन की आपत्तियों के कारण बंद कर दिया गया। जबकि चीन ने नियंत्रण रेखा के अंदर घुसकर 54 किमी लम्बी सड़क बनायी। फिर भी भारत सरकार मौन रही। यह आश्चर्य का विषय है।

चीन भारत के लिए बाहर से खतरा तो बना ही है, वह पूर्वोत्तर के अलगाववादियों एनएससीएन(आईएम, के), एनडीएफबी व उल्फा जैसे संगठनों को सहयोग देकर भारत को भीतर से कमजोर करने की रणनीति पर भी काम कर रहा है। पूर्वोत्तर के राज्यों में आईएसआई चीन के सहयोग से काम कर रही है। भारत के भीतर चीनी जासूसों का पकड़ा जाना और जल्दीबाजी में भारत सरकार द्वारा उन्हें छोड़ देने के निहितार्थ खतरनाक ही जान पड़ते हैं। चीन में निर्मित शस्त्र बंगलादेश के रास्ते भारत में माओवादियों, आतंकवादियों और भारत विरोधी अलगाववादियों तक पहुंचाये जा रहे हैं। जो कि भारत की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए खतरनाक है। चीन की सेना के जवान नेपाल में खुलेआम घूम रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से नेपाल में कम्युनिस्टों के प्रभावी होने के बाद, वहां से भारत विरोधी गतिविधियों को संरक्षण मिल रहा है। भारत के नेपाल, बंगलादेश, वर्मा, पाकिस्तान आदि पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्ध पहले जैसे मधुर नहीं हैं। तिब्बत के मामले पर भारत सरकार की चुप्पी चिंताजनक है। तिब्बत और भारत का गुरू-शिष्य का सम्बन्ध रहा है। तिब्बत भारत के भीतर चीन के सीधे प्रवेश करने से रोकने के लिए मजबूत दीवार था, जिसे चीन ने सरलतापूर्वक कब्जा कर लिया है। अब भारत में प्रवेश के लिए चीन को आसान मार्ग मिल गया है। चीन के तिब्बत पर अवैध कब्जे को मौन स्वीकृति या अनदेखी करने के दूरगामी दुष्परिणाम भारत को भुगतने पड़ सकते हैं। पाकिस्तान और चीन दोनों देशों से भारतीय नकली नोटों की खेप भेजे जाने के प्रमाण सरकार को मिल चुके हैं। भारत को आर्थिक रूप से कमजोर करने की उनकी कोशिशों को भारत के भीतर बैठे उनके सहयोगी मूर्त रूप देने में जुटे हुए हैं। चीन मेें बने विभिन्न प्रकार के सस्ते उत्पाद भारत के बाजारों में धड़ल्ले से बिक रहे हैं। जो कि हमारे उद्योगों, स्वास्थ्य, पर्यावरण और सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती हैं। भारतीय नागरिक चीनी उत्पादों को सस्ता होने के कारण खरीद कर एक प्रकार से चीन जैसे भारत विरोधी देश की मदद ही कर रहे हैं। भारत के देशभक्त नागरिकों को इसे समझना होगा। सरकार चीनी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाये इसकी मांग जन आंदोलन के रूप में होनी चाहिए। चीन ने सिंधु और ब्रह्मपुत्र नदियों के जल प्रवाह को मोड़कर भारत के लिए खतरा पैदा कर दिया है। पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश और अरूणाचल प्रदेश में बाढ़ के कारण व्यापक नुकसान हुआ था। नदियों के रास्ते को मोड़ने और भारतीय इंजीनियरों को नदी की धारा का अध्ययन करने की अनुमति न देना, चीन पर संदेह को पुष्ट करते हैं।

भारत से प्रत्यक्ष युध्द में हार चुका पाकिस्तान यह समझ चुका है कि वह भारत से सीधे युध्द में कभी जीत नहीं सकता। इसलिए, वह आतंकवादियों, माओवादियों के अलावा अब चीन के साथ मिलकर कश्मीर को पाने की लालसा पाले बैठा है। भारत की 78114 वर्ग किमी0 भूमि पर पाकिस्तान ने स्वतंत्रता के बाद ही कब्जा कर लिया था। पीओके की 5180 वर्ग किमी भूमि पाकिस्तान ने चीन को दिया है, वहां चीन ने अपने सैनिकों के लिए बंकर बनाए हैं। भारत को घेरने की उसकी कोशिशों को पाकिस्तान सहयोग दे रहा है। दुश्मन का दुश्मन दोस्त। इन दोनों देशों ने जम्मू-कश्मीर राज्य की लगभग 54.6 प्रतिशत भूमि पर कब्जा कर रखा है। भारत में रहने वाले पाकिस्तानी, चीनी व बंग्लादेशी नागरिकों की भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्तता की जांच होनी चाहिए। भारत में आतंकियों की घुसपैठ के पीछे पाकिस्तान है। इनसे लड़ते हुए सेना और सुरक्षा बल के हजारों जवान शहीद हो चुके हैं। हजारों नागरिक मारे जा चुके हैं। लाखों की संख्या में लोग देश के कई हिस्सों में शरणार्थियों का जीवन जीने को मजबूर हैं। राज्य सरकार की मांग पर भारत की सुरक्षा को ताक पर रखते हुए कश्मीर में तैनात हजारों जवानों की वापसी तथा राज्य की सुरक्षा राज्य पुलिस के हवाले करना सुरक्षा बलों को केवल पुलिस का सहयोग करने के लिए रखा जाना केंद्र की तुष्टीकरण नीति का प्रत्यक्ष प्रमाण है। सरकार इससे कश्मीर की समस्या को हल करने की बजाय और विवादों में उलझाने जा रही है। राज्य में नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी तथा कांग्रेस की नीतियों ने एक तरह से अलगाववादियों और भारत विरोधियों की मंशा पूरा करने में सहयोग दिया। बंटवारे के बाद भारत के कश्मीर क्षेत्र में आए हिन्दू और मुस्लिम पाकिस्तानी शरणार्थियों को नागरिकता देने के मामले में जिस प्रकार से कांग्रेस, पीडीपी, पीडीएफ, सीपीआईएम तथा नेशनल कांफ्रेंस ने विरोध किया वह इन राजनीतिक दलों के दोहरे चरित्र को उजागर करता है। इन दलों ने बंटवारे के समय पाकिस्तान जा चुके लोगों को कश्मीर में आकर रहने के लिए प्रस्ताव पास किया था।

भारत का कोई भी नागरिक आज भी जम्मू-कश्मीर में स्थायी रूप से नहीं रह सकता। भारत सरकार का कोई अधिकारी वर्षों अपनी सेवायें इस राज्य को देने के बाद रिटायर होता है तो उसे वापस अपने ही राज्य में जाना होगा उसे वहां किसी प्रकार की अचल संपत्ति बनाने की अनुमति नहीं है। विस्थापित कश्मीरी पंडितों को वापस जम्मू-कश्मीर में स्थापित करने के नाम पर सरकार ने दोहरे मापदण्ड अपनाए है। भारत के लिए जीने मरने वालों को एक इंच भूमि नहीं और दुश्मनों को मान-सम्मान। यह कैसा राज्य है जो सुविधाओं, सुरक्षा, और आर्थिक मदद के लिए तो भारत का है, लेकिन विलय के नाम पर प्रश्न भी वही उठाता है। जम्मू-कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय हुआ था। यह बात कश्मीरी नेताओं को अब स्पष्ट हो जानी चाहिए। पं0 नेहरू की गलतियों को दोबारा दुहराने की किसी भी कोशिश को सदैव के लिए दफन कर देना होगा। वोट बैंक की राजनीति धारा 370 को समाप्त करने की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है। अधिकांश राजनीतिक दल देशहित को पार्टी की विचारधारा की कसौटी पर कसते रहे हैं। धारा – 370 समाप्त करने के विषय पर इनका व्यवहार भारत के भविष्य के लिए चिंताजनक है। कब तक यह देश एक राजनीतिक दल की पारिवारिक सोच को अपने कंधे पर ढोता रहेगा। अब विचार करने का समय आ गया है।

भारतीय मीडिया ने समय-समय पर देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के प्रति लोगों को जागृत करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को निभाया है। चीन और पाकिस्तान की सीमा पार और भारतीय सीमा के भीतर की गतिविधयों की जानकारी को लोगों तक पहुंचाया है। जिसकी सैन्य अधिकारियों ने बाद में पुष्टि भी की। सरकार आज भी हिन्दी चीनी भाई-भाई के छलावे में जी रही है। उसे चीन से सावधान रहने की आवश्यकता है। लाल चौक पर झंडा फहराने को लेकर इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के कुछ समूहों की भूमिका सिर्फ सनसनी खबर बनाने से ज्यादा नहीं रही। उसने इस मामले को एक पार्टी की राजनीतिक लाभ लेने और कश्मीर में हिंसा फैलाने की कोशिश बताने में ही अपनी भूमिका को स्थिर कर दिया था। झंडा फहराने को लेकर देश की जनभावनाओं को कोई महत्व नहीं दिया गया। कश्मीर की वर्तमान स्थिति में भारत विरोधी ताकतों को प्रश्रय दिया जा रहा है। स्वतंत्रता का बेसुरा राग अलापने वालों को मीडिया में स्थान मिलने से उनके उद्देश्य की पूर्ति होती दिखाई देती है।

माओवादियों के संरक्षकों पर जब कानूनी कार्रवाई शुरू की गई तब भी मीडिया के कुछ लोगों ने मानवाधिकार विरोधी करार देने की कोशिश की। कुछ मामलों में मीडिया निष्पक्ष होने की बजाय सेक्युलर होना अधिक पसंद करती है। यह देश भक्त पत्रकारों और मीडिया समूहों को कलंकित करने वाली स्थिति है। भारत की आंतरिक सुरक्षा, भारत की सीमाओं की सुरक्षा के साथ-साथ भीतर के दुश्मनों के साथ कड़ाई से निपटने से ही संभव है। कश्मीर में पत्थरबाजों और पूर्वोत्तर में मुइवा के आगे सरकार महीनों शीर्षासन की मुद्रा में खड़ी रही उससे इनका मनोबल बढ़ा है। इनके विरूध्द कार्रवाई करने की बजाय बातचीत की मेज पर आमंत्रित करने की नीति किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।

कश्मीर पर कोई भी अपना अधिकार बतायेगा और जनता मान जायेगी या कश्मीर की कीमत पर देश की सुरक्षा की बातें अब इस देश की जागृत जनशक्ति के आगे नहीं चलने वाली। पाकिस्तान से बार-बार बात करने से कोई लाभ नहीं है। बातों से मनाने के प्रयास विफल हो चुके हैं। समस्या यथावत् बनी हुई है। कश्मीर पर होने वाली कोई भी बातचीत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को लौटाने से शुरू हानी चाहिए।

अमेरिका भारत का मित्र नहीं हो सकता। यह हम सब पिछले कई वर्षों से देख रहे हैं। अमेरिका व्यापारी वृत्ति का देश है। प्रमाण होने के बाद भी उसने आज तक पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित नहीं किया। उसे आर्थिक और सामरिक सहायता लगातार दे रहा है। वह विश्व में अपनी दादागिरी कायम करना चाहता है। जो कि संभव नहीं है। कश्मीर के मामले में अमेरिका की नीयत साफ नहीं है।

चीन, पाकिस्तान, माओवादियों, आतंकवादियों, आईएसआई, एनएससीएन, उल्फा, आदि संगठनों के अंतर्सम्बन्धों तथा इनके समर्थक तथाकथित नेताओं व समाजसेवियों की व्यापक जांच कर कार्रवाई करनी चाहिए। भारत का विकास तभी संभव है जबकि उसकी सीमाओं के साथ-साथ आंतरिक सुरक्षा भी सुदृढ़ होगी। भारत को अस्थिर करने की कोशिशों को समूल नष्ट करना होगा।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

1 COMMENT

  1. उपाध्याय जी ने बहुत अच्छा लिखा है. वाकई चीन और पाकिस्तान मिलकर हमारे खिलाफ कुचेस्ठा कर रहे है. यु तो लोमड़ी और सियार मिलकर भी हाथी का कुछ नहीं बिगड़ सकते है किन्तु हाथी निढाल होकर पड़ा रहे तो एक चींटी भी भारी पड जाती है.
    हमे १९६२ की चीन से शर्मनाक हार नहीं भूलना चाइये. जो इतिहास भुला देते है वो हमेशा हारते है और इतिहास को याद रखते है वो कभी भी धोखा नहीं खाते है. कहते है दूध का जला छाछ ……..

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