पाक-चीन दोस्ती से सतर्क रहे भारत

pak chinaपीयूष द्विवेदी

एक उक्ति है कि शत्रु का शत्रु सबसे अच्छा मित्र होता है। चीन यह बात बहुत अच्छे से जानता है। इसी नाते वह भारत से शत्रुता मानने वाले देश पाकिस्तान को साधने की लगातार ही कोशिश करता रहा है, जिसमे कि उसे अपेक्षित कामयाबी भी मिली है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के वर्तमान पाकिस्तान दौरे को भी भारत के लिए कहीं न कहीं इसी उक्ति के आलोक में देखा जाना चाहिए। शी जिनपिंग के इस दौरे पर चीन और पाकिस्तान के बीच कुल ५१ समझौते हुए हैं। चीनी राष्ट्रपति के इस दौरे के दौरान भारत की तमाम आपत्तियों के बावजूद गुलाम कश्मीर से होकर गुजरने वाले ४६ अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर की पाक-चीन द्वारा शुरुआत कर दी गई है। खबर तो यहां तक है कि चीन ग्वादर बंदरगाह में काम भी शुरू भी कर चुका है। इस परियोजना के तहत चीन के जिनजियांग प्रान्त को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से रेल, सड़क आदि परिवहन माध्यमों के जरिये जोड़ा जाएगा। इसके तहत चीन गुलाम कश्मीर में सड़क, रेल नेटवर्क, ऊर्जा प्लांट आदि ढांचागत निर्माण का काम करेगा। गौरतलब है कि यह आर्थिक गलियारा ३००० किमी लम्बा है, जिससे सटे अक्साई चिन इलाके को लेकर भारत और चीन में काफी पुराना विवाद भी है। इसके अतिरिक्त चीन द्वारा पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में २८ अरब डॉलर निवेश के लिए अन्य कुछ समझौते भी किए गए हैं साथ ही पाकिस्तान को १२ अरब डॉलर का कर्ज देने की घोषणा भी चीनी राष्ट्रपति द्वारा की गई है। कहा गया है कि इस कर्ज के जरिये पाकिस्तान अपने ऊर्जा क्षेत्र, सामरिक क्षेत्र आदि को समृद्ध करने की दिशा में काम करेगा। गौरतलब है कि यह किसी भी चीनी राष्ट्रपति का नौ साल बाद हुआ पाकिस्तानी दौरा है। इस दौरे के समय चीनी राष्ट्रपति द्वारा कहा गया कि वह पहली बार पाकिस्तान जा रहे हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि वे अपने भाई के घर जा रहे हैं। बदले में उनके पाकिस्तान पहुँचने पर पाकिस्तान द्वारा भी पलक-पाँवड़े बिछाकर उनका स्वागत किया गया। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत पाक सेना प्रमुख आदि सभी लोग उनके स्वागत में उपस्थित रहे। साथ ही, उन्हें पाकिस्तान के सबसे उच्च सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित भी किया गया। यह तो सही है कि पाकिस्तान चीन की भारतीय विदेश व कूटनीति के केंद्र में हमेशा से रहा है, लेकिन अब सवाल यह है कि आखिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि चीन पाकिस्तान पर इतना मेहरबान हो रहा है ? ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि चीन पाकिस्तान पर अपनी उक्त मेहरबानियाँ यूँ ही दिखा रहा है, इसके पीछे उसके अपने कई स्वार्थ हैं। अपनी ही गलतियों से पैदा हुई विपन्नता के कारण प्रगति से वंचित हो रहे पाकिस्तान को प्रगति का लालच देकर चीन उसकी जमीन का इस्तेमाल अपने व्यापारिक, सामरिक हितों के लिए करने के उद्देश्य के तहत काम कर रहा है। यह सब मेहरबानी इसी मंशा की उपज है।

दरअसल विगत वर्ष भारत में नई सरकार के गठन के बाद से ही भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारतीय विदेश नीति को जिस तरह से साधा गया है, उसने कहीं न कहीं भीतर ही भीतर चीन को परेशानी में डाल दिया है। फिर चाहें वो एशिया हो या योरोप, मोदी भारतीय विदेश नीति को सब जगह साधने में पूर्णतः सफल रहे हैं। एशिया के नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव, जापान आदि देश हों, विश्व की द्वितीय महाशक्ति रूस हो या फिर यूरोप के फ़्रांस, जर्मनी हों अथवा स्वयं वैश्विक महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका हो, इन सबके दौरों के जरिये प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले १०-११ महीनों के दौरान भारतीय विदेशनीति को एक नई ऊँचाई दी है। साथ ही इनमें से अधिकांश देशों के राष्ट्राध्यक्षों का भारत में आगमन भी हुआ है, जिसने न केवल एशिया में वरन पूरी दुनिया में भारत की साख में भारी इजाफा किया। भारत की यह बढ़ती वैश्विक साख ने चीन को परेशान किया हुआ था कि तभी भारत के दबाव में आकर श्रीलंका ने चीन को अपने यहाँ बंदरगाह बनाने की इजाजत देने से इंकार कर दिया। वहीँ दूसरी तरफ भारतीय प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी मॉरीशस और सेशेल्स में एक-एक द्वीप निर्माण की अनुमति प्राप्त कर लिए। इन बातों ने चीन को और परेशान कर के रख दिया। कहीं न कहीं भारत की इन्हीं सब कूटनीतिक सफलताओं से भीतर ही भीतर बौखलाए चीन की बौखलाहट की शी जिनपिंग के इस पाकिस्तानी दौरे और पाकिस्तान पर हुई भारी मेहरबानी के रूप में सामने आई है। दरअसल, पाकिस्तान के जिस ग्वादर बंदरगाह को चीन द्वारा अपने जिनजियांग प्रान्त से जोड़ने की परियोजना पर काम कर रहा है, उससे चीन को अरब की खाड़ी व होर्मुज की खाड़ी में सीधा प्रवेश मिल गया है। अब चूंकि, यह रास्ते भारत के पश्चिम एशिया से तेल आयात करने वाले मार्ग के बेहद निकट हैं, इसलिए इस सम्बन्ध भारत की चिंता बढ़ जाती है। ग्वादर बंदरगाह पर काबिज होने से चीन को कई लाभ हैं, जिनमे कि पश्चिम एशिया से तेल का आयात उसके लिए बेहद आसान और सस्ता हो जाएगा तथा सामरिक दृष्टि से भी वह भारत पर दबाव बना सकेगा। एक बात यह भी कि इसे भारत द्वारा मॉरीशस और सेशेल्स में द्वीप निर्माण की अनुमति प्राप्त करने का चीन की तरफ से जवाब भी माना जा सकता है।

भारत की बात करें तो ग्वादर-जिनजियांग मार्ग की परियोजना को लेकर भारत की अत्यधिक चिंताएं हैं। चूंकि, वर्तमान में चीन भले ही यह कहे कि यह ग्वादर-जिनजियांग मार्ग सिर्फ व्यापारिक उद्देश्यों से प्रेरित है, लेकिन इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि निकट अथवा दूसर भविष्य में यह चीनी और पाकिस्तानी नौसेनाओं के एक संयुक्त अड्डे के रूप में परिणत हो जाय। वैसे भी भारत के प्रति चीन के धोखे का जो इतिहास रहा है, वह भारत को इस परियोजना के प्रति सशंकित होने को बाध्य करता है। कुल मिलाकर स्पष्ट है कि भारत को चीन और पाकिस्तान की इस बढ़ती नजदीकी के प्रति पूरी तरह से सचेत रहना चाहिए तथा इस चीन-पाक आर्थिक कॉरीडोर परियोजना के मसले पर अपनी चिंता को न केवल चीन के साथ-साथ वैश्विक मंचों पर भी उठाना चाहिए।

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