पाक-फौज कब कमर कसेगी?

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जनरल महमूद अली दुर्रानी ने दो-टूक शब्दों में आतंकवाद के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया है। वे दिल्ली में ‘इंस्टीट्यूट फार डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसीस’ के एक सम्मेलन में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मुंबई में हुआ हमला पाकिस्तान के आतंकवादियों ने ही किया था लेकिन उन्होंने साथ-साथ यह भी कह दिया कि उस हमले में पाकिस्तानी सरकार और आईएसआई का कोई हाथ नहीं था।

इस बारे में वे शत-प्रति-शत नहीं, 110 प्रतिशत आश्वस्त हैं। जनरल दुर्रानी राष्ट्रपति जनरल-जिया उल हक के सचिव थे। अब से लगभग 35 साल पहले जब मैं पहली बार पाकिस्तान गया (इसी डिफेंस इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो की तरह) तो जनरल दुर्रानी ने ही राष्ट्रपति जिया-उल-हक से मुझे मिलाया था। 10 साल पहले वाशिंगटन में भी भारत-पाक सम्मेलन में पाक राजदूत के रुप में जनरल दुर्रानी मुझसे मिले थे। ये आसिफ जरदारी और गिलानी के जमाने में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पद पर थे लेकिन इन्हें इस्तीफा इसलिए देना पड़ा था कि इन्होंने हत्यारे कसाब को पाकिस्तानी कह दिया था।

यों भी दुर्रानी को ‘जनरल शांति’ कहा जाता है, क्योंकि वे भारत और पाक के बीच सद्भाव कायम करवाने की कोशिश करते रहते हैं। अब ये जनरल साहब जैसे ही पाकिस्तान लौटेंगे, इन पर शाब्दिक हमले होने लगेंगे। यों तो उन्होंने अपनी पुरानी बात को ही दोहराया है लेकिन उसे भारत में आकर कहा है, इसलिए उसकी तीव्र प्रतिक्रिया जरुर होगी। वास्तव में जनरल दुर्रानी ने तो पाकिस्तानी सरकार, फौज और आईएसआई को पूरी तरह से बचा लिया है।

उनसे कोई पूछे कि क्या इन तीनों संगठनों की जानकारी और मदद के बिना क्या आतंक का इतना बड़ा अभियान किसी भी देश में लगातार चलता रह सकता है? यदि हां तो इसके साथ-साथ आपको यह भी मानना होगा कि उस देश की ये तीनों संस्थाएं बिल्कुल निकम्मी है। उनकी नाक के नीचे अंधेरा है लेकिन ऐसा नहीं है। यदि पाकिस्तान की फौज और सरकार तय कर ले कि उसे भारत के विरुद्ध आतंकवाद नहीं फैलाना है तो किसकी मजाल है कि वह सिर उठाए? पाकिस्तान की फौज इतनी ताकतवर है कि वह पाकिस्तान तो पाकिस्तान, अरब देशों में पल रहे आतंकवाद को भी जड़-मूल से उखाड़ सकती है। पता नहीं, वह दिन कब आएगा?

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