गिलगिट-बाल्टिस्तान : पाकिस्तान के गाल पर करारा तमाचा

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प्रांत बनाकर गिलगिट-बाल्टिस्तान को हड़पने की साजिश

प्रमोद भार्गव

पाकिस्तान ने गिलगिट-बाल्टिस्तान को पांचवां प्रांत बनाने का प्रस्ताव पारित करके भारतीय अखंडता के विरुद्ध गहरी साजिश रची है। हालांकि जम्मू-कश्मीरके उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा है कि गिलगिट-बाल्टिस्तान और पीओके भारत का अभिन्न हिस्सा हैं और रहेंगे। पाकिस्तान का यह प्रस्ताव असंवैधानिक होने के साथ शिमला-समझौते के खिलाफ भी है। बावजूद पाकिस्तान इन मसलों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिशकर रहा है। इस प्रांत के नक्षे में विवादित पीओके की भूमि भी शामिल है। इस बाबत यह अच्छी बात है कि पाक के इस कदम का विरोध ब्रिटिष संसद ने प्रस्ताव पारित करके किया है। भारतीय पक्ष के हिसाब से यह घटनाक्रम सकारात्मक है, वहीं पाकिस्तान के गाल पर करारा तमाचा है।

गिलगिट-बाल्टिस्तान और पीओके के वास्तव में भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य के हिस्सा है। बावजूद 4 नबंवर 1947 से पाकिस्तान के नाजायज कब्जे में है। जिन इलाकों को पाक अधिकृत कश्मीर के रूप में जाना जाता है, उन्हें पाकिस्तान ने 1947-48 में हमला करके अपने कब्जे में ले लिया था। इनमें भी गिलगिट-बाल्टिस्तान का जो भूखंड है, उसकी कहानी थोड़ी भिन्न है। दरअसल गिलगिट का क्षेत्र अंग्रेजों ने जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरी सिंह से पट्टे पर लिया था। जिससे इस क्षेत्र के ऊंचे शिखरों से निगरानी की जा सके। इसके लिए “गिलगिट स्काउट्स फोर्स” नामक सेना भी रहती थी। अंग्रेजों को जब भारत छोड़कर जाना पड़ा तो उन्होंने पट्टे के दस्तावेज हरी सिंह को लौटा दिए। उन्होंने ब्रिगेडियर घंसार सिंह को यहां का गर्वनर बनाया। गिलगिट स्काउट्स के सैनिक भी महाराज के अधीन कर दिए। मेजर डब्लूय ए ब्राउन और कैप्टन एएस मैथीसन इस फौज के अधिकारी थे। जब पाकिस्तान ने कबायलियों की आड़ में पाकिस्तानी फौज भेजकर जम्मू-कश्मीरपर आक्रामण कर दिया। इस विपरीत परिस्थति के चलते हरि सिंह को अपना राज्य भारत में विलय करने को मजबूर होना पड़ा। 4 अक्टूबर 1947 को इंस्टूमेंट आॅफ एक्सेषन नामक दस्तावेज पर दस्तखत हुए। इसके बाद गिलगिट-बाल्टिस्तान पर भारत का वैध कब्जा हो गया। लेकिन ब्राउन ने महाराज के साथ गद्दारी की। उसने घंसार सिंह को गिरफ्तार कर पेशावर की जेल में भिजवा दिया। साथ ही अंग्रेज सीनियर लेफ्टिनेंट रोजर बेकन को खबर की कि गिलगिट-बाल्टिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा बनने जा रहा है। 2 नबंवर 1947 को ब्राउन ने यहां पाक का झण्डा भी फहरा दिया। तब से इस भूखंड पर पाक का कब्जा है। इसी कब्जे को ब्रिटिश संसद ने अवैध करार दिया है। साथ ही गिलगिट-बाल्टिस्तान को जम्मू-कश्मीर का भूभाग बताया है। इस क्षेत्र में चीन द्वारा बनाए जा रहे आर्थिक गलियारे को अवैध निर्माण बताया है।

यहां कब्जें के समय से ही राजनीतिक अधिकारों के लिए लोकतांत्रिक आवाज उठाने वाले लोगों पर दमन और अत्याचार जारी है। साफ है, पाक की आजादी के समय से ही गिलगिट-बाल्टिस्तान का मुद्दा जुड़ा हुआ है। पाक की कुल भूमि का 40 फीसदी हिस्सा यही है। लेकिन इसका विकास नहीं हुआ है। करीब 1 करोड़ 30 लाख की आबादी वाले इस हिस्से में सर्वाधिक बलूच हैं, इसलिए इसे गिलगिट-ब्लूचिस्ताल भी कहा जाता है। पाक और ब्लूचिस्तान के बीच संघर्ष 1945, 1958, 1962-63, 1973-77 में होता रहा है। 77 में पाक द्वारा दमन के बाद करीब 2 दषक तक यहां शांति रही। लेकिन 1999 में परवेज मुषर्रफ सत्ता में आए तो उन्होंने बलूच भूमि पर सैनिक अड्डे खोल दिए। इसे बलूचों ने अपने क्षेत्र पर कब्जे की कोशिश माना और फिर से संघर्ष तेज हो गया। इसके बाद यहां कई अलगाववादी आंदोलन वजूद में आ गए। इनमें सबसे प्रमुख “ब्लूचिस्तान लिबरेशन आर्मी” प्रमुख है।

हाल ही में पीओके क्षेत्र में लोकतांत्रिक उदारवादी मुखौटा सामने लाने के मकसद से पाक ने चुनाव कराए थे। लेकिन बड़ी मात्रा में सेना और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग ने धांधली की। उसने 41 में से 32 सीटें हथिया लीं। निर्वाचन की प्रक्रिया से गुजरने के बावजूद यहां की विधानसभा को अपने बूते कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं है। सारे फैसले एक परिषद् लेती है, जिसके अध्यक्ष पाकिस्तान के पदेन प्रधानमंत्री होते है। लिहाजा चुनाव के बावजूद यहां विद्रोह की आग सुलगी हुई है। यह आग अस्तोर, दियामिर और हुनजा समेत उन सब इलाकों  में सुलग रही है, जो शिया बहुल हैं। सुन्नी बहुल पाकिस्तान में शिया और अहमदिया मुस्लिमों समेत सभी धार्मिक अल्पसंख्यक प्रताड़ित किए जा रहे हैं। अहमदिया मुस्लिमों के साथ तो पाक के मुस्लिम समाज और हुकूमत ने भी ज्यादती बरती है। 1947 में उन्हें गैर मुस्लिम घोषितकर दिया गया था। तब से वे न केवल बेगाने हैं, बल्कि मजहबी चरमपंथियों के निशाने पर भी हैं।

पीओके और ब्लूचिस्तान पाक के लिए बहिष्कृत क्षेत्र हैं। पीओके की जमीन का इस्तेमाल वह, जहां भारत के खिलाफ शिविर लगाकर गरीब व लाचार मुस्लिम किशोरों को आतंकवादी बनाने का प्रशिक्षण देता है, वहीं ब्लूचिस्तान की भूमि से खनिज व तेल का दोहन कर अपनी आर्थिक स्थिति बहाल किए हुए है। अकेले मुजफ्फराबाद में 62 आतंकी शिविर हैं। यहां के लोगों पर हमेशा पुलिसिया हथकंडे तारी रहते हैं। यहां महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं है। गरीब महिलाओं को जबरन वैश्यावृत्ति के धंधों में धकेल दिया जाता है। 50 फीसदी नौजवानों के पास रोजगार नहीं हैं। 40 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। 88 प्रतिशत क्षेत्र में पहुंच मार्ग नहीं हैं। बावजूद पाकिस्तान पिछले 70 साल से यहां के लोगों का बेरहमी से खून चूसने में लगा है। जो व्यक्ति अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाता है, उसे सेना, पुलिस या फिर आइएसआई उठा ले जाती है। पूरे पाक में शिया मस्जिदों पर हो रहे हमलों के कारण पीओके के लोग मानसिक रूप से आतंकित हैं। दूसरी तरफ पीओके के निकट खैबूर पख्तूनख्वा प्रांत और कबाइली इलाकों में पाक फौज और तालिबानियों के बीच अकसर संघर्ष जारी रहता है, इसका असर गुलाम कश्मीरको भोगना पड़ता है। नतीजतन यहां खेती-किसानी, उद्योग-धंधे, शिक्षा-रोजगार और स्वास्थ्य-सुविधाएं तथा पर्यटन  चैपट हैें।

ब्लूचिस्तान ने 70 साल पहले हुए पाक के कब्जे को कभी स्वीकार नहीं किया। लिहाजा वहां अलगाव की आग निरंतर बनी हुई है। नतीजतन 2001 में यहां 50 हजार लोगों की हत्या पाक सेना ने कर दी थी। इसके बाद 2006 में अत्याचार के विरुद्ध आवाज बुलंद करने वाले 20 हजार सामाजिक कार्यकर्ताओं को अगवा कर लिया गया था, जिनका आज तक पता नहीं है। 2015 में 157 लोगों के अंग-भंग किए गए। फिलहाल पुलिस ने जाने-माने एक्टिविस्ट बाबा जान को भी हिरासत में लिया हुआ है। पिछले 16 साल से जारी दमन की इस सूची का खुलासा वाॅशिगटंन में कार्यरत संस्था “गिलगिट-बाल्टिास्तान नेशनल कांग्रेस” ने किया है।

दरअसल इस क्षेत्र को नवीन राज्य बनाने की कोशिश इसलिए की जा रही है, क्योंकि चीन पाकिस्तान में बड़ा निवेश कर रहा है। ग्वादर में एक बड़ा बंदरगाह बनाया है। चीन की एक और बड़ी योजना है, चाइना-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा इसकी लागत है 3 लाख 51 हजार करोड़ है। यह गलियारा गिलगिट-बाल्टिस्तान से गुजरना है। अब चीन नहीं चाहता कि उसकी परियोजना ऐसे इलाके से निकले जिसे लेकर किसी तरह का विवाद हो। इसलिए यह भी आशंका है कि कहीं पाक को चीन ने ही तो नया प्रांत बनाने के लिए नहीं उकसाया ? क्योंकि यह दोनों देशअपने स्वार्थ साधने के लिए अंतरराष्ट्रीय कायदे-कानूनों का खुलेआम उल्लंघन करते रहते हैं। ब्रिटिश प्रस्ताव की भाषा से साफ है कि चीन और पाक के इस रूख से वैश्विक समुदाय भी खफा है। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि दुनिया के कई देश इस पूरे क्षेत्र को विवादित मानते हैं।

गिलगिट-बाल्टिस्तान को अगर पाकिस्तान सचमुच अपना पांचवां प्रांत बना लेता है तो यह चाल कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लघंन होगी। इसके उलट पाकिस्तान ने यहां सुन्नी मुसलमानों की संख्या बढ़ाकर इस पूरे क्षेत्र का जनसंख्या घनत्व बदलने की भी कोशिशकी है। इस कारण भी यहां के मूल्य बलूचों की पाकिस्तान के प्रति जबरदस्त नाराजी है। समझौतों के उल्लघंन से बड़ा मुद्दा यह भी है कि यह इलाका एक ऐसे विवाद का हिस्सा रहा है, जिसने 70 सालों में हजारों जानें ली हैं। इसलिए जब तक जम्मू कश्मीरके मसले का कोई पक्का हल नहीं निकल जाता, पाकिस्तान को मामूली फायदे के लिए इतिहास से खिलवाड़ करने से बचना चाहिए।

 

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