पंचवार्षिक योजनाएं एवं ग्रामीण विकास

5सरांश:

भारत आजादी के समय से ही कल्याणकारी देश रहा है और सभी सरकारी प्रयासों का मूलभूत उद्देश्य देश की जनता का कल्याण करना रहा है। स्वतंत्रता के पश्चात् ग्रामीण विकास के लिए विविध कार्यक्रमों, योजनाओं, पंचावार्षिक योजनाओं के माध्यम से किये गये विकास कार्यों का मूल्यांकन से स्पष्ट होता है कि विभिन्न योजनागत कार्यक्रमों के अंतर्गत, अपेक्षित रूप से अधिक विकसित जनसंख्या समूह और अधिक विकसित हुआ है, जबकि विस्तृत ग्रामीण क्षेत्र का संरचनात्मक परिवर्तन तो हुआ है, किन्तु पर्याप्त नहीं हैं, क्योंकि विभिन्न विकास कार्यक्रमों के तहत प्रदत्त सुविधायों का लाभ देश में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक विषमता, सामन्तवाद और जमींदारी के अवशेषों का होना, राजनीतिज्ञ, अफसरशाही एवं प्रजातांत्रिक संस्थाओं में अवैधानिक प्रतिनिधित्व, जाति, धर्म, परिवारवाद, माफिया इत्यादि का प्रभाव होने के कारण लगभग ८० प्रतिशत तक का लाभ कुलीन वर्ग को ही मिला है। यह हमारा दुर्भाग्य या विडम्बना ही है कि हमें इन योजनाओं से आशातीत सफलता उपलब्ध नहीं हो सकी है। हम अभी भी देश के ग्रामीण को वे मूलभूत सुविधाऍ सड़क, बिजली, समुचित शिक्षा, चिकित्सा, सड़क एवं शुद्वपेयजल, वैज्ञानिक, तकनीकी एवं औद्योगिक समृद्धि का समुचित लाभ, उन्हें आजादी के ६७ वर्ष बाद भी उपलब्ध नहीं करा पाये हैं, जो उन्हें हरहाल में मिलना ही चाहिए।

 

प्रस्तावना :

प्रस्तुत शोध आलेख ‘‘पंचवार्षिक योजनाएं एवं ग्रामीण विकास’’ के संदर्भ में प्रस्तुत करने का पूर्णतः प्रयास किया गया है, क्योंकि मानव सभ्यता के इतिहास पर प्रकाश डालने से साफ जाहिर होता है कि ग्रामीण विकास एवं शासन की योजनाएं व नीतियों के बीच संबंध मजबूत सूत्रों के माध्यम से जुड़ा हुआ है। सर्व विदित हो कि भारत आजादी के समय से ही कल्याणकारी देश रहा है और सभी सरकारी प्रयासों का मूलभूत उद्देश्य देश की जनता का कल्याण करना रहा है। ग्रामीण गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य को लेकर ही नीतियां और कार्यक्रम बनाएं जाते रहे है और भारत में योजनाब विकास को प्राथमिक उद्द्देश्यों में से एक रहा है। ऐसा महसूस किया गया कि गरीबी उन्मूलन की दीर्घकालीन कार्यनीति, प्रगति की प्रक्रिया में रोजगार के सार्थक अवसर बढ़ाने के सिंद्धांत पर आधारित होनी चाहिए। विकास की सभी योजनाएं एवं रूपरेखा गरीबी उन्मूलन, अज्ञानता मिटाने, रोगों से मुक्ति एवं अवसरों की असमानता को दूर करने और देशवासियों को बेहतर तथा उच्च स्तरीय जीवन प्रदान करने के मूलभूत आधार पर ही निरूपित की गई है।

भारत में ग्रामीण विकास हेतु मुगल काल से लेकर आज तक विकास कार्यों के लिए योजनाओं के माध्यम से पहल होती रही है। भारत में विविध प्रस्तावों, संशोधनों, कार्यक्रमों, अधिनियमों योजनाओं व नीतियों आदि के माध्यम से ग्रामीण विकास किया जा रहा है। केंन्द्र व राज्य प्रयोजित योजनाएं ग्रामीण विकास के लिए बनाई जाती है। लेकिन आजादी के ६८ वर्ष पूरे होने जा रहे है और गांवों की तस्वीर बहुत कुछ बदल सी गई है। यदि गांवों के विकास की गति इसी तरह चलती रही तो २०३० तक भारत दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच होगा।

विकास की संकल्पना

विकास शब्द की उत्पत्ति ही गरीब, उपेक्षित व पिछड़े सन्दर्भ में हुई। अतः विकास को इन्हीं की दृष्टि से देखना जरुरी है। विकास को साधारणतया ढाँचागत विकास को ही विकास के रूप में ही देखा जाता है, जबकि यह विकास का एक पहलू मात्र है। विकास को समग्रता में देखना जरूरी है, जिसमें मानव संसाधन, प्राकृतिक संसाधन, सामाजिक, आर्थिक राजनैतिक, सांस्कृतिक व नैतिक व ढाँचागत विकास शामिल हो। विकास के इन विभिन्न आयामों में गरीब, उपेक्षित व पिछडे वर्ग व संसाधन हीन की आवश्यकताओं एवं समस्याओं के समाधान प्रमुख रूप से परिलक्षित हों। वास्तव में विकास एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है जो सकारात्मक बदलाव की ओर इषारा करती हैं। एक ऐसा बदलाव जो मानव, समाज, देश व प्रकृति को बेहतरी की ओर ले जाता है।

अतः आदिम युग से अंतरिक्ष युग की यात्रा, विकास का शुभ परिणाम है, विकास के विविध कारण रहे हैं, कभी भी मानव की सहज प्रविृत ने विकास का मार्ग प्रसस्त किया तो कभी परिस्थितियों व आवश्यकताओं ने मानव को विकसित होने के लिए बाध्य किया है। मानव ने अपने अस्तित्व के परीक्षण के लिए भी विकास को अंगीकृत किया, अर्थात परिवर्तन प्रकृति का नियम है। परिवर्तन सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही हो सकते हैं। किसी भी  समाज, देश व विश्व में कोई भी सकारात्मक परिवर्तन जो प्रकृति और मानव दोनों को बेहतरी की ओर ले जाता है वही वास्तव में विकास है।

अगर हम विश्व के इतिहास में नजर डालें तो पता चलता है कि विकास शब्द का बोलबाला विशेष रूप से द्वितीय विश्व यु के बाद सुनाई दिया जाने लगा। इसी समय से विकसित व विकासशील देशों के बीच के अन्तर भी उजागर हुए और शुरू हुई विकास की अन्धाधुन्ध दौड़। सामाजिक वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों, नीति नियोजकों द्वारा विकास शब्द का प्रयोग किया जाने लगा। मानव विकास, सतत् विकास, चिरन्तर विकास, सामुदायिक विकास, सामाजिक विकास, आर्थिक विकास, राजनैतिक विकास ग्रामीण विकास जैसे अलग-अलग शब्दों का प्रयोग कर विकास की विभिन्न परिभाषाएं दी गई। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार “विकास का तात्पर्य है सामाजिक व्यवस्था, सामाजिक संरचना, संस्थाओं, सेवाओं की बढ़ती क्षमता जो संसाधनों का उपयोग इस प्रकार से कर सके ताकि जीवन स्तर में अनुकूल परिवर्तन आये”।

ग्रामीण विकास की संकल्पना :

ग्रामीण विकास से आशय ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र विकास से है। हमारे देश की विशाल जनसंख्या सदियों से शोषित होकर शिकार हुई है अतः उनको औपनिवेशिक सत्ता से मुक्ति मिलने के बाद उनका प्रथम उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रही जनता का सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक उत्थान करना रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त निर्धनता, बेरोजगारी, निरक्षरता एवं प्राकृतिक संसाधनों के लक्षण देखने को मिलते है। अतः ग्रामीण क्षेत्रों से आशय ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का जीवन स्तर में सुधार लाना है। हम सभी जानते है कि ग्रामीण विकास की अवधारण में वैचारिक एवं सैद्यांतिक मतभेद देखने को मिलता है, लेकिन व्यवहारिक रूप से ग्रामीण विकास की संकल्पना स्पष्ट है, जिसमें ग्रामीण जीवन में सुधार व परिवर्तन लाने से है। संक्षेप में ग्रामीण विकास से तात्पर्य यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत व्यक्तियों के जीवन स्तर में सुधार कर उन्हें आर्थिक विकास की धारा में प्रवाहित करना है, जिसके लिए इनकी मूल जरूरतों को पूरा करने के साथ साथ उन्हें पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध करना होगा।

ग्रामीण विकास हेतु प्रयास :

नियोजन के प्रारंभ में सरकार ने अलग से इस समस्या के समाधान पर कोई खास ध्यान नहीं दिया किन्तु चौथी योजना के समय से इस पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। २०११ की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या में से ८३,३०,८७,६६२ ग्रामीण भागों में निवास करती है, जिनमें से ७० प्रतिशत जनता प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से खेती पर निर्भर है। कृषि से सम्पूर्ण जनता को रोजगार उपलब्ध नहीं हो सकता है। ग्रामीण भागों मे बेरोजगारी व अर्धबेरोजगारी ही दरिद्रता का मुख्य कारण है। ग्रामीण जनता के विकास व दरिद्रता निर्मूलन के लिए अनेक कार्यक्रम शासन द्वारा चलाया जा रहा है, परन्तु इस कार्यक्रम का यश अत्यन्त मर्यादित है। जिस तरह से जनसंख्या का प्रमाण बढ़ा है उस तरह से उत्पादन नहीं बढ़ा है।

स्वतंत्रता से पूर्व ग्रामीण विकास :

स्वतंत्रता से पूर्व भी ग्रामीण विकास कार्यक्रमों को चलाया जाता था। इस काल १९२१ में श्री निकेतन परियोजना ग्रामीण पुनर्निमाण के लिए शुरू की गयी। १९२१ में ही मार्तण्डम प्रकल्प डॉ स्पेन्सर हैच द्वारा ‘यंत्र मैन क्रिश्चियन ऐशोसिएशन’ द्वारा कन्याकुमारी जिले मे चलाया गया। १९३६ में महात्मा गांधी ने सेवा ग्राम परियोजना आरंभ की। १९२७ में गुडगांव परियोजना एफ.एल ब्रायनें ने आरंभ किया। १९४९ में एस.के.डे ने निलोखेड़ी परियोजना आरंभ की। १९४८ में अलवार जिले के मेहवा गांव में इटावा परियोजना आरंभ की गयी।

 

 

स्वतंत्रता से बाद ग्रामीण विकास :

स्वतंत्रता के पश्चात् ग्रामीण विकास के लिए सामुदायिक विकास योजना से अब तक विभिन्न परियोजनाएं बनायी गयी। ग्रामीण विकास के लिए केन्द्र व राज्य शासन द्वारा प्रायोजित करीब १५० योजनाओं का निर्माण, कियान्वयन व मूल्यांकन किया जा चुका है और कुछ योजनाएं आज भी संचालित की जा रही है। इस योजनाओं का प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण जनता में प्रगतिशील दृष्टकोण पैदा करना, सहकारी तरीके से काम करने की आदत डालना, उत्पादन बढ़ाना व रोजगार में वृध्दि करना था। सामुदायिक विकास का अभिप्राय सम्पूर्ण समाज का विकास करना और उसे आत्म निर्भर बनाने से है।

सरकार द्वारा संचालित की जा रही ग्रामीण विकास और कल्याण की योजनाओं का दृष्टपात करें, तो विदित होता है कि सामाजिक न्याय एवं विकास की महात्वाकांक्षी अभिलाषा के साथ देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही विकास और कल्याण की अनेकानेक योजनाओं और कार्यक्रमों को संचालित किया जा रहा है। प्रारंभ में इन योजनाओं और कार्यक्रमों की संख्या काफी कम रही। जिनमें उत्तरोत्तर वृद्धि की जाती रही। पिछले दो दशकों से सरकार द्वारा विभिन्न अवसरों पर नई-नई योजनाओं की भरमार सी होती जा रही है। ग्रामीण विकास के संदर्भ में क्रियान्वित उपर्युक्त योजनाओं के अतिरिक्त ग्रामीण स्वच्छता राष्ट्रीय, सामाजिक सहायता कार्यक्रम, राष्ट्रीय वृध्दावस्था पेंशन योजना, राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना, पर्यावरण सुधार कार्यक्रम, सामूहिक बीमा योजना, फसल बीमा योजना, कुटीर ज्योति कार्यक्रम शुरू किये गये हैं। भारत सरकार के अतिरिक्त विभिन्न राज्यों में भी ग्रामीण विकास के लिए अनेक योजनाएं एवं कार्यक्रम शुरू किये गये है, इनको प्रभावशाली तरीके से सफल बनाने के लिए पंचायती राज व्यवस्था से जोड़ने की व्यवस्था है। महाराष्ट्र राज्य में ज्यादातर योजनाओं एवं कार्यक्रमों ने गांव की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, फिर भी यही कहा जा सकता है कि कुछ कारणों से ग्रामीणों को इन योजनाओं व कार्यक्रमों से अपेक्षित कार्य नहीं मिल पाया है।

पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण विकास :

इस योजना के अंतर्गत नियोजित अर्थतंत्र के माध्यम से ग्रमीण विकास नीतियों को लागू किया गया था, ताकि देश में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक विषमता के परिप्रेक्ष्य में पिछड़ों एवं वंचित लोगों को विकसित किया जा सके :-

१.    प्रथम पंचवर्षीय योजना ;१९५१.५६ : इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण विकास योजना के लिए मुख्य रूप से शोषितों, कृषि तथा सामुदायिक विकास, सिंचाई योजना, बिजली, ग्राम तथा लघुउद्योगों जैसे चार लक्ष्यों को रखा गया था, जिसमें कुल योजना व्यय का कम से कम ३९ प्रतिशत ग्रामीण विकास कार्यक्रम में खर्च करने का लक्ष्य था, इस योजना से प्रति व्यक्ति आय में ११ प्रतिशत तथा खाद्यान्न उत्पादन में रिकार्ड वृद्वि हुई।

२.    द्वितीय पंचवर्षीय योजना ;१९५६.६१ : इस योजना में प्रथम पंचवर्षीय योजना के लक्ष्यों को ही रखा गया, ताकि ग्रामीण क्षेत्र का समुचित विकास हो सके तथा प्रथम पंचवर्षीय योजना में व्यय राशि का १५२ प्रतिशत की वृद्धि की गई।

३.    तृतीय पंचवर्षीय योजना;१९६१.६६ : इस योजना के अतंगर्त उद्योग और खनिज, परिवहन संचार, सामाजिक सेवाऍ एवं अन्य योजनाओं को रखा गया। इस योजना काल में ग्रामीण विकास पर १९९५ करोड़ रूपये व्यय किये गये, जो कि कुल योजना व्यय का २३ प्रतिशत था, किन्तु दुर्भाग्यवश इस योजना काल में देश को प्राकृतिक आपदा सूखा तथा सन् १९६२ में चीन एवं सन् १९६५ में पाकिस्तान से युद्व का सामना करना पड़ा। अतः इन आपदाओं के कारण इस योजना का वांछित परिणाम प्राप्त नहीं हो सका।

४.    चतुर्थ पंचवर्षीय योजना;१९६९.७४ : इस योजना के अन्तर्गत कृषि, शिक्षा, वैज्ञानिक शोध, स्वास्थ्य कल्याण एवं परिवार नियोजन कार्यक्रम को रखा गया था, किन्तु ग्रामीण भारत की रीढ़ कृषि व्यवस्था होने के कारण, इसे प्रमुखता से लिया गया था तथा वृहद, लघु व कुटीर उद्योगों पर व्यय राशि के प्रतिशत को कम करके, परिवार नियोजन कार्यक्रम पर पर्याप्त राशि का व्यय किया गया था।

५.    पांचवीं पंचवर्षीय योजना ;१९७४.७९ : इस योजना के अन्तर्गत श्रम कल्याण एवं दस्तकारी, एकीकृत ग्रामीण विकास, पहाड़ी आदिवासी क्षेत्र विकास कार्यक्रम लागू किये गये थे तथा इन योजनाओं में कुल योजना व्यय का २४ प्रतिशत राशि ९३३४ करोड़ रूपये खर्च किये गये थे।

६.    छठी पंचवर्षीय योजना ;१९८०.८५: इस योजना में पोषण आहार, ग्रामीण आवास, गरीबी उन्मूलन की योजनाओं को लागू किया गया था, इस योजना में ग्रामीण विकास कार्यक्रमों पर २६ प्रतिशत योजना व्यय राशि का २८०७६ करोड़ रूपया खर्च किया गया तथा इसी योजना काल में आजादी के बाद पहली बार ग्रामीण विकास की अवधारणा को दृढ़ता के साथ स्वीकारा गया था। परिणामरूप ग्रामीण निर्धनता उन्मूलन हेतु एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (आई.आर.डी.पी.) का प्रारंभ इसी योजना काल में हुआ तथा इसी योजना काल में राष्ट्रीय ग्राम रोजगार कार्यक्रम भी प्रारंभ हुआ था। अतः इस योजना काल को ग्रामीण विकास की प्रधान योजना काल कहा जाता है।

७.    सातवीं पंचवर्षीय योजना ;१९८५.९१ रू इस योजना में पुनः पोषण आहार, ग्रामीण आवास योजना को रखा गया था तथा ग्रामीण विकास हेतु कुल योजना व्यय का २४ प्रतिशत राशि ५१३४९ करोड़ रूपये व्यय किये गये थे।

८.    आठवीं पंचवर्षीय योजना ;१९९२.९७ रू इस योजना में पहली बार ग्राम विकास हेतु पृथक राशि आबंटित की गई थी तथा सम्पूर्ण योजना में ग्राम विकास तथा गरीबी उन्मूलन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई थी।

९.    नौवीं पंचवर्षीय योजना ;१९९७-०२ : इस योजना काल में जनभागीदारी के माध्यम से ग्रामीण विकास कार्यक्रम क्रियान्यवित किया गया था तथा रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने एवं गरीबी उन्मूलन के लिए कृषि और ग्रामीण क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई थी। इस योजना काल में ग्रामीण विकास कार्यक्रम के लिए ४२,८७४ करोड़ रूपये आवंटित किय गए थे।

१०.   दसवीं पंचवर्षीय योजना ;२००२-०७ : इस योजना के अन्तर्गत सभी गॉवों में पीने का पानी उपलब्ध कराना एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार पर विशेष ध्यान दिये जाने का लक्ष्य रखा गया था। अतः इस योजना में ग्रामीण विकास कार्यक्रम के लिए धन का आवंटन बढ़ाकर ७६ए७७४ करोड़ रूपये कर दिया गया था।

११.   ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना ;२००७-१२ : इस योजना के अन्तर्गत २००९ तक देश के सभी गॉवों में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों को विद्युत व्यवस्था सुनिश्चित कर चौबिसों घटें विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था करना तथा समस्त गॉवों में २०१२ तक स्वच्छ पेयजल की सुविधा उपलब्ध कराते हुये निर्धनता अनुपात में १५ फीसदी की कमी लाना था।

१२.   बारहवीं पंचवर्षीय योजना ;२०१२-१७ : इस योजना के अन्तर्गत समस्त ग्रामीण क्षेत्रों को मुख्य मार्गो से जोड़ कर आवागमन की उपलब्धता, विद्युत व्यवस्था एवं १०० दिन की रोजगार गरंटी योजना लागू कर ग्रामीण बेरोजगारों का जीवन स्तर ऊॅचा करने के उद्देश्य से कार्यक्रम संचालित हैं।

निष्कर्ष :

आजादी से आज तक ग्रामीण विकास के विविध कार्यक्रमों, योजनाओं, पंचावार्षिक योजनाओं के मूल्यांकन से स्पष्ट होता है कि विभिन्न योजनागत कार्यक्रमों के अंतर्गत, अपेक्षित रूप से अधिक विकसित जनसंख्या समूह और अधिक विकसित हुआ है, जबकि विस्तृत ग्रामीण क्षेत्र का संरचनात्मक परिवर्तन तो हुआ है, किन्तु पर्याप्त नहीं हैं, क्योंकि विभिन्न विकास कार्यक्रमों के तहत प्रदत्त सुविधाओं का लाभ देश में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक विषमता, सामन्तवाद और जमींदारी के अवशेषों का होना, राजनीतिज्ञ, अफसरशाही एवं प्रजातांत्रिक संस्थाओं में अवैधानिक प्रतिनिधित्व, जाति, धर्म, परिवारवाद, माफिया इत्यादि का प्रभाव होने के कारण लगभग ८० प्रतिशत तक का लाभ कुलीन वर्ग को ही मिला है, क्योंकि विभिन्न योजनाओं के निर्माण, निर्णय, कार्यान्वयन वाली संस्थाओं में जिला ग्रामीण विकास अभिकरणए विकास खंड समिति और ग्राम पंचायत में क्षेत्र विशेष की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों के गठजोड़ का व्यापक प्रभाव है, जिसके कारण विकास कार्यक्रम लघुतम स्तर तक नहीं पहंुच पा रहे हैं। इन समस्त योजनाओं का जो लक्ष्य ग्रामीण जनता को बेरोजगारी से मुक्ति कर गरीबी की रेखा से ऊपर उठाना था, किन्तु यह हमारा दुर्भाग्य या विडम्बना ही है कि हमें इन योजनाओं से आशातीत सफलता उपलब्ध नहीं हो सकी है। हम अभी भी देश के ग्रामीणों को वे मूलभूत सुविधाऍ सड़क, बिजली, समुचित शिक्षा, चिकित्सा, सड़क एवं शुद्वपेयजल, वैज्ञानिक, तकनीकी एवं औद्योगिक समृद्धि का समुचित लाभ, उन्हें आजादी के ६७ वर्ष बाद भी उपलब्ध नहीं करा पाये हैं, जो उन्हें हरहाल में मिलना ही चाहिए।

संदर्भ सूची

१.    भारत २०१५ पृ। ६८४

२.    बोहरा, जयंज कुमार :  भारत में ग्रामीण विकास योजना की भूमिका, ग्रामीण विकास समीक्षा, अर्धवार्षिक हिन्दी पत्रिका जुलाई-दिसम्बर २०११, पृ। ७०

३.    भारतीय राजनीति विज्ञान शोध पत्रिका : भारतीय सामाजिक विज्ञान परिषद, जनवरी-जून २००९, मेरठ, पृ.९

४.    वी.सी.एवं पुष्पा सिन्हा : आर्थिक विकास एवं नियोजन, बसुन्धरा प्रकाशन, गोरखपुर

५.    बोहरा, जयंज कुमार : भारत में ग्रामीण विकास योजना की भूमिका, ग्रामीण विकास समीक्षा, अर्धवार्षिक हिन्दी पत्रिका जुलाई-दिसम्बर २०११, पृ। ७०

६.    पंचायती राज एक परिचय कोर्स कोड, सीसीआरपी-०१, २०१०-११ उत्तराखण्ड मुक्त विष्वविद्यालय हल्द्वानी, नैनीताल एवं हिमालयन एक्सन रिसर्च सेंटर, देहरादून, पृ। ४-५

७.    प्रतियोगिता दर्पण : भारतीय अर्थव्यवस्था उपकार प्रकाशन जयपुर २००४.पृ.१३५

८.    कुरूक्षेत्र अगस्त २००४. पृ। १७.

९.    डी.सी। पंत :  भरत में ग्रामीण विकास, कांलेज बुक डिपो जयपुर १९९९. पृ.१४५.

१०.   डॉ वीरेन्द सिंह यादव : इक्कीसवीं सदी का भारत, ओमेगा पब्लिेकशन, नई दिल्ली-२०१०.

११.   वी.सी.एवं पुष्पा सिन्हा : आर्थिक विकास एवं नियोजन, बसुन्धरा प्रकाशन, गोरखपुर

१२.   महिपालः ग्रामीण पुनर्निमाण में पंचायत की भूमिका, सूचना प्रसारण मंत्रालय, नई दिल्ली-२००२.

 

 

 

 

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  1. सत्तर के दशक के अंत में वर्ल्ड बैंक द्वारा एक पुस्तक प्रकाशित कि गयी थी: “अटैकिंग रूरल पावर्टी”.इस पुस्तक में सत्तर देशों में गरीबी हटाने के लिए किये गए प्रयासों का एक परिचयात्मक विवरण दिया गया था.भारत के सन्दर्भ में इसमें प्रथम पञ्च वर्षीय योजना में प्रारम्भ की गयी कम्युनिटी डेवलपमेंट की योजना का विवरण दिया था.इस योजना के अनुसार प्रत्येक जिले को कुछ ब्लॉक्स में विभाजित किया गया था औरप्रत्येक ब्लॉक कुछ ‘एरिया’ में विभाजित किया गया था.प्रत्येक ‘एरिया’ में कुछ गाँवों को शामिल किया गया था और गाँवों में एक ग्राम स्तरीय कार्यकर्त्ता नियुक्त किया गया था.इस ग्राम स्तरीय कार्यकर्त्ता को ग्राम सेवक, एरिया के प्रभारी को ए.डी.ओ. तथा ब्लॉक प्रभारी को बी.डी.ओ. कहा गया था. ग्राम स्तर पर सामान्यतया महिलाओं को तैनात किया गया था और उन्हें ग्रामसेविका कहा गया था.जिले स्तर पर एक ए.डी.एम. (नियोजन) उसका प्रभारी था.इसको पंचायती राज व्यवस्था से भी जोड़ा गया था अतः कहीं कहीं पर जिला पंचायती राज अधिकारी ही जिले का प्रभारी होता था.लेकिन वर्ल्ड बैंक ने परिचय से आगे जाकर इसकी उपलब्धियों के बारे में कुछ नहीं कहा.
    इन ग्रामसेविकाओं को गाँवों में परिवारों में संपर्क करके उन्हें शिक्षा, परिवार नियोजन, सफाई, और स्वास्थय आदि के बारे में जानकारी देनी थी.यह पता नहीं चल पाया है कि इस योजना में महिलाओं को यह दायित्व क्यों सौंपा गया था और यह किसका विचार था? लेकिन ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि संभवतः भारतीय समाज में परिवार को सबसे छोटी इकाई माना जाता है.और ग्रामों में परिवारों में संपर्क का अर्थ था कि दिन में उनसे संपर्क किया जाये.दिन में परिवार के पुरुषों के काम पर चले जाने के कारण महिलाओं से ही संपर्क हो सकता था.वैसे भी किसी भी समाज में परिवर्तन के लिए उससमाज के परिवारों की महिलाओं को परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जा सके तो उससे न केवल वर्तमान पीढ़ी बल्कि अगली पीढ़ी तक भी बदलाव आ सकता है.संभवतः इसी सोच के कारण ग्राम स्तर पर महिलाओं को ग्रामसेविकाओं के रूप में तैनात किया गया होगा.लेकिन परिणाम क्या हुआ? इन ग्रामसेविकाओं का शोषण ए.डी.ओ., बी.डी.ओ. ग्राम प्रधानजी और ब्लॉक प्रमुख जी के द्वारा किया गया.और विभाग में कहावत बन गयी,”जीप इज द बोन ऑफ़ कंटेंशन एंड VLW (ग्रामसेविका) इज द फलेश ऑफ़ कंटेंशन”. उ.प्र. में १९६७ में जब संविद सरकार बनी तो मु.म. चौधरी चरण सिंह ने ग्राम सेविकाओं के कारण गाँवों का माहौल ख़राब होने का तर्क देकर ग्रामसेविकाओं के पद समाप्त कर दिए.आजकल जिलों में मुखिया सी.डी.ओ. के अधीन इस योजना को ग्राम विकास योजना के रूप में चलाया जा रहा है.और ग्राम सेविकाओं के स्थान पर ग्राम विकास अधिकारी का पद सर्जित किया गया है.लेकिन क्या खरबों रुपये खर्च होने के बाद भी इस योजना से अपेक्षित परिणाम सामने आ पाये हैं?शायद ही कोई इससे सहमत होगा.
    वास्तव में गाँवों में विकास के लिए जब तक ग्राम स्तरीय कार्यकर्त्ता में समर्पण भावना नहीं होगी तब तक केवल कागज़ी आंकड़ों की खाना पूर्ती ही होती रहेगी.लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी ने १९७३ में एक ‘भारतीय ग्राम सेवा’ के गठन का आह्वान किया था.कुछ स्थानों पर अलग-अलग लोगों द्वारा इस दिशा में कुछ काम किये गए हैं.लेकिन व्यवस्थित तौर पर पूरे देश में इस दिशा में संगठित प्रयास नहीं हुआ है.स्व. नानाजी देशमुख द्वारा चित्रकूट का ग्रामीण विश्वविद्यालय भी इस निमित्त योग्य लोगों को तैयार करने का एक महत्वकांक्षी उपक्रम था.
    कन्याकुमारी के विवेकानंद केंद्र द्वारा तमिलनाडु के दस हज़ार गाँवों के विकास की एक महत्वकांक्षी योजना हाथ में ली गयी है. श्री अय्यप्पन जी इसे देख रहे हैं.लेकिन इसके परिणाम दिखाई देने में अभी कुछ वक़्त लगेगा.इस प्रकार की योजना पूरे देश में स्वयंसेवी संगठनों द्वारा समर्पण भावना से चलायी जाये और बड़ी संख्या में शिक्षित युवक अपने जीवन कुछ वर्ष इस कार्य के लिए समर्पित होकर दें तथा उन्हें डिजिटल इण्डिया के अंतर्गत आपस में जोड़ा जाए तो बहुत जल्दी ही देश के ग्रामीण अंचल का कायापलट हो सकता है.और भारत सही अर्थों में भा-रत हो सकेगा!

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