बी एन गोयल
एकसमय ऐसा था जब सामाजिक औरसांस्कृतिकदृष्टि से आकाशवाणी के स्टेशन डायरेक्टरकोएक सम्मानित उच्च पदासीन अधिकारी माना जाता था. इन का मान सम्मान था. प्रादेशिक केन्द्रों जैसे लखनऊ, अहमदाबाद, चेन्नई(मद्रास), मुंबई, पटनाआदि के निदेशक प्रदेश के सभी सरकारी (राज्यपाल अथवा मुख्य मंत्री द्वारा आयोजित) समारोह में एक नियम और प्रोटोकोल के अनुसार निमंत्रित किये जाते थे. सभासमारोह में इन के बैठने का स्थान भी निश्चित होता था. उस समय के निदेशक होते भी थे इस योग्य. ऐसे कुछ नाम मुझे इस समय याद आ रहें हैंजैसेकर्तार सिंह दुग्गल, बलवंत सिंह आनंद, E M जोसफ,बी रजनी कान्त राव, सुरेश ठाकोर, गोपाल दास,समर बहादुर सिंह, शेर सिंह शेर, P C चटर्जी, गिज्जुभाई व्यास,मधुभाई वैद्य कानेटकर, जी सुब्रमण्यम,जीरघुराम आदि कितने ही ऐसे नाम हैं. ये सबसाहित्य, संगीत, कला केमर्मज्ञ होते थे. समाज में इन का सम्मानआकाशवाणी के केंद्र निदेशक होने के कारण नहीं था वरन इन के अपने व्यक्तित्व के कारण था. सौभाग्यवश मुझेउपरोक्त के साथ काम करने अथवा इन से मिलने काअवसर मिला. इन में कुछलोगऐसे हैं जो अपने समय में ही लीजेंड बन चुके थे. इन लोगों अपने काम करने के तरीकों से प्रसारण को एक नया आयाम दिया, कुछ नयी परम्पराएँ डाली. इन के सामने ही इन के बारें में किम्वदंतियां चल पड़ी थी. इसकारण मेरे मन में इन से मिलने और इन के संस्मरण सुनने की इच्छा रहती थी. अतः जब भी समय मिला मैं इन से मिलता ही रहा. आज बात करते हैं स्व दुग्गल जी की –
दुग्गल जी उर्दू, हिंदी, पंजाबी और अंग्रेजी भाषाओँ के ज्ञाता थे. इन्होनेइन सभी भाषाओँ में कहानी, उपन्यास और नाटक लिखे. वे काफी समय तक आकाशवाणी में केंद्र निदेशक रहे. विभाजनके समय वे लाहौर केंद्र पर थे और अमृतसरभी इन के कार्य क्षेत्र का एक शहर था.दूरीदेखें तो मात्र 35 मील अर्थात56 किलोमीटर. वे बताया करते थे कि हम लाहौर रेडियो की तरफ से अमृतसर में प्रायःसंगीत और नाटक के मंचीय कार्यक्रम करते रहते थे. एक प्रोग्राम जो उन के ह्रदयमें गहरा बैठा था. यह विभाजन से कुछ पहले की ही बात है. एक बार अमृतसर में नाटकों का खुले मंच काप्रोग्रामआयोजित किया गया. कार्यक्रमअभी शुरू ही हुआ था की अचानक बहुत तेज आंधी तूफ़ान आ गया. थोड़ी देर तो प्रतीक्षा की कि शायद तूफ़ान थम जाये लेकिन जब देखा की यह रुकने वाला नहीं है तो ये अपना सारा सामान समेट कर और कलाकारों को लेकर अपने स्टूडियो में लाहौर आ गए. इसकार्यक्रम की याद इन्हें इस लिए सालती रही क्योंकि यह एक ऐतिहासिक घटनाबन गयी. इस के बाद ही दोनों शहर – अमृतसर औरलाहौर – दो अलगअलग देशों मेंबंट गए.
दुग्गलजीका जन्म 1 मार्च 1917 के दिन रावलपिंडी(पाकिस्तान) में हुआ था. उस युग में यह एक बहुत बड़ी बात थी जब एक सिख लड़के ने एक मुस्लिम लड़की से शादी की थी. इन की पत्नी का नाम था आयेशा जाफरी. रिटायर होने के बाद नेशनल बुक ट्रस्ट, हिंदी अकादमी, पंजाबीअकादमी आदि अनेक साहित्यिक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे. चूँकि ये स्वयं एक लेखक थे और पढ़ते भी खूब थे, ये अपने सहयोगियो से भी पढने लिखने की आशा करते थे.
दूसरी महत्त्वपूर्ण बात इन्हींसे जुडी है. आकाशवाणी के कार्यक्रम अनुभाग के लोगों के लिए यह आवश्यक माना जाता है कि वे अपनेविषयमें अद्यतन रहें. आकाशवाणी के हर केंद्र पर प्रारम्भ से ही हर सुबह कार्यक्रम मीटिंग की परंपरा रही है. इस मीटिंग में बीते हुए कल में प्रसारित हो चुके और आगामी एक सप्ताह में प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की समीक्षा की जाती है. 1970 तक यह मीटिंग निदेशक के कक्ष में ही होती थी लेकिन बाद में इस में थोडापरिवर्तन हो गया.
बात दुग्गल जी के समय की है –इनकेआदेशानुसार सप्ताहकाएक दिन निश्चित था जब मीटिंग मेंलाइब्रेरी अध्यक्ष को भी आना होता था. हरव्यक्ति को अपनी पसंद की पुस्तक का विवरण लाइब्रेरी अध्यक्ष को देना होता था जिस से वह पुस्तक मंगाई जा सके. पुस्तक कविता की हो अथवा कहानी की, नाटक हो अथवा ग़ज़लें, हिंदी में हो अथवा उर्दू में,आप यह नहीं कह सकते थे की आप की पसंद की पुस्तक बाज़ार में उपलब्ध नहीं थी.
मीटिंग का नियमित काम होने के बाद दुग्गल साब प्रत्येकअधिकारी से पूछते थे की उस ने इस सप्ताह में क्या नया पढ़ा अथवा उस की क्या मुख्य गतिविधि रही. इस का उत्तर देना सब के लिए अनिवार्य था. सब को अपनी अभिरुचि बताना भी आवश्यक था. पुस्तक मिलने के बाद हर व्यक्ति को आगामी मीटिंग में उस पुस्तक– (कहानी, कविता, नाटक अथवा उपन्यास) का संक्षिप्त देनाउस पर एक कार्यक्रम भी बनाना होता था.
इन के मित्रों में सआदत हसनमंटो खास थे. मंटो की एक प्रसिद्धकहानी थी – टोबा टेक सिंह. मैंने अनेक बार पढ़ी यह कहानी – यह बात दुग्गल साहब ने ही बताई कि टोबा टेक सिंह एक वास्तविक स्थान है जो पाकिस्तान में चला गया. पीरदाद की तरह …….
94 वर्ष की आयु में 26 जनवरी 2012 को इन का निधन हुआ – श्रद्धांजलिके रूप में नमन.