दल बदल लो दाग़ धुल जाएंगे

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अब्दुल रशीद 

सत्ता का सुख ऐसा है जिसको पाने के लिए नैतिकता और सिद्धांत को दाव पर लगाने से राजनैतिक दल अब परहेज नहीं करते। शायद अब राजनैतिक दलो से जनता के नेता को प्रत्याशी बनाने और उनके कथन पर एतबार करने का जमाना भी लद गया। कुछ ऐसा नज़ारा उत्तर प्रदेश के चुनाव में नज़र आ रहा है। बसपा सरकार को भ्रष्टाचार की गंगोत्री कहने वाली विपक्ष अब बसपा से बाहर का रास्ता दिखाए गए भ्रष्ट नेताओं का ठिकाना बनता जा रहा है। ऐसा लागता है के इस चुनाव के बाद भी आम जनता को वही जहरीला शराब पीना होगा बस लेबल बदल कर उन्हे पिलाने की तैयारी कर रहे है हमारे देश के राजनेता। यह कितना नायाब तरीक़ा है के जिन नेताओं पर बसपा सरकार में रहते विपक्ष ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर बसपा शासन को भ्रष्ट कहा उन्हीं नेताओं को विपक्ष अपने दल में शामिल कर जन नेता कहने में जरा भी नहीं शर्मा रही।

भगवान शंकर शर्मा जिन पर शीतल नाम की एक शोध छात्रा के अपहरण का आरोप है उन्हें समाजवादी पार्टी ने अपने पार्टी में शामिल कर लिया और फैजाबाद से सपा ने आनंद सेन के पिता मित्रसेन यादव को उम्मीदवार बनाया है जबकी यह वही आनंद सेन है जिनको बसपा शासन में रहने पर शशि कांड में सपा के दबाव के बाद इस्तीफ़ा देना पड़ा था। जबकि सपा के युवराज ने आज़म खां द्वारा सपा में डी पी यादव को लाने की कोशिश पर दो टुक कहा के सपा में भ्रष्ट नेताओं का कोई जगह नहीं ।

भाजपा “पार्टी विद ए डिफरेंस” का दावा करने वाली पार्टी ने बसपा सरकार में एनआरएचएस घोटाले के आरोपी बाबू सिंह कुशवाहा को पार्टी में शामिल कर के दलितों का नेता कह रही है जबकि बसपा सरकार के मंत्री अवधेश वर्मा के खिलाफ मोर्चा खोल कर जमानत जब्त कराने का अहवान करने वाली भाजपा ने अब स्वयं अवधेश वर्मा को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया।

जितेन्द्र सिंह बब्लू जिन पर रीता बहुगुणा जोशी के मकान जलाने का आरोप रहा वे अब पीस-पार्टी अपना दल बुन्देलखण्ड के साझा उम्मीदवार हैं।

यह सब तो महज बानगी भर है ऐसे और कई चेहरे सामने आने बाकी हैं। चुनाव के इस महा संग्राम में राजनीति दलो ने अपना जाल तो फैला दिया है लेकिन आम जनता को अब यह तय करना है के वह पार्टी को वोट देगी या साफ छवि के उम्मीदवार को। हां लाख टके का सवाल यह है की यदि साफ छवि का उम्मीदवार नहीं मिला तब?

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