‘बीजेपी’ अर्थात भ्रष्टाचारी जुटाओ पार्टी

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  डॉ आशीष वशिष्ठ

भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस ने ‘भ्रष्टजन’ पार्टी कहा था, लेकिन अब उसी के कार्यकर्ता और समर्थक उसे ‘भ्रष्टाचारी जुटाओ पार्टी’ कह रहे हैं। दरअसल यूपी चुनावों को येन-केन-प्रकरेण जीतने और सत्ता हासिल करने की ख्वाहिश में पार्टी ने बसपा के दागियों को गले लगाकर अपने लिए आफत मोल ले ली है। भ्रष्टाचारियों के सरताज कुशवाहा को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर थमने का नाम नहीं ले रहा है।

कुशवाहा को लेकर पार्टी के सीनियर नेता रामाशीष राय ने सीधे तौर पर प्रदेश पार्टी नेतृत्व पर पैसे लेकर उनको पार्टी में लेने का आरोप लगाया। रामाशीष राय से पहले आईपी सिंह भी पार्टी के निर्णय का विरोध कर चुके हैं। पार्टी नेतृत्व ने पार्टी विरोधी गतिविधियों का हवाला देकर रामाशीष राय और आईपी सिंह का पार्टी से निलंबित कर दिया गया।

 

भाजपा की शीर्ष नेत्री उमा भारती, योगी आदित्यनाथ, मेनका गांधी और मुख्तार अब्बास नकवी ने खुलकर पार्टी के इस फैसले का विरोध किया। पार्टी अंतर्विरोध को थामने की नीयत से कुशवाहा ने फिलहाल पार्टी अध्यक्ष गडकरी से अपनी सदस्यता स्थगित करने का आग्रह किया है और उनका अनुरोध पार्टी नेतृत्व ने मान भी लिया। लेकिन सुराज, शुचिता, संकल्प और विकल्प की झंडाबरदार बनी भाजपा की ऐसी कौन-सी मजबूरी थी कि उसने दागियों को ‘कमल’ थमाने में परहेज नहीं किया।

देशभर में चली अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी लहर के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने पूरे देश में रथ यात्रा कर भ्रष्टाचार के विरूद् प्रतिबद्धता, दृढ़ इच्छाशक्ति और संकल्प को मजबूत किया था। जनता भाजपा को यूपीए के सामने एक बेहतर और सशक्त विकल्प के तौर पर देखने लगी थी और उसकी बात सुनने लगी थी, लेकिन बसपा के दागियों को अपने में मिलाकर भाजपा ने अपने पक्ष में बने माहौल को खुद ही बिगाड़ लिया है।

भाजपा का दामन कुशवाहा से पूर्व भी दागदार हो चुका था। इसलिए कर्नाटक में येदुरप्पा और उत्तराखण्ड में निशंक को हटाना पार्टी की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का ही हिस्सा था। कर्नाटक में रेड्डी बंधुओं के कारनामे और भाजपा के बड़े नेताओं से नजदीकी किसी से छिपी नहीं थी। भाजपा ने ही हिमाचल में टेलीफोन घोटाले के आरोपी सुखराम की और झारखण्ड में शिबू सोरेन की सरकार बनाने में मदद की थी। लेकिन फिर भी कांग्रेस, बसपा और दूसरे दलों के मुकाबले भाजपा के दामन पर भ्रष्टाचार के दाग उतने गहरे नहीं दिख रहे थे।

असल में शीर्ष और प्रथम पंक्ति के नेता भाजपा में या तो साइडलाइन हो चुके हैं या उन्हें निष्क्रिय करने का काम जारी है। राष्ट्रीय स्तर पर जारी उठापटक और अनिश्चितता के माहौल ने निचले स्तर पर नेताओं को निरंकुश और ताकतवर बना दिया है। पूरी पार्टी दो गुटों में बंटी हुई है। ऐसे में मौका-बेमौका दोनों धड़े एक-दूजे को नीचा दिखाने और टांग घसीटने का कोई अवसर चूकते नहीं है। उत्तर प्रदेश में तो पार्टी की दशा दिन ब दिन बदतर होती जा रही है।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अपनी कुर्सी बचाने और विधायकी का चुनाव जीतने की जुगत में कोई भी उलटा-सीधा निर्णय और नीति बनाने से संकोच नहीं कर रहे हैं। उनका साथ देने के लिए पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कलराज मिश्र, राज्यसभा सांसद विनय कटियार और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की तिगड़ी लगी हुई है। राजनाथ सिंह सूर्य प्रताप ’शाही, विनय कटियार और कलराज मिश्र के कंधों पर बंदूक रखकर सीधे पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी पर निशाना साध रहे हैं ,तो विनय कटियार, कलराज मिश्र को उमा की उपस्थिति नागवार गुजर रही है।

प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा नेता पार्टी और संगठन के उत्थान, कल्याण और पार्टी की रीतियों-नीतियों को आगे बढ़ाने की बजाय निजी स्वार्थ, प्रतिद्वंद्विता, प्रतिस्पर्धा, दुश्मनी और एक दूसरे को निपटाने में ऊर्जा लगा रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के रहते भी पार्टी दो गुटों में बंटी थी, लेकिन आपसी फूट, वैचारिक भिन्नता और विरोध सड़कों पर सार्वजनिक नहीं होता था। अटल जी तो राजनीति को अलविदा कर ही चुके हैं और आडवाणी का कद, साख और पकड़ पार्टी पर ढीली हुई है। ऐसे में पार्टी में दूसरी पंक्ति के नेताओं में अपना वर्चस्व और गुट स्थापित करने की होड़ लगी हुई है, जिसकी झलक प्रदेश और जिला स्तर पर दिखाई दे रही है।

उत्तर प्रदेश में पिछले दो दशकों में पार्टी की लोकप्रियता का ग्राफ काफी नीचे गिरा है। किसी जमाने में प्रदेश का सबसे बड़े दल का गौरव रखने वाली बीजेपी अब तीसरे पायदान पर खड़ी है। पार्टी ने सूबे में गिरते ग्राफ और घटती लोकप्रियता को सुधारने की बजाए आपसी गुटबाजी, बयानबाजी, टांग खींचने और पीठ पर छुरा भोंकने के अलावा कुछ और नहीं किया।

सूबे में पार्टी संगठन एक दो नहीं, बल्कि कई छोटे गुटों में बंटा है। रमापति राम त्रिपाठी को हटा सूर्य प्रताप शाही को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने संगठन को चुस्त-दुरूस्त बनाने का मैसेज पार्टी कार्यकताओं और समर्थकों को दिया, लेकिन सूर्य प्रताप शाही ने पार्टी को मजबूती देने की बजाय खुद की कुर्सी बचा रखने की जुगत में अधिक समय लगाया। प्रदेश में पार्टी के सीनियर नेताओं में संवादहीनता की स्थिति है। कलराज मिश्र, लालजी टण्डन, केशरी नाथ त्रिपाठी, रमापति राम त्रिपाठी, सूर्य प्रताप शाही, हदय नारायण दीक्षित, विध्यवासिनी श्रीवास्तव और तमाम दूसरे समर्पित नेता गुटबाजी और खींचतान में जुटे हैं। इससे पार्टी कार्यकताओं और सर्मथकों में घोर निराशा और हताशा है।

स्थिति यह है कि प्रदेश में पार्टी के पास एक भी चेहरा ऐसा नहीं है कि जिसे वो मुख्यमंत्री के रूप में प्रचारित कर सके, वहीं पार्टी ने चुनाव प्रभारी के लिए उमा भारती को मध्य प्रदेश से आयतित कर रखा है। बड़े नेताओं में उमा भारती को लेकर नाराजगी है, इसीलिए प्रदेश के नेता चुनाव जीतने की जुगत लगाने की बजाय उमा और पार्टी के संकटमोचकों की टांगे घसीटने पर उतारू हैं।

नितिन गडकरी को पटखनी देने के लिए ही राजनाथ सिंह, विनय कटियार, कलराज मिश्र और सूर्यप्रताप शाही के गुट ने कुशवाहा और बसपा के दागियों को भाजपा में प्रवेश दिलाकर नितिन गडकरी के सर्वे और मिशन 2012 की पूरी तैयारियों की हवा निकाल दी है। आज भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बसपा और कांग्रेस को घेरने की बजाय भाजपा अपनों और बाहरियों को दागियों के मामले में सफाई देती फिर रही है। कुशवाहा से पूर्व भी कई दागी भाजपा में शामिल रहे, लेकिन उनको लेकर इतना बवाल नहीं मचा। वहीं बसपा के दागी अवधेश वर्मा, ददन मिश्र और बादशाह सिंह की कोई चर्चा ही नहीं कर रहा है। क्या केवल कुशवाहा ही दागी हैं और बाकी तीन दागियों के दाग भाजपा में शामिल होते ही साफ हो चुके हैं।

भाजपा जिस रास्ते पर चल रही है वो भारतीय राजनीति की कड़वी सच्चाई और असलियत है, मगर आश्चर्य इस बात को लेकर है कि आम भारतीय की नजर में भाजपा दूसरे दलों के मुकाबले कम भ्रष्ट और दागी थी। अब बसपा सुप्रीमो मायावती के खासमखास और सर्वाधिक भ्रष्ट नेताओं में शामिल कुशवाहा को लेकर भाजपा का असली चरित्र और चेहरा सबके सामने आ ही गया है। यह भी कि शुचिता, सिद्धांत और आदर्शों की दुहाई देने वाली भाजपा भी राजनीति के हमाम में उतनी ही नंगी है जितनी बाकी पार्टियाँ।

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  1. भाजपा यूं पी में ण०. ४ पर जाएगी नोट करलें. वैसे भी भावनाओं की राजनीती करने वालों का यही हश्र होना है.

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