शांति और प्रेम का संदेश देती है बुद्ध पूर्णिमा

21 मई पर विशेष:-

मृत्युंजय दीक्षित

निराशाजनक वातावरण के युग में पूरे समाज में शांति, भाईचारे प्रेम व एकता का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध को समर्पित है बुद्ध पूर्णिमा का पर्व। यह पर्व कई मायनों में बेहद ऐतिहासिक पलों को संजोये है। बुद्ध पूणिमा के दिन भगवान बुद्ध का जन्म ज्ञानप्राप्ति और महानिर्वाण की प्राप्ति भी हुई थी। वैशाख मास की पूर्णिमा का भारतीय संस्कृति व बौद्ध समाज में बेहद अद्वितीय स्थान है। बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले व समाज के सभी वर्ग के लोगों का यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण त्यौहार है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का स्वर्गारोहण भी मनाया जाता है। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। आज पूरे विश्व में लगभग 80 करोड़ से भी अधिक लोग बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं। हिंइू धर्म के लिए वह विष्णु के नवें अवतार हैं। अतः हिंदुओं के लिए भी यह पवित्र दिन है।यह पर्व भारत ,नेपाल ,सिंगापुर, वियतनाम,थाईलैउ कंबोडिया मलेशिया श्रीलंका म्यांमार इंडोनेशिया पाकिस्तान व अफगाहिनस्तान सहित उन सभी स्थानों पर मनाया जाता है जहां बौद्ध मतावलम्बी भारी तादाद में या फिर अल्पसंख्यक वर्ग के अंतर्गत भी रहतें हैं। तिब्बत में भी बौद्ध मतावलम्बी काफी संख्या में रहते हैं।  लेकिन वहां पर चीन ,द्वारा तिब्बतियों की संस्कृति का घोर हनन किया जा रहा है। भारत के बिहार स्थित बोधगया तीर्थस्थल बेहद पवित्र स्थान है। चूंकि भगवान बुद्ध को वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी।इसलिए इस अवसर पर कुशीनगर में एक माह का  मेला भी लगता है। कुशीनगर स्थित महापरिनिर्वाण मंदिर का स्थापत्य अजंता की गुफा से प्रेरित है। इस मंदिर में भगवान बुद्ध की लेटी हुई 6.1 मीटर लम्बी मूर्ति है।

यह लाल बलुई मिटटी की बनी है। यह मूर्ति भी इसी स्थान  से निकाली गयी थी। मंदिर के पूर्वी हिस्से में एक स्तूप कहा जाता है कि यहां पर भगवानबुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। श्रीलंका व अन्य दक्षिण पूर्व एशियाइ देशों में इस दिन को बेसाक उत्सव के रूप में मनाया जाता है।पूर्णिमा के दिन बौद्ध अनुयायी अपने घरों में दीपक जलाते हैं।  फूलों से घरों को सजाते है। सभी बौद्ध बौद्ध ग्रंथ का पाठ करते हैं। बोधगया सहित  भगवान बुद्ध सें सम्बंधित सभी तीर्थस्थलों व स्तूपों व महत्व के स्थानों को सजाया जाता है। कई जगह मेले भी लगते हैं। बोधगया में काफी लोग एकत्र होते हैं। मंदिरों व घरों में बुद्ध की मूर्ति पर फल फूल चढाये जाते हैं। दीपक जलार विधिवत पूजा करते हैं तथा इस दिन पवित्र बोधिवृक्ष की भी पूजा करते हैं। बौद्ध धर्म में मान्यता है कि इस दिन किये गये कामों के शुभ परिणाम निकलते हैं। ज्ञातव्य है कि भगवान बुद्ध का जन्म शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी, नेपाल में हुआ था। बुद्ध की माता महामाया देवी का उनके जन्म के सातवें दिन ही निधन हो गया था। उनका पालन पोषण दूसरी महारानी महाप्रज्ञावती ने किया था। महाराजा शुद्धोधन ने अपने बालक का नामकरण करने व उसका भविष्य पढ़ने के लिये 8 ब्राहमणों को आमंत्रित किया। सभी ब्राहमणो नें एकमत से विचार व्यक्त किया कि यह बालक या तो एक महान राजा बनेगा या फिर महान संत। बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया। लेकिन महाराज ब्राह्मणो की बाजत सुनकर चिंता में पड़ गये। अब वे अपने पुत्र का विशेष ध्यान  रखने लग गये। सिद्धार्थ ने वेद, उपनिषद व अन्य ग्रंथों का अध्ययन गुरू विश्वामित्र के यहां किया।  कुश्ती, घुड़दौड़, तीर- कमान चलाने रथ हांकने मे उनकी कोई बराबरी नहीं कर सकता था। 16 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह शाक्य राजकुमारी यशोधरा के साथ  हुआ। महाराज शुद्धोधन को यह चिंता सता रही थी कि  कहीं उनका पुत्र संत न बन जाये इसलिए उसके भेाग विलास के सभी संशाधन उपलब्ध कराते थे।  उन्होनें इसलिए तीन और महल भी बनवा दिये थे।

लेकिन ब्राहमणों  की भी बात धीरे- धीरे  सही साबित हो रही थी। उनके जीवन मेंं कई ऐसी घटनाएं घटी कि जिसके कारण उनके मन में विरक्ति का भाव पैदा होने लग गया। अंततः उन्हानें एक दिन अपनी सुंदर पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल तथा सेवक – सेविकाओं को त्यागकर निकल गये। वे राजगृह होते हुये उरूवेला  पहुंचे तथा वहीं पर तपस्या प्रारम्भ कर दी। उन्होनें वहां पर घोर तप किया। वैशाखी पूर्णिमा के दिन वे वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ थे। समीपवर्ती गंाव की स्त्री सुशाता को पुत्र की प्राप्ति हुई। उसने अपने बेटे के लिए वटवृक्ष की मनौती मानी थी। वह मनौती पूरी होने के बाद सोने के थाल में गाय के दूध की खीर भरकर पहुंची । सिद्धार्थ ध्यानस्थ थे। उसे लगा कि मानो वृक्ष देवता ही पूजा करने के लिए शरीर धरकर बैठे हैं। सुशाता ने बढ़ें आदर के साथ सिद्धार्थ को खीर खिलायी और कहाकि जैसी मेरी मनोकामना पूरी हुयी है उसी प्रकार आपकी भी मनोकामनापूरी हो।उसी रात सिद्धार्थ को सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ। तभी से वे बुद्ध कहलाये। जिस पीपल के वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध मिला वह बोधिवृक्ष  कहलाया। जबकि समीपवर्ती स्थान बोधगया।  ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद बेहद  सरल पाली भाषा में धर्म का प्रचार- प्रसार  करते रहे। उरनके धर्म की लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी।काशी के पास मृंगदाव वर्तमान के सारनाथ पहुंचे। वहीं पर उन्होनंे अपना पहला धर्मोपदेश दिया।

भगवान बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश दिया। उन्होनें दुःख ,कारण और निवारण के लिये अष्टांगिक मार्ग सुझाया । अहिंसा पर जोर दिया। यज्ञ व पशुबलि की निंदा की। बुद्ध के अनुसार जीवन की पवित्रता,जीवन में पूर्णता, निर्वाण, तृष्णा और यह मानना कि सभी संस्कार अनित्य हैं कर्म को मानव के नैतिक संस्थान का  आधार मानना उनके प्रमुख धाम हैं। बौद्ध धर्म सभी जातियों एवं पंथों के लिए खुला है। हिंदू ग्रंथों का कहना है कि बुद्ध भगवान विष्णु के नवें अवतार हैं। भगवान बुद्ध ने अपना अंतिम भोजन एक लोहार से भेंटकर प्राप्त किया था। जिसके कारण वे गम्भीर रूप से बीमार पड़ गये थे। बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद को निर्देश दिया कि वह कुंडा को समझाये कि उसने कोई गलती नहीं कि हैं । उन्होनें कहा कि यह भोजन अतुल्य है। प्राचीन इतिहास के अनुसार सम्राट अशोक ने भी बौद्ध धर्म को स्वीकार किया और उसका प्रचार- प्रसार किया। अशोक  ने बौद्ध धर्म का प्रचार- प्रसार करने के लिए जगह – जगह स्तूप बनवाये व दिवारों पर धर्मोपदेश लिखवाये।

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