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दास्ता –ए - ज़ुल्म - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
परमजीत कौर कलेर 13 अप्रैल स्पैशल वो कत्लेआम....वो चीत्कार...दे गया जो दुख...उसे न भूला है कोई...न भूल पाएगा...वो ज़ख्म... आज भी हैं हरे...हो जैसे कल की बात...भर रहा है गवाही ये बाग भी...न भूला है कोई...न भूल पाएगा...वो कत्लेआम दोस्तों वो दर्दनाक वाक्या...दे गया न भुलाने वाला गम...आज…