हँस कर कोयल ने कहा, आया रे मधुमास।
दिशा-दिशा में चढ़ गया, फागुन का उल्लास।।
झूमे सरसों खेत में, बौराये हैं आम।
दहके फूल पलास के, हुई सिंदूरी शाम।।
दिन फागुन के आ गए, सूना गोकुल धाम।
मन राधा का पूछता, कब आयेंगे श्याम।।
टूटी कड़ियाँ फिर जुड़ीं, जुड़े दिलों के तार।
प्रेम रंग में रँग गया, होली का त्यौहार।।
होली के हुड़दंग में, निकले मस्त मलंग।
किसको यारों होश है, पीकर ठर्रा भंग।।
होरी-चैती गुम हुई, गुम फगुआ की तान।
धीरे-धीरे मिट रही, होली की पहचान।।
भूखा बच्चा न जाने, क्या होली, क्या रंग।
फीके रंग गुलाल हैं, जीवन है बदरंग।।
दुख जीवन से दूर हो, खुशियाँ मिले अपार।
नूतन नई उमंग हो, फागुन रंग बहार।।
‘हिमकर’ इस संसार में, सबकी अपनी पीर।
एक रंग में सब रँगे, राजा, रंक, फकीर।।
-हिमकर श्याम
बहुत ही सुन्दर, सामयिक और रंगमय दोहे …!