शारीरिक व्यायाम की प्राचीन कला है योग

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yogप्रमोद भार्गव

यह विडंबना ही है कि जब योग को पूरी दुनिया ने स्वीकार कर लिया है तब चंद धार्मिक समूह इसे धर्म और संप्रदाय विशेष का रंग देने की कलाबाजी का राजनैतिक खेल खेल रहे हैं। जबकि वास्तव में योग शारीरिक और मानसिक व्यायाम की प्राचीन भारतीय कला है। कला का यह खजाना अब तक भारतीय दायरे में सीमित था और अब २१ जून को इसका फलक वैश्विक हो जाएगा। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासचिव बान की मून ने खुले दिल से योग की प्रशंषा की है। सूर्य प्रणाम और ओम के उच्चारण को लेकर कुछ धार्मिक समूह इस श्वास पद्धति का विरोध कर रहे हैं। हालांकि मुस्लिम समुदाय की प्रतिष्ठित संस्था ‘दारुल उलूम‘ ने योग दिवस को अपना समर्थन देकर यह सन्देश दे दिया है कि धार्मिक आधार पर योग का विरोध बेवजह है।

दुनिया के १९३ देशों में आज योग दिवस मनाया जा रहा है। इससे यह सन्देश चला गया है कि योग को सभी धर्म के लोगों ने सहज स्वीकार कर लिया है। श्वास प्रणाली को अनूठे ढंग से संचालित करने और शारीरिक व्यायाम की तकनीक से परिचित होकर आज दुनिया के करोड़ों लोगों ने समझ लिया है कि योग सेहत के लिए कितना उपयोगी है। योग सूरज की प्रातः कालीन रौशनी में हुआ है इसलिए अब लोगों ने समझ लिया होगा कि दुनिया को समान रूप से रौशनी देने वाला सूर्य कोई ऐसा कृत्रिम या वैज्ञानिक गृह नहीं है,जिसे भारत के हिंदुओं ने अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया है। सूर्य ब्रह्मांड का एक ऐसा अविभाज्य अंग है,जो किसी मानवीय षक्ति से नियंत्रित नहीं है। इसीलिए सृष्टि के अनवरत विकास क्रम में सूर्य की समान रूप से निर्विवाद भागीदारी बनी हुई है। सृष्टि को सूर्य की यही देन योग और भारतीय दर्शन में प्रणम्य है,वंदनीय है। गोया,सूर्य नमस्कार का विरोध कठमुल्लई नादानी के अलावा कुछ नहीं था।

भारतीय योग दर्शन करीब ढाई हजार साल पुराना है माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति सांख्य परंपरा के द्वैत दर्शन से हुई है।महर्षि पतंजलि ने योग की क्रियाओं को संस्कृत के श्लोकों में लिपि बद्ध किया। बाद में योग स्वास्थ्य लाभ के साथ-साथ आस्तिक ,नास्तिक और हठ योग की तांत्रिक परंपराओं से भी जुड़ गया। अद्वैत दर्शन ने इसे आध्यात्मिक साधना के साथ ईश्वर प्राप्ति के मार्ग से भी जोड़ दिया। दर्शन के इन्हीं आधारों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में दिए अपने पहले भाषण में योग दिवस मनाए जाने के प्रस्ताव की पुरजोर पैरवी करते हुए कहा था,‘योग जीवनशै को बदलकर और मस्तिष्क की चेतना को जगाकर जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी दुनिया की मदद कर सकता है।‘ याद रहे जलवायु परिवर्तन से जुड़ी एक रिपोर्ट में कहा भी गया है कि आजकल लोगों में जो गुस्सा देखा जा रहा है और जिस तेजी से दुनिया में आत्महत्याएं बढ़ रही हैं,उनका एक कारण जलवायु में हो रहा बदलाव भी है। शायद इसीलिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों में से १७७ देशों ने योग दिवस को तुरंत मान्यता दे दी थी।

योग शब्द ने अपने भावार्थ में आज अपनी सार्थकता पूरी दुनिया में सिद्ध कर दी है। योग का अर्थ है जोड़ना। वह चाहे किसी भी धर्म जाति अथवा संप्रदाय के लोग हों,योग का प्रयोग सभी को शारीरिक रूप से स्वास्थ्य और मानसिक रूप से सकारात्मक सोच विकसित करता है। गोया, आज लोग समझ गए है कि योग पतंजलि योग दर्शन के आठ पायदानों,यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार,ध्यान,धारणा और समाधि में से एक योग आसन भर है जो मन और शरीर के लिए लाभदायी है।वैसे भी योग भारत के किसी ऐसे धर्म ग्रन्थ का हिस्सा नहीं है, जो बाइबिल और कुरान की तरह पवित्र आस्था का प्रतीक हो ? योग की आसनें प्रसिद्ध प्राचीन ग्रंथ पतंजली योग सूत्र के प्रयोग हैं। जो हिंदु अथवा अन्य भारतीय धर्मों में धर्म ग्रन्थों की तरह पूज्य नहीं है।

पतंजली योग सूत्र का सार इस एक वाक्य ‘‘योगष्तिवृत्ति निरोधः‘‘ में निहित है। इसका भावार्थ है,चित्त अथवा मन की चंचलता को स्थिर करना अथवा रखना। जिससे मन भटके नहीं और इन्द्र्रियों के साथ वासनाएं भी नियंत्रित हों। लेकिन योग केवल वासनाओं को नियंत्रित करने तक ही सीमित नहीं है। योग के नियमित प्रयोग से मधुमेह, रक्तचाप तो नियंत्रित होते ही हैं,कमोवेष मोटापा भी दूर होता है। यदि बाबा रामदेव की बात पर विश्वास करें तो कैंसर और एड्स जैसे असाध्य रोगों को भी योग नियंत्रित करता है। इसीलिए योग को जीवन की चेतना का मंत्र कहा जाता है। बाबा रामदेव के प्रयोगों से प्रभावित होकर पश्चिमी चिकित्सा विशेषज्ञों ने योग प्रणाली को आधुनिक चिकित्सा प्रणाली से तुलना करके इसकी वैज्ञानिकता को प्रमाणित भी किया है। इसीलिए यूरोपीय देशों में इसकी लोकप्रियता एवं स्वीर्कायता बढ़ी है। नतीजतन बान की मून को कहना पड़ा है कि ‘मैंने भारत में योग किया और मुझे बड़ी आत्म संतुष्टि मिली है।

हालांकि योग शिक्षा को लेकर एक समय अमेरिका और ब्रिटेन के धर्मगुरुओं में भी भय व्याप्त हो चुका था,क्योंकि वे योग को धार्मिक शिक्षा के रुप में देख रहे थे। उन्हें आशंका थी कि यदि योग की शिक्षा दी जाती गई तो उनके बच्चे भारतीय धर्म की ओर आकर्षित हो सकते हैं। इसी शंका के चलते केलिर्फोर्निया नगर में तो विद्यालयों में योग की शिक्षा से जुड़े पाठों को हटाने की मांग भी की गई थी। उस समय अकेले इस शहर की पाठशालाओं में पांच हजार से भी ज्यादा बच्चे योग सीखकर स्वास्थ्य व आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर रहे थे। इसी तरह चर्च ऑफ इंग्लैंण्ड ने टॉन्टन में योग के पाठ पर प्रतिबंध लगा दिया था। दलील दी गई थी कि योग पाठ ईसाई धर्म की मूल मान्यताओं के विरूद्ध है। टॉन्टन की एक चर्च के पादरी स्मिथ ने तो यहां तक कह दिया था कि योग ईसाई धर्म के आस्थावान लोगों को भटकाने का रास्ता है। यह भारतीय मूल के हिंदू व बौद्ध धर्म व दर्शन से कतई अलग नहीं है। हालांकि तब इसी चर्च की योग शिक्षिका लुई बुडकॉक ने योग कक्षाओं पर पाबंदी का विरोध करते हुए पादरियों को दाकियानूसी तक कह दिया था।

दरअसल भारत अथवा पूर्वी देशों से जो भी ज्ञान यूरोपीय देशों में पहुंचता है, तो इन देशों की ईसाइयत पर सकंट के बादल मंडराने लगते हैं। इसी तरह भगवान रजनीश ने जब अमेरिका में गीता और उपनिषदों को बाइबिल से तथा राम,कृष्ण, बुद्ध और महावीर को जीसस से श्रेष्ठ घोषित करना शुरू किया था। और धर्म तथा अधर्म की अपनी विशिष्ट शैली में व्याख्या की थी तो रजनीश के आश्रमों में अमेरिकी लेखक ,कवि, चित्रकार, मूर्तिकार, वैज्ञानिक और प्राध्यापकों के साथ आमजनों की भीड़ उमड़ने लगी थी। उनमें यह जिज्ञासा भी पैदा हुई कि पूरब के जिन लोगों को हम हजारों ईसाई मिशननरियों के जरिए शिक्षित करने में लगे हैं,उनके ज्ञान का आकाश तो कहीं बहुत ऊंचा है। यही नहीं जब रजनीश ने व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन,जो ईसाई धर्म को ही एक मात्र धर्म मानते थे और वेटीकन सिटी में पोप को धर्म पर शास्त्रार्थ करने की चुनौती दी तो ईसाइयत पर संकट छा गया था। नतीजतनदेखते ही देखते रजनीश को उनके तामझाम समेत अमेरिका से बेदखल कर दिया गया था।

योग के रहस्यों को स्वास्थ लाभ से जोड़कर बाबा रामदेव ने जब से सार्वजनिक किया है,तभी से योग की महत्ता को पूरे विश्व ने स्वीकारा, न कि किसी धार्मिक प्रचार प्रसार के चलते ? योग,ध्यान,और प्राणायाम के द्वारा मस्तिष्क को एकाग्र कर शरीर को चुस्त – दुरूस्त व निरोग बनाए रखने की धर्मनिरपेक्ष वैज्ञानिक आसनें हैं, न कि हिंदू धर्म के विस्तार के उपाय ? इतना जरूर है कि भारत के सांस्कृतिक स्वरूप से जुड़ी जो भी मान्यताएं या परंपराए हैं,वे हिंदू और बौद्ध जीवन दर्शन के निकट हैं। इन्हें न तो नकारा जा सकता है और न ही इन्हें कृत्रिम एवं तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के बहाने परिभाशित किया जा सकता है। योग के रूप में यह सांस्कृतिक विरासत दीर्घकालिक अनुभवों और विश्वासों की ऐसी मनुष्य जीवन के लिए लाभदायी देन है,जो अनेक कालखंडों में विदेशी संक्रमणों से टकराकर निखरती रही है। योग दिवस मनाते हुए एक बार फिर से योग परिमार्जित हुआ है।

 

प्रमोद भार्गव

1 COMMENT

  1. आदरणीय़ —एक दृष्टिकोण उजागर करूंगा।
    (१) इस अवसर को, सारे संसार में भारत के प्रति सद्भावना जगाने के अवसर के, रूप में देखा जाए।
    (२) हमारी संस्कृति, संस्कृत, योगासन, ध्यानयोग, समन्वयी विचारधारा, इत्यादि के प्रशिक्षित और अनासक्त दूत भेजने का सर्वोत्तम अवसर यही है।
    जो काम ऐसे सांस्कृतिक दूत कर सकते हैं, भारत के दूतावास भी नहीं कर सकते।
    (३) भारत का सर्वोच्च योगदान यही है।
    (४) अभियान्त्रिकी का प्रोफ़ेसर होते हुए, मुझे जिन व्याख्यानों के लिए बुलाया जाता है; वे प्रायः (अधिकाधिक) विषय, सांस्कृतिक होते हैं।
    (५) परमात्मा की कृपासे सच्चा भारतीय शासन दिल्लीमें आ चुका है।
    (६) जलनेवाले तो होंगे ही। विरोध भी होगा ही। बिना विरोध इस काम का सकारात्मक पक्ष भी उजागर कैसे होगा?
    आज सांस्कृतिक प्रचारकों की तीव्र आवश्यकता है।
    संसार को (क)योग (ख)ध्यान (ग)दर्शन (घ) संस्कृत (च) भारतीय संस्कृति ….. इत्यादि में लाभ दिखाई दे रहा है। (छ) संस्कृत के व्याकरण पर कंप्युटर चलता है।
    (७) हमें संसार से निर्लिप्त हो, कट कर बैठना नहीं चाहिए। यह अवसर “न भूतो न भविष्यति” सिद्ध होगा।
    आलेख की क्षमता वाली इस टिप्पणी की ओर भारत हितैषियों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ।

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