भारतीय गणराज्‍य की दुर्दशा

भारतीयों की पुण्‍यभूमि कश्‍मीर

-फ्रांसिस गोतियर

यदि कोई हिन्‍दू आज अपने इतिहास के सबसे प्राचीन तीर्थ स्‍थलों में से एक पवित्र तीर्थस्‍थल अमरनाथ की यात्रा करना चाहता है तो उसे यह यात्रा जबर्दस्‍त पुलिस बंदोबस्‍त और सेना के संरक्षण में करनी पड़ती है और ऊपर से जान जाने का खतरा हमेशा बना रहता है। जब वह इस यात्रा पर जाता है तो लगता है कि वह किसी विदेशी राष्‍ट्र में ही नहीं बल्कि एक दुश्‍मन देश की यात्रा पर जा रहा है।

आज कश्‍मीर घाटी में एक सुनियोजित साजिश के तहत पुलिस और बीएसएफ के जवानों पर पत्‍थरों से हमले कराकर उन्‍हें कार्रवाई करने के लिए उत्तेजित करने की कार्रवाई हो रही है। पिछले कुछ महीनों के दौरान हुई इस पत्‍थरबाजी में बीएसएफ के सैकड़ों सैनिक बुरी तरह घायल हो चुके हैं। जब भीड़ नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तो उन्‍हें थोड़ी-बहुत गोलीबारी भी करनी पड़ती है। परिणामस्‍वरूप कुछ लोग घायल हो जाते हैं। ऐसा होते ही पूरी घाटी में फिल्‍मी स्‍टाइल में हड़ताल और बंद आयोजित होने शुरू हो जाते हैं और मीडिया तथा ‘मानवाधिकारवादी’ भी चिल्‍लाने लगते हैं।

सबसे अधिक चिंताजनक बात यह है कि इस समय कश्‍मीर में भारत सरकार का कोई आदेश चलता दिखायी नहीं देता। टीवी पर दिखाये जाने वाले हर चित्र में दिखाया जाता है कि भीड़ खुलेआम पाकिस्‍तानी झंडे लहरा रही है और कहीं इसका कोई विरोध नहीं होता। बालीवुड में भी खुलेआम ओसामा बिन लादेन का गुणगान होता है लेकिन उसका भी कोई विरोध नहीं करता।

अधिकतर लोगों को पता ही नहीं है कि कश्‍मीर भारत का ऐसा हिस्‍सा है जिसे सबसे अधिक अनुदान मिलता है। जब भी प्रधानमंत्री वहां जाते हैं, कुछ अनुदान की घोषणा कर ही आते है। सन् 1989 से लेकर आज तक सरकारी कर्मचारी पड़ताल आदि के कारण पूरे साल काम करें या न करें, लेकिन उनका पूरा वेतन उन्‍हें समय पर मिल जाता है। सचाई यह है कि आज अमरीका की मध्‍यस्‍थता से एक बहुत खतरनाक समझौता किया जा रहा है, जिसके तहत कश्‍मीर को वास्‍तविक आजादी प्रदान की जानेवाली है। कांग्रेस में बहुत अच्‍छे और समझदार लोग हैं, उनमें से कुछ तो जरूर मेरी इस बात से सहमत होंगे कि यह भारत के साथ बहुत बड़ी त्रासदी है। दुर्भाग्‍य से दिल्‍ली के पत्रकार जगत में ‘आऊटलुक’ के संपादक विनोद मेहता जैसे लोगों की संख्‍या बढ़ गयी है जो खुलेआम कहते फिरते हैं कि ‘’भारत बहुत बड़ा देश है, क्‍या फर्क पड़ता है कि कश्‍मीर उसके साथ रहता है या नहीं।‘’ ऐसे में सवाल उठता है कि फिर भारत के लिए कश्‍मीर जरूरी है क्‍या।

इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि कश्‍मीर भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्‍वपूर्ण है। यदि कश्‍मीर भारत के हाथ से निकल जाता है तो भारत के उत्तर में तीन दुश्‍मन खड़े हो जाएंगे जो रणनीतिक दृष्टि से कभी भी समस्‍या खड़ी कर सकते हैं। यानी तिब्‍बत जो कभी भारत और चीन के बीच एक पीस बफर के रूप में होता था, नेपाल जो आजकल खुलेआम दुश्‍मनों के हाथों का खिलौना बना हुआ है और तीसरा कश्‍मीर जो मध्‍य एशिया और एशिया के दरवाजे के रूप में जाना जाता है, तीनों मिलकर भारत के लिए संकट खड़ा करेंगे।

दूसरा महत्‍वपूर्ण सवाल यह है कि यदि भारत कश्‍मीर को छोड़ देता है तो फिर मणिपुर, पंजाब और तमिलनाडु को अलग होने का हक क्‍यों नहीं होगा। दुनिया के अनेक देश अलगाववाद की समस्‍या से जूझ रहे हैं, वह चाहे फ्रांस में कोरसिया हो, स्‍पेन में बसक्‍यूज या फिर ब्रिटेन में फाकलैंड हो। फिर भारत ऐसे ही कश्‍मीर को क्‍यों जाने दे, जो पिछले पांच हजार से अधिक सालों से उसका सांस्‍कृतिक और शारीरिक अंग रहा है।

कश्‍मीर हजारों वर्षों से शैव मत का उद्गम स्‍थल रहा है और उस पुण्‍यभू‍मि पर हजारों योगियों, गुरूओं, संन्‍यासियों ने लम्‍बे समय तक तपस्‍या की। सिर्फ इसीलिए वह भारत के लिए एक पवित्र स्‍थल है। इस समय कश्‍मीर में जो हालात है, उनके लिए सबसे अधिक मीडिया दोषी है और वह भी खासतौर से पश्चिमी देशों का मीडिया, जिसने कश्‍मीर को हमेशा एक विवादित क्षेत्र के रूप में ही प्रस्‍तुत किया। हम सभी पत्रकार जानते हैं कि 1980 के दशक से लेकर पाकिस्‍तान हमेशा कश्‍मीरी अलगाववादियों को सभी तरह का प्रशिक्षण, प्रोत्‍साहन और धन उपलब्‍ध कराता रहा है।

लेकिन तटस्‍थ रिपोर्टिंग के लिए जाने जाने वाले मार्क टुली भी कहने से नहीं चूकते, ‘’भारत के कब्‍जे वाले कश्‍मीर में चुनाव हो रहे हैं, या फिर कश्‍मीरी अलगाववादियों (न कि आतंकवादियों) ने हिन्‍दुओं को मार दिया।‘’ विदेशों के पुराने और नये सभी पत्रकारों ने बीबीसी की इसी लाइन को पकड़कर कश्‍मीर पर अपने समाचार लिखे। यही नहीं, अमरीकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा की नीतियां भी मीडिया से ही प्रभावित होती है। बात ये नहीं है कि घाटी में कुछ सौ हिन्‍दुओं (1980 में पांच लाख थे) की जान को खतरा है या फिर अमरनाथ यात्री अपने ही देश में तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं, चिंताजनक बात ये है कि हिंदुओं के धार्मिक गुरूओं पर भी निशाना दागा जा रहा है। उन्‍हें बदनाम किया जाता है या फिर उनका मजाक उड़ाया जाता है। हाल ही में मीडिया ने श्री श्री रविशंकर पर निशाना दागा।

इस समय गैर राजनीतिक, निष्‍पक्ष और मानवाधिकारवादी संगठन फाउंडेशन ‘अगेंस्‍ट कंटिन्‍यूयिंग टेरेरिज्‍म’ एक ऐसा मंच बन सकता है जिसके अंग बनकर देश के करीब एक दर्जन धर्मगुरू, जिनके देशभर में करोड़ो शिष्‍य हैं, वे अपने शिष्‍यों को एक आदेश जारी करें जो देश के सभी 800 मिलियन हिन्‍दुओं और विदेशों में रह रहे सभी हिन्‍दुओं के लिए बाध्‍यकारी हो। इन धर्मगुरूओं में सत्‍य साई बाबा, श्रीश्री रविशंकर गुरूजी, माता अमृतानंदमयी, कांची शंकराचार्य, ज्ञानेश्‍वरी गुरूमां, बाबा रामदेव, सदगुरू जग्‍गी वसुदेव आदि हो सकते हैं। कश्‍मीर की सुरक्षा और अमरनाथ तीर्थयात्रा इस कार्यसूची का सबसे पहला विषय हो सकता है।

(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार हैं)

5 COMMENTS

  1. sahi kahaa है आपने, मगर सुनेगा कौन?
    कान बंद हैं सुनने को, कहने को है मौन.
    कहने को है मौन, गोतियरा कई आ गए.
    कुछ ना बिगड़ा नेताओं का सबको खा गए.
    कहा साधक कवी, नेताओं का रिकार्ड रहा है.
    यहाँ सुनेगा कौन आपने सही कहा है.

  2. फ्रांसिस गोतियर की एक और पुस्तक है – “Rewriting Indian हिस्टरी” published by India Research Press. इस पुस्तक को India – An Archaelogical History, 2nd edition by Dilip K. Chakrabarti, published by Oxford University Press पढ़ना एक नया आयाम प्रस्तुत करता है . एक तरफ एक पुस्तक संभावनाओं एवं बिन्दुओं के आधार पर बात करती तो दूसरी और आप उत्खनन के आधार पर “आर्य आक्रमण” को न स्वीकार करते हुए भारत को एक नए एकीकृत रुप में उभरता पाते हैं .

  3. सचमुच यह फतवा ही होगा जिसके लिए धर्मगुरुओं को कोई अधिकार नहीं है.लेखक ने फतवा के लिए उकसाने के लिए भी अच्छा आधार चुना है अमरनाथ की यात्रा.कश्मीर की समस्याएं हमारी अपनी उपजाई हुईं हैं और इसका समाधान भी हमें ही ढूंढना है.
    अबसे पहले मैं आता हूँ पत्थर मारने और उससे पुलिस के घायल होने की बात.हो सकता है की बहुत पुलिस वाले घायल हुयें हों पर मुझे पत्थरों की चोट से किसी पुलिसिये की मरने की खबर तो नहीं मिली,जबकि पुलिस की जवाबी कार्रवाई में सौ से ऊपर लोगों की जान जा चुकी है.पहले तो पुलिस को इस पत्थरबाजी का जवाब देने के लिए कोई बेहतर रास्ता अख्तियार करना होगा.जिससे लोग घायल भले ही हों पर मरे नहीं.
    अब उसके पहले की बातों पर विचार करें.क्या कारन है की जो कश्मीरी पहले भारत का साथ होना चाहता था वह भारत विरोधी हो गया?क्या कारन है की कश्मीर में अरबों रुपये खर्च करने के बाद भी कश्मीरियों की हालत देश के दूसरे हिस्सें से खराब ही है?यही सवाल बहुत हद तक पुर्बोत्तर राज्यों के लिए भी सही है?इन प्रश्नों के उत्तर में ही कश्मीर के समस्या का समाधान निहित है.

  4. माँ की तस्वीर हो ,माथे कश्मीर हो ,
    धोये चरणों को सागर का पानी हो .
    दायें कच्छ का रन .बाएं अरुणांचल ,
    ह्रदय गोदावरी कृष्णा कावेरी हो .

  5. भारतीय राज्य की दुर्दशा – भारतीयों की पुण्‍यभूमि कश्‍मीर–by –फ्रांसिस गोतियर

    लेखक संभवता यह सुझा रहें कि:

    सभी हिन्‍दु धर्मगुरू मिल कर, एक मत से, अपने शिष्‍यों को कश्‍मीर पर आदेश जारी करें.

    ऐसा हो तो आलोचक यही कहेंगे कि हिन्दुओ का फ़तवा आ गया है.

    आदेश जारी हो.

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