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कविता ; भाई से प्रतिघात करो - श्यामल सुमन - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
श्यामल सुमन मजबूरी का नाम न लो मजबूरों से काम न लो वक्त का पहिया घूम रहा है व्यर्थ कोई इल्जाम न लो धर्म, जगत - श्रृंगार है पर कुछ का व्यापार है धर्म सामने पर पीछे में मचा हुआ व्यभिचार है क्या जीना आसान है नीति नियम…