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कविता - हम कैसे बता दें - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
मोतीलाल हम यह भी नहीं बता सकते कितने कंकड़-पत्थर हर अफरा-तफरी में महाद्वीप में तब्दील हो जाते हैं । कब से मंच के पीछे खड़े एक अदृश्य हाथ समय के धागे को पकड़कर हर उस रेत को पाटता रहा है नदी के दोनों छोरों में लगता है हमने इस…