कविता : जानवर – विजय कुमार

जानवर

 

अक्सर शहर के जंगलों में ;

मुझे जानवर नज़र आतें है !

 

इंसान की शक्ल में ,

घूमते हुए ;

 

शिकार को ढूंढते हुए ;

और झपटते हुए..

फिर नोचते हुए..

और खाते हुए !

 

और फिर

एक और शिकार के तलाश में ,

भटकते हुए..!

 

और क्या कहूँ ,

जो जंगल के जानवर है ;

वो परेशान है !

हैरान है !!

इंसान की भूख को देखकर !!!

 

 

मुझसे कह रहे थे..

तुम इंसानों से तो

हम जानवर अच्छे !!!

 

 

उन जानवरों के सामने ;

मैं निशब्द था ,

क्योंकि ;

 

मैं भी एक इंसान था !!!

 

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