अच्छे लोगॊं की अच्छाई
चिड़ियों के गीतों को सुनकर,
पत्ते लगे नांचने राई|
कांव-कांव कौवे की सुनकर,
पेड़ों ने कब्बाली गाई|
राग बेसुरे सुनकर कोयल,
गुस्से के मारे चिल्लाई|
फिर भी उसके मधुर कंठ से,
कुहू कुहू स्वर लहरी आ ई|
अच्छे लोगों में रहती है,
बात बात में ही अच्छाई|
कभी नहीं करते दुश्मन की,
अपने मुंह से कहीं बुराई|
पेड़ मुफ्त में छाया देते,
फूल फलों की फसल उगाई|
बिना दाम के सूरज ने भी,
धूप धरा पर नित फैलाई|
चांदी जैसी धवल चांदनी,
चंदा ने नभ से टपकाई|
रुपया पैसा कहां लगा कुछ,
बैठे खड़े मुफ्त में पाई|