दमन की हवा से ही इक दिन, दहकेंगे श्रम के शोले!
हक़ के अंगार से, दफनाये जायेंगे शोषण के गोले!
अब भी सुन लो शोषकों, बर्के जिहिंद क्या बोले!
इक कौंध में लपक लेने को, अंजाम खड़ा मुंह खोले!
वे अपने दम पर लड़ते आये हैं, ताक़तवर से हर युग में!
मगर ज़माना उनकी हिम्मत को, सदा कम ही तोले!
जो हमारे ही लिए जिए और मरे, उन के हक़ की खातिर!
साथ चलें सब मिल कर, जब श्रमवीर हल्ला बोले!
{बर्के जिहिंद= तड़पने वाली बिजली}