लगे मुझे दुख दर्द बताने|
बहुत देर तक रुके रहे वे
अपने मन की व्यथा सुनाने|
बोले ‘सदियों सदियों से मैं
सदा बदलता रंग रहा हूं|
दीवालों आलों खिड़की में,
इंसानों के संग रहा हूं|
रंग बदलने के इस गुण में ,
जगवाले मुझसे पीछे थे|
रंग बदलने के गुण सारे,
दुनियां ने मुझसे सीखे थे|
किंतु आजकल नेता अफसर,
इस गुण में मुझसे हैं आगे|
हम तो हाय फिसड्डी हो गये,
बन गये मूरख और अभागे|
एक रंग जब तक मैं बदलूं,
अफसर पाँच बदल देते हैं|
पकड़ूं एक पतंगा जब तक ,
नेता देश निगल लेते हैं|
बाबू शिक्षक पटवारी तक,
रंग बदलने में माहिर हैं|
भीतर से सब काले काले,
तन पर रंग बहुत सुंदर हैं|
अभी अभी ही मंत्री जी ने,
पांच मिनिट में दस रंग बदले|
पकड़ॆ गये घुटालों में तो,
घर ने रुपये करोंड़ों उगले|
रंग बदलने के ही कारण,
इंसानों का पतन हो गया|
रंग बदलने के गुण से ही,
भ्रष्टाचारी वतन हो गया|
किसी तरह से हे प्रभु मुझको,
मेरे गुण वापस दिलवा दो|
एक बार स्वयं रंग बदलकर,
नेताओं को सबक सिखा दो|
बहुत अच्छी व्यंग कवता के लियें आभार और बधाई।