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ममता त्रिपाठी की कविता : सृष्टि - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
धन्य है तिमिर का अस्तित्व दीपशिखा अमर कर गया । धन्य है करुणाकलित मन हर हृदय में घर कर गया । ज्योति ज्तोतिर्मय तभी तक जब तक तिमिर तिरोहित नहीं । जगति का लावण्य तब तक जब तक नियन्ता मोहित नहीं । पंच कंचुक विस्तीर्ण जब तक तब तक…