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विजय निकोर की कविता : समय - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
समय आजकल बिजली की कौंधती चमक-सा झट पास से सरक जाता है - मेरी ज़िन्दगी को छूए बिना, और कभी-कभी, उदास गई बारिश के पानी-सा बूंद-बूंद टपकता है सारी रात, और मैं निस्तब्ध असहाय मूक साक्षी हूँ मानो तुम्हारे ख़्यालों के शिकन्जे में छटपटाते समय की धड़कन का। कम हो…