रंग बदल जाते है धुप में, सुना था
फीके पड़ जाते है, सुना था
पर उड़ जायेंगे ये पता न था!
हाँ ये रंग उड़ गए है शायद…
जिंदगी के रंग इंसानियत के संग,
उड़ गए है शायद…
अब रंगीन कहे जाने वाली जिंदगी, हमे बेरंग सी लगती है,
शक्कर भी हमें अब फीकी सी लगती है…
कहा है वो रंग???
जो रहते थे रिश्तो के संग
बाप की डाट और माँ के दुलार के रंग,
खेलने के घाव और बचपन की नाव के रंग,
पडोसी की चाय के, बुजुर्गों के साये के रंग,
हाथों में वो हाथ, दोस्तों के साथ के वो रंग,
उड़ गए है शायद…
तितलियों को पकड़ते नन्हें हाथों के रंग,
बच्चो के खेल और बडो के मेल के वो रंग
चटपटी सी चाट, घर की पुरानी खाट के रंग,
मानिंद चलती हवाओ में खुशबू के रंग,
उड़ गए है शायद…
कोशिश करो कि ये रंग उड़ने न पाए
क्योकि ये रंग उड़ गए तों…
फिर न रहेगी रंगीन मुस्कान, रंगीन यौवन, रंगीन जिंदगी॥
छोटी-छोटी खुशियों की वो ताल,
छिन न जाये, उड़ न जाए, उड़ न जाये…
रंग भरो जिंदगी में जिंदगी के,
संग उडो जिंदगी के रंगों में॥
हसों और मुस्कुराओ और गाओ
रंगी शमां, रंगी जहां बनाओ…
-हिमांशु डबराल