कविता – लड़ाई

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मोतीलाल

अधिक समय तक

हम जिँदा रहने की जिजीविषा मेँ

नहीँ देख पाते

मुट्ठियोँ मेँ उगे पसीने को

और यहीँ से फुटना शुरू होतेँ हैँ

तमाम टकराहटोँ के काँटेँ

 

यहीँ से शुरू होता है

धरती और आकाश का अंतर

चाहे आकाश कितना भी फैला हो

और हो उसमेँ ताकत

धरती को ढंक लेने की

फिरभी हम खड़े हैँ अपनी जमीन पर

और भेदते रहते हैँ आकाश को

यही बड़ी विसंगति है

 

आजकल

जिसने हमेँ पैदा किया है

इस धरती पर

यह निश्चित है कि

हम इस गलत समय मेँ

किसी गलत उध्देश्य क लिए

गलती से पैदा किये गये हैँ

और आकाश को मुट्ठी मेँ बंद करना

आज की सबसे बड़ी गलती होगी

 

जो आग

अभी सुलगी न हो

और बंद हो

हमारे अंतर्मन मेँ कहीँ

भाई कसम है

गर्म खून की कीमत पर

जिँदा गोश्त की खुश्बू से

आक्रोश के आईने के पार

हमेँ जिँदा रहना है

तब तय है

शायद हम टाल पाये

दीवार से चिपकी मौत को

कुछ पल के लिए

कि अभी आग सुलगी नहीँ है ।

 

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मोतीलाल
जन्म - 08.12.1962 शिक्षा - बीए. राँची विश्वविद्यालय । संप्रति - भारतीय रेल सेवा में कार्यरत । प्रकाशन - देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं लगभग 200 कविताएँ प्रकाशित यथा - गगनांचल, भाषा, साक्ष्य, मधुमति, अक्षरपर्व, तेवर, संदर्श, संवेद, अभिनव कदम, अलाव, आशय, पाठ, प्रसंग, बया, देशज, अक्षरा, साक्षात्कार, प्रेरणा, लोकमत, राजस्थान पत्रिका, हिन्दुस्तान, प्रभातखबर, नवज्योति, जनसत्ता, भास्कर आदि । मराठी में कुछ कविताएँ अनुदित । इप्टा से जुड़ाव । संपर्क - विद्युत लोको शेड, बंडामुंडा राउरकेला - 770032 ओडिशा

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