अधिक समय तक
हम जिँदा रहने की जिजीविषा मेँ
नहीँ देख पाते
मुट्ठियोँ मेँ उगे पसीने को
और यहीँ से फुटना शुरू होतेँ हैँ
तमाम टकराहटोँ के काँटेँ
यहीँ से शुरू होता है
धरती और आकाश का अंतर
चाहे आकाश कितना भी फैला हो
और हो उसमेँ ताकत
धरती को ढंक लेने की
फिरभी हम खड़े हैँ अपनी जमीन पर
और भेदते रहते हैँ आकाश को
यही बड़ी विसंगति है
आजकल
जिसने हमेँ पैदा किया है
इस धरती पर
यह निश्चित है कि
हम इस गलत समय मेँ
किसी गलत उध्देश्य क लिए
गलती से पैदा किये गये हैँ
और आकाश को मुट्ठी मेँ बंद करना
आज की सबसे बड़ी गलती होगी
जो आग
अभी सुलगी न हो
और बंद हो
हमारे अंतर्मन मेँ कहीँ
भाई कसम है
गर्म खून की कीमत पर
जिँदा गोश्त की खुश्बू से
आक्रोश के आईने के पार
हमेँ जिँदा रहना है
तब तय है
शायद हम टाल पाये
दीवार से चिपकी मौत को
कुछ पल के लिए
कि अभी आग सुलगी नहीँ है ।