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कविता:बुरा दिन-मोतीलाल - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
रोशनी का बुरा दिन देखने योग्य बची कहाँ है कि खिझा हुआ अँधकार अपने लंबे नाखूनोँ वाले पंजे फैलाकर चपेट ले सारी रोशनियोँ को और कोई त्रासद संगीत नेपथ्य मेँ बज उठे तब क्या देखने योग्य चीजेँ बाजार मेँ उतारे जाएगेँ और क्या सुलाए जा सकेगेँ चीखते हुए बच्चोँ को…