कविता – चिँता या चेतना-मोतीलाल

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मोतीलाल

अपना कोई भी कदम

नए रुपोँ के सामने

कर्म और विचार के अंतराल मेँ

अनुभव से उपजी हुई

कोई मौलिक विवेचना नहीँ बन पाता है और विचार करने की फुर्सत मेँ

ज्यादा बुनियादी ईलाज

उपभोक्ताओँ की सक्रियता के बीच

पुरानी चिँता बनकर रह जाती है

 

शून्य जैसी हालात मेँ

स्वीकृति के विस्तार को

हवा देने की सहमति

किसी भी संदर्भ के लिए

जीने की ताकत नहीँ दे सकती है

और निरंतर नया रुप लेती इच्छाएँ कर्मक्षेत्र को खोलने को तैयार आँखेँ सोचने की फुर्सत कहाँ देती है

 

भाग्यभेद की दिशाएँ

तय कर देती हैँ सबकी सीमाएँ

 

गलियारोँ से दूर

जो धूप के टूकड़े

सार्वजनिक होने से बचते रहेँ हैँ

वे हमारे अंतस के किसी अंश मेँ

निजी चिँता का विषय बनकर

सिकंदर सा सामने खड़े हो जाते हैँ

तब परिवर्तनोँ की जरुरतेँ

कौँध से पैदा ना होकर

सुबह से देर रात तक

निर्णयोँ के जाल मे ही कहीँ

एक अलग अर्थ ग्रहण कर लेते है ।

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मोतीलाल
जन्म - 08.12.1962 शिक्षा - बीए. राँची विश्वविद्यालय । संप्रति - भारतीय रेल सेवा में कार्यरत । प्रकाशन - देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं लगभग 200 कविताएँ प्रकाशित यथा - गगनांचल, भाषा, साक्ष्य, मधुमति, अक्षरपर्व, तेवर, संदर्श, संवेद, अभिनव कदम, अलाव, आशय, पाठ, प्रसंग, बया, देशज, अक्षरा, साक्षात्कार, प्रेरणा, लोकमत, राजस्थान पत्रिका, हिन्दुस्तान, प्रभातखबर, नवज्योति, जनसत्ता, भास्कर आदि । मराठी में कुछ कविताएँ अनुदित । इप्टा से जुड़ाव । संपर्क - विद्युत लोको शेड, बंडामुंडा राउरकेला - 770032 ओडिशा

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