कविता : धिक्कार

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विभूति राय प्रकरण की नजर एक छोटी सी कविता

-लीना

धिक्कार

थू- थू की हमने

थू- थू की तुमने

जिसे मिला मौका

गाली दी उसने

ऐसे संस्कारहीनों को

हटाओ

नजर से गिराओ।

पर धिक्कारते धिक्कारते

भूल गए हम

अपनी भी धिक्कार में

वैसी ही भाषा है

वैसे ही संस्कार

जिसके लिए तब से

उगल रहे थे अंगार।।

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लीना
पटना, बिहार में जन्‍म। राजनीतिशास्‍त्र से स्‍नातकोत्तर एवं पत्रकारिता से पीजी डिप्‍लोमा। 2000-02 तक दैनिक हिन्‍दुस्‍तान, पटना में कार्य करते हुए रिपोर्टिंग, संपादन व पेज बनाने का अनुभव, 1997 से हिन्‍दुस्‍तान, राष्‍ट्रीय सहारा, पंजाब केसरी, आउटलुक हिंदी इत्‍यादि राष्‍ट्रीय व क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रिपोर्ट, खबरें व फीचर प्रकाशित। आकाशवाणी: पटना व कोहिमा से वार्ता, कविता प्र‍सारित। संप्रति: संपादक- ई-पत्रिका ’मीडियामोरचा’ और बढ़ते कदम। संप्रति: संपादक- ई-पत्रिका 'मीडियामोरचा' और ग्रामीण परिवेश पर आधारित पटना से प्रकाशित पत्रिका 'गांव समाज' में समाचार संपादक।

4 COMMENTS

  1. आदरणीय लीना जी,
    नमस्कार।
    हमारे समाज में यथार्थपकर सोच का अभाव या आदर्शवादी सोच की नाटकीयता बहुत सारी सामाजिक एवं पारिवारिक समस्याओं का कारण है। बल्कि यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि मानवी की बहुत सारी समस्याएँ इसी के कारण हैं।

    हमें बचपन से ही आदर्श, बल्कि खोखले आदर्श घुट्टी में पिलाये गये हैं। ऐसे खोखले आदर्श जिन्हें बहुत कम उम्र में ही; हमने अनेकों बार धडाम से टूटते और बिखरते हुए देखा है और साथ ही साथ ऐसे खोखले आदर्शों को जाने-अनजाने तोडने वालों के विरुद्ध, विशेषकर उन लोगों को आग उगलते भी देखा है, जिनके स्वयं के कोई नैतिक या सामाजिक प्रतिमान या मौलिक आधार ही नहीं होते हैं, जो स्वयं आदर्शभंजक होते हैं।

    हमारा समाज विरोधाभाषों पर खडा हुआ है। इसी कारण समाज की दिनप्रतिदिन दुर्गती भी हो रही है। आपने ऐसे ही विरोधाभाषों को स्वीकारोक्ति प्रदान करके यथार्थपरक सोच को मान्यता प्रदान करने का साहसिक प्रयास किया है। यह कहना आसान है कि इसे और अच्छा या बेहतर किया जा सकता था। करने और करने के लिये कहने-इन दोनों बातों में भी यथार्थ एवं आदर्श का प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है।

    मैंने आपको पहली बार पढा है। मेरी शुभकमानाएँ सभी अच्छे लोगों के साथ हैं। मैं स्त्री स्वाधीनता के यथार्थ चिन्तन का पक्षधर हँू। आशा है आपका चिन्तन उत्तरोत्तर सृजन की धरा पर पल्लिवित और पुष्पित होता रहेगा।

    आपने मुझे अपनी कविता को पढने के लिये, लिंक भेजा, जिसके लिये मैं आपका आभारी हँू।

    यदि मेरी प्रतिक्रिया किसी कारण/दृष्टिकोंण से अनुचित लगी हो तो कृपया मुझे स्पष्ट शब्दों में अवगत अवश्य करावें, जिससे कि मुझे आत्मालोचन करने का सुअवसर प्राप्त हो सके। धन्यवाद।

    उक्त प्रतिक्रिया को पढने के बाद यदि आपके पास समय एवं और इच्छा हो तो आप निम्न ब्लॉग पर मुझे पढ सकती हैं :-
    https://presspalika.blogspot.com/

  2. दुरस्त फ़रमाया आपने ;कतिपय छपास पिपासुओं की छप्प लोल्लुप्ता में आकंठ डूबी बिलम्बित अतृप्त आकांक्षा को उद्दीपित करने में विभुतिनारायण की खलनायकी सफल रही .लीना की कविता अच्छी है .कविता को और कलात्मक रूप दिए जाने की गुन्जाईस है .

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