कविता:संवाद-श्यामल सुमन

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काम कितना कठिन है जरा सोचना।

गाँव अंधों का हो आईना बेचना।।

 

गीत जिनके लिए रोज लिखता मगर।

बात उन तक न पहुँचे तो कटता जिगर।

कैसे संवाद हो साथ जन से मेरा,

जिन्दगी बीत जाती न मिलती डगर।

बन के तोता फिर गीता को क्यों बाँचना।

गाँव अंधों का हो आईना बेचना।।

 

बिन माँगे सलाहों की बरसात है।

बात जन तक जो पहुँचे वही बात है।

दूरियाँ कम करूँ जा के जन से मिलूँ,

कर सकूँ गर इसे तो ये सौगात है।

बिन पेंदी के बर्तन से जल खींचना।

गाँव अंधों का हो आईना बेचना।।

 

सिर्फ अपने लिए क्या है जीना भला।

बस्तियों में चला मौत का सिलसिला।

दूसरे के हृदय तार को छू सकूँ,

सीख लेता सुमन काश ये भी कला।

आम को छोड़कर नीम को सींचना।

गाँव अंधों का हो आईना बेचना।।

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