श्यामल सुमन
अलग थलग दुनियाँ से फिर भी इस दुनियाँ में रहता हूँ
अनुभव से उपजे चिन्तन की नव-धारा संग बहता हूँ
पद पैसा प्रभुता की हस्ती प्रायः सब स्वीकार किया
अवसर पे ऐसी हस्ती को बेखटके सच कहता हूँ
अपना कहकर जिसे संभाला मेरी हालत पे हँसते
ऊपर से हँस भी लेता पर दर्द हृदय में सहता हूँ
इन्डिया और भारत का अन्तर मिट जाये तो बात बने
दूरी कम करने की अपनी कोशिश करता रहता हूँ
जश्न मनाया चोरों ने जब थाने का निर्माण हुआ
बना खंडहर भाव सुमन का भाव-जगत में ढ़हता हूँ