कविता/फादर डे पर

पिता का प्यार मां के बाद ही आंका जाता है

पिता का स्थान भी मां के बाद ही आता है।

मां के पैरों तले ही तो जन्नत भी होती है

बाप के दिल से होके उसका रस्ता जाता है।

माना कि मां का प्यार सबसे उंचा होता है

बाप का रिश्ता भी तो बेटे से ख़ास होता है।

मां बेटे के सर पे हाथ रख खाना खिलाती है

पिता का प्यार उसको जीना सिखाता है।

हाथ मां के साथ सर पर बाप का भी जरूरी है

बाप जिम्मेदारियों का सब बोझ उठाता है।

 

कभी ऊचाइयों से डर नहीं लगता

कभी रुसवाइयों से डर नहीं लगता।

खुशियों से डर लगता है हर वक़्त

कभी उदासियों से डर नहीं लगता।

तैरना आ गया है दिल को जब से

अब गहराइयों से डर नहीं लगता।

मुहब्बत दीवानापन और रतजगे

इन बस्तियों से डर नहीं लगता।

खामोश परछाइयाँ देखी हैं इतनी

अब वीरानियों से डर नहीं लगता।

अपने रूप पर कभी घमंड था हमें

अब बरबादियों से डर नहीं लगता।

जिंदगी भर नादानियाँ की इतनी

अब नादानियों से डर नहीं लगता।

 

-सत्‍येन्‍द्र गुप्‍ता

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here