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कविता - भविष्य - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
मोतीलाल मैंने अपने ढंग से रची है एक कविता पूरी कविता घुमती है उन अंधी सुरंगों की गलियों मेँ जहाँ नहीं पड़े कभी भी मानव के कदम ना कोई चिड़िया ही चहचहायी कभी नुकीले चट्टानों से जख्म खायी कविता बैल के कंधे बन गये घोड़े की नाल सी मजबूत…